रांची देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसियों में से एक, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), रांची में अपने क्षेत्रीय कार्यालय के लिए खुद को “स्थायी ठिकाना” दिलाने की जद्दोजहद में पिछले सात साल से उलझी हुई है। हालत यह है कि जांच एजेंसी, जो बड़े-बड़े घोटाले खोलती है, खुद अब फाइलों और आदेशों के चक्कर में फंसी नजर आ रही है।

वर्ष 2018 में ईडी ने राज्य सरकार से रांची में पांच एकड़ जमीन मांगी थी। सरकार ने जवाब दिया – “हमारे पास 1.98 एकड़ है, ले लीजिए!” ईडी ने हामी भर दी और जिला प्रशासन द्वारा तय की गई 3.91 करोड़ रुपये की कीमत के अनुसार 80 प्रतिशत यानी 3.12 करोड़ रुपये तत्काल सरकारी खजाने में जमा भी कर दिए। सब कुछ तय हो गया था… पर हुआ कुछ नहीं।
फिर 2022 में आया एक झटका!
जिला प्रशासन ने चिट्ठी भेजी – “जमीन का दाम अब 14.16 करोड़ रुपये है, कृपया 11.33 करोड़ जमा करें!”
ईडी चौंकी, क्योंकि केंद्र से जो मंजूरी मिली थी, वो पुराने रेट पर ही थी। ईडी ने मुख्य सचिव से इसकी शिकायत कर डाली और कहा – “ये तो मनमानी है।”
शिकायत के बाद 2023 में प्रशासन ने फिर पलटी मारी और पुराना दाम 4.10 करोड़ तय कर दिया। ईडी ने बिना देर किए पूरा पैसा दे दिया। लेकिन अफसोस – जमीन अब भी ईडी के नाम नहीं हुई!
अब क्या कर रही है ईडी?
ईडी हाईकोर्ट पहुंच गई है और गुहार लगाई है – “हमें हमारी जमीन दिलवाइए!”
इस बीच, ईडी का क्षेत्रीय कार्यालय फिलहाल उसी बंगले में चल रहा है, जिसे उसने खुद भ्रष्टाचार के आरोप में जब्त किया था – पूर्व मंत्री एनोस एक्का का हिनू स्थित बंगला।
अब सवाल ये है:
क्या जांच एजेंसी को उसकी खुद की जमीन मिलेगी? या फिर एक और फाइल सरकारी गलियारों में गुम हो जाएगी?