जनार्दन सिंह की रिपोर्ट
डिजीटल डेस्क : झारखंड में इतिहास रचने की ओर हेमंत सोरेन, तोड़ेंगे 24 साल का रिकॉर्ड । दो चरणों में हुए विधानसभा चुनावों के बाद राज्य में शनिवार को जारी मतगणना में अब तक जो तस्वीर साफ हुई है, उसमें स्पष्ट है कि झारखंड में इस बार 24 साल का सियासी रिकॉर्ड टूटने वाला है।
यह पहली बार होने जा रहा है कि गठित होने के बाद से झारखंड में कोई सत्तारूढ़ पार्टी चुनाव मैदान में जीत दर्ज करने के साथ ही सत्ता में वापसी करने की ओर है। अब तक चुनाव आयोग की ओर से जारी आधिकारिक रूझानों में सीएम हेमंत सोरेन की अगुवाई वाले गठबंधन को निर्णायक बहुमत तक आराम से पहुंचने का संकेत है।
हेमंत के मुकाबले में एनडीए से हुई कोई न कोई अहम चूक…
उनके गठबंधन को 81 सीटों वाली झारखंड विधानसभा में 50 सीटों पर बढ़त मिला हुआ है। इसमें भी 10 सीटों पर तो बढ़त का मार्जिन 10 हजार से अधिक की है।
ऐसे में यह लाजिमी है कि सियासी रणनीतिकार भी मंथन करने में जुट गए हैं कि तमाम जुगत करने के बाद भी आखिरका भाजपा की अगुवाई वाला एनडीए झारखंड में सत्ता की लड़ाई में कैसे और कहां चूका।
तमाम दावों और प्रतिदावों को शनिवार को मतगणना शुरू होते ही सामने आए रुझानों ने गलत साबित किया और झारखंड में छाई सियासी खामोशी का राज खोलना शुरू कर दिया।
प्रतिपक्षी चेहरों और चालों पर हर कदम पर भारी पड़े हेमंत सोरेन…
जो नतीजे चुनाव आयोग के मतगणना परिणाम के ताजा रुझान में दिख रहे हैं, उसने साफ कर दिया है कि झारखंड में 2024 के सियासी संग्राम में अपने हर प्रतिपक्षी चेहरे और चाल पर हेमंत सोरेन भारी पड़े। हां, वह इसका दिखावा करते नहीं नजर आए और यही उनकी सफलता का बड़ा राज रहा।
इस क्रम में सबसे अहम बात यह भी ही है कि प्रतिपक्षी एनडीए के पास हेमंत सोरेन के मुकाबले कोई प्रमुख सीएम फेस का न होना भी रहा। भाजपा के पास स्थानीय स्तर पर कोई प्रमुख चेहरा आगे नहीं था। अंदरखाने अनकहे तौर पर भाजपा ने जिन 2 लोगों बाबू लाल मरांडी और चंपई सोरेन को आगे कर रखा था, वे दोनों ही झारखंडी वोटरों की निगाह में दलबदलू थे।
चंपई सोरेन तो विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा में आए थे जबकि बाबूलाल बहुत पहले ही यह कर चुके थे। इसी क्रम में हाल के एक एग्जिट पोल का उल्लेख करना भी मुनासिब है।
उसके मुताबिक झारखंड में चंपई सोरेन और बाबू लाल के मुकाबले हेमंत सोरेन की लोकप्रियता दोगुनी थी। उसी एग्जिट पोल में 41 प्रतिशत लोगों ने हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री के रूप में पसंद किया जबकि चंपई सोरेन को 7 प्रतिशत लोगों ने और बाबूलाल मरांडी को 13 प्रतिशत लोगों ने ही पसंद किया था।
आदिवासियों के गुस्से और हेमंत सोरेन की चालों का समय रहते काट नहीं खोज पाया एनडीए
चुनावी मतगणना में सामने आए रुझानों में कई बड़ी बातें साफ झलक रही है। सबसे अहम यह कि झारखंड में आदिवासी बहुल इलाकों के वोटरों ने हेमंत सोरेन पर एकतरफा भरोसा जताया है। पूरे चुनाव में आदिवासी अस्मिता को हेमंत सोरेन मुद्दा बनाए हुए प्रचार में जुटे रहे थे।
उनकी पार्टी जेएमएम का कहना था कि पूर्ण बहुमत होने के बावजूद हेमंत को 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं करने दिया गया जिसने आदिवासियों और झारखंडी मूलवासियों को सीधे तौर पर कनेक्ट किया। इसी क्रम में हेमंत सोरेन और जेएमएम की खतियानी और आरक्षण जैसे मुद्दे पर भी भाजपा बैकफुट पर रही।
इन मुद्दों पर झारखंड विधानसभा से प्रस्ताव पास हो चुका है, लेकिन राज्यपाल ने इसे मंजूरी नहीं दी जबकि केंद्र में वर्तमान में भाजपा की ही सरकार है।
इसी क्रम में एक और बड़ी बात रही – महिला वोटरों से समय रहते पूरी तरह कनेक्ट होने का। जुलाई 2024 में दोबारा कुर्सी संभालने के बाद हेमंत सोरेन ने महिला वोटबैंक पर फोकस किया। उन्होंने महिलाओं के लिए मईयां सम्मान योजना लागू की और उस योजना के तहत हर महिलाओं के बैंक खाते में 1000-1000 रुपए प्रतिमाह डाले गए।
समय रहते भाजपा और उसके सहयोगी दल इसका काट नहीं खोज पाई। भाजपा इसका काट भी खोज पाती कि सियासी तौर पर हेमंत सोरेन ने अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को सियासी प्रचार की कमान सौंपने का अहम कदम उठाया।
कल्पना सोरेन ने पूरे चुनाव में करीब 100 रैलियां की और उनकी रैलियों में महिलाओं की भारी भीड़ नजर भी आई जो वोटिंग में बढ़े महिलाओं की हिस्सेदारी में दिखी भी। बता दें कि इस बार झारखंड में महिलाओं ने चुनाव में 4 प्रतिशत ज्यादा मतदान किया है। माना जा रहा है कि इन सबक फायदा सीधे तौर पर हेमंत सोरेन को हुआ।
कोल्हान और कोयलांचल इलाके में कुड़मी वोटरों ने बिछा दी सियासी बिसातें…
इसी क्रम में झारखंड के कुड़मी वोटरों का मिजाज भी अहम रहा। राज्य के वोटरों के इस खास समूह ने 2024 के चुनावी रण में सियासी बिसात बिछाने का काम किया। कुड़मी झारखंड में निर्णायक वोटर्स माने जाते हैं। खासकर कोल्हान और कोयलांचल इलाके में। कुड़मी वोटर्स के छिटकने से हेमंत का कोर वोटर्स मजबूत हो गया है।
झारखंड में कुड़मी वोटर्स आजसू के साथ लामबंद रहती थी, लेकिन इस बार जयराम महतो के उतरने से यह वोटबैंक उनसे छिटक गया। भाजपा ने इस बार भी सुदेश महतो के साथ समझौता किया लेकिन सुदेश महतो की पार्टी 2-3 सीटों पर ही बढ़त हासिल करती अब तक के मतगणना के रुझान में दिख रही है।
बोकारो से कद्दावर नेता बिरंची नारायण पिछड़ते नजर आ रहे हैं और देवघर वाले नारायण दास का भी यही हाल है। गोड्डा के अमित मंडल भी काफी पीछे चल रहे हैं जबकि जग्गनाथपुर से मधु कोड़ा की पत्नी भी पिछड़ती नजर आ रही हैं।
अर्थात भाजपा ने जिन सीटों पर बड़े नेताओं को तैनात किया था, वहां पर पार्टी फिसड्डी साबित हो रही है और बड़े नेताओं का न जीत पाना भी एनडीए और भाजपा के लिए बड़ा धक्का है।