वाराणसी : होलिका दहन का सर्वश्रेष्ठ शुभ मुहूर्त आज रात 11.26 बजे मध्य रात्रि 12.30 बजे तक। होलिका दहन का भारतीय परंपरा और संस्कृति में अहम स्थान है। हिंदू नववर्ष में पुराने संवत का समापन होलिका दहन के साथ ही होता है और फिर नए संवत की शुरूआत होती है।
इस बार होलिका दहन की पावन तिथि आज 13 मार्च बृहस्पतिवार को है लेकिन इस पर भद्रा का साया भी पड़ा है। ऐसे में काशी के विद्वानों ने तमाम शास्त्रीय गणना के उपरांत होलिका दहन के शुभ मुहूर्त के साथ सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त तक का ब्योरा तैयार किया है।
इस गणना में वैदिक पंचांग को आधार माना गया है। वैदिक पंचांग की गणना के अनुसार इस बार होलिका दहन का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त 13 मार्च को रात्रि 11 बजकर 26 मिनट से लेकर 12 बजकर 30 मिनट तक रहेगा।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भद्रा काल में होलिका दहन करना अशुभ माना जाता है, इसलिए भद्रा समाप्ति के बाद ही दहन करना शुभ होता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, 13 मार्च 2025 को सुबह 10.35 बजे से रात 11.26 बजे तक भद्रा काल रहेगा।
भद्रा काल में इसलिए नहीं होता होलिका दहन
भद्रा का काल शुभ कार्यों के लिए अशुभ माना जाता है, और इसलिए होलिका दहन जैसे महत्वपूर्ण कार्यों को भद्रा काल में नहीं किया जाता। भद्रा का समय विशेष रूप से कर्क, सिंह, कुंभ और मीन राशियों में चंद्रमा के गोचर के दौरान होता है, जब भद्रा पृथ्वी लोक पर रहती है।


वैदिक पंचांग की गणना के अनुसार, इस 13 मार्च बृहस्पतिवार को प्रातः 10.35 बजे भद्रा आरम्भ हो रहा है और 13 मार्च बृहस्पतिवार को रात्रि 11.26 बजे भद्रा समाप्त होगी।
इसी क्रम में वैदिक पंचांग की गणना में कहा गया है कि इस बार होलिका दहन की तिथि पर लगे भद्रा की पूंछ की अवधि सायं 6.57 से रात्रि 8.14 तक रहेगी जबकि भद्रा का मुख की अवधि रात्रि 8.14 से रात्रि 10.22 बजे तक होगी।
होलिका का दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा पर किया जाता है। इस बार फाल्गुन पूर्णिमा की तिथि का प्रारंभ 13 मार्च 2025 को सुबह 10.35 बजे से हो रहा है जबकि इसका समापन 14 मार्च 2025 को दोपहर 12.23 बजे होना है।


होलिका दहन पर भद्रा की पौराणिक मान्यता को जानें
होलिका दहन पर भद्रा की पौराणिक कथा और मान्यता भी है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भद्रा सूर्य देव की पुत्री और शनिदेव की बहन है, और उसका स्वभाव क्रोधी माना जाता है।
ब्रह्माजी ने भद्रा को काल गणना के एक प्रमुख अंग विष्टी करण में स्थान दिया था ताकि उनके क्रोध को नियंत्रित किया जा सके। पंचांग में करणों की संख्या 11 होती है, जिसमें 7वां करण विष्टि कहलाता है, और इस समय को अशुभ माना जाता है।
इसलिए इस काल में किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य, उत्सव या शुभ कार्यों का आरंभ या समापन नहीं किया जाता। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भद्रा काल में होलिका दहन करना अशुभ माना जाता है, इसलिए भद्रा समाप्ति के बाद ही दहन करना शुभ होता है।


ईश्वरीय आशीर्वाद प्राप्त करने का भी अवसर है होलिका दहन
फाल्गुन पूर्णिमा का दिन केवल होलिका दहन का समय नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक शुद्धि, शुभता और ईश्वरीय आशीर्वाद प्राप्त करने का भी अवसर है।
शास्त्रों के अनुसार, इस दिन अग्नि में समर्पित की गई बुरी शक्तियां समाप्त हो जाती हैं, और देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है। होलिका दहन से न केवल नकारात्मकता का नाश होता है, बल्कि जीवन में सुख-समृद्धि और शांति भी आती है।
हालांकि, यदि यह सही समय या विधि से न किया जाए, तो इसके अशुभ प्रभाव भी हो सकते हैं। इस बार होली पर चंद्र ग्रहण और होलिका दहन पर भद्रा का साया रहेगा।
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