रांची: झारखंड में आगामी विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही राजनीतिक मैदान में हलचल तेज हो गई है। सत्ता में बैठी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और कांग्रेस की कई प्रमुख सीटें इस बार संकट में नजर आ रही हैं। सत्ताधारी दल के बड़े नेताओं की स्थिति कितनी असुरक्षित है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वे अपनी जीत को लेकर आश्वस्त नहीं हैं।
झारखंड के राजनीतिक समीकरणों में एक नई चक्रव्यू का निर्माण हो रहा है। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे यह स्पष्ट होता जा रहा है कि कई नेता अपने पूर्व रिकॉर्ड की भारी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। सबसे पहले बात करें नाला विधानसभा क्षेत्र की, जहां विधानसभा अध्यक्ष रविंद्रनाथ महतो की सीट पर भाजपा के माधव महतो की चुनौती उनके लिए एक बड़ा खतरा बन गई है। चुनावी आंकड़ों का गहन विश्लेषण बताता है कि यदि आजसू और झामुमो एकसाथ नहीं होते, तो महतो की जीत मुश्किल हो जाती।
मधुपुर सीट पर हफीजुल हसन अंसारी की स्थिति भी संदिग्ध नजर आ रही है। उपचुनाव में मिली सहानुभूति वोट से वे चुनाव जीत गए थे, लेकिन अब उन्हें अपने काम का जादू बिखेरना होगा। यहां तक कि कांग्रेस के पूर्व मंत्री बादल पत्रलेख भी अपने निर्वाचन क्षेत्र को लेकर चिंतित हैं। उनके खिलाफ जनाक्रोश और पार्टी में उनकी गतिविधियों पर उठते सवाल उनकी जीत की संभावना को खतरे में डाल सकते हैं।
झारखंड में चुनावी चक्रव्यू :
बन्ना गुप्ता, झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री, भी जमशेदपुर पश्चिम सीट पर सरयू राय से चुनौती का सामना कर रहे हैं। यहाँ राय की राजनीतिक छवि और गुप्ता के विवादास्पद अतीत ने चुनावी मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है।
चतरा सीट पर राजद के सत्यानंद भोक्ता की स्थिति भी तनावपूर्ण है, क्योंकि उनकी बहू रश्मी प्रकाश पहली बार चुनावी मैदान में हैं और उनका मुकाबला पूर्व विधायक जनार्दन पासवान से है। इस स्थिति ने राजद के लिए नई चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं।
इन चुनौतियों के बीच, कांग्रेस और झामुमो की साख दांव पर है। क्या वे अपने नेताओं को इस चक्रव्यू से बाहर निकाल पाएंगे? क्या वे समय रहते अपनी रणनीति को बेहतर बनाने में सफल होंगे? यह सवाल चुनावी नतीजों से पहले बेहद महत्वपूर्ण हैं।
13 नवंबर को पहले चरण और 20 नवंबर को दूसरे चरण के चुनावों के बाद 23 को परिणाम सामने आएंगे। तब तक यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या झारखंड में इस बार कांग्रेस अपनी खोई हुई साख को वापस पा सकेगी, या फिर चक्रव्यू में फंसी रह जाएगी।
आखिरकार, ये चुनाव केवल सीटों की संख्या का खेल नहीं है, बल्कि नेतृत्व, रणनीति और कार्यकुशलता का भी है। अब सवाल यह है कि झामुमो और कांग्रेस किस प्रकार की रणनीति अपनाकर इस चक्रव्यू से बाहर निकलेंगे और अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत करेंगे। यह तो समय ही बताएगा।