मानवीय भूल ने  रोकी प्रवासी पक्षियों की आवाज: राष्ट्रीय पक्षी दिवस पर साहित्यिक द्रष्टिकोण

मानवीय भूल ने  रोकी प्रवासी पक्षियों की आवाज: राष्ट्रीय पक्षी दिवस पर साहित्यिक द्रष्टिकोण

रांची: “पंछी नदिया पवन के झोंके, कोई सरहद न इन्हें रोके,” यह गीत पक्षियों की उस स्वतंत्रता का प्रतीक है, जो मानव निर्मित सीमाओं को नहीं मानती। झारखंड के हरे-भरे जंगल, स्वच्छ जलाशय और प्राकृतिक आर्द्रभूमि प्रवासी पक्षियों को हर सर्दी में अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इन पक्षियों का आगमन सिर्फ प्रकृति के लिए एक तोहफा नहीं, बल्कि मानवता के लिए एक संदेश भी है। रांची और उसके आसपास के क्षेत्र — धुर्वा डैम, रुक्का डैम, जुमार नदी, और गेतलसूद बांध — इन पंखों के मेहमानों का स्वागत करते हैं।

लेकिन, “अंधा बांटे रेवड़ी, फिर अपने को दे” की कहावत जैसे मानव अपनी सुविधाओं के लिए इन स्थलों का अति-उपयोग कर रहा है। इस बार, प्रवासी पक्षियों की संख्या में लगभग 40 प्रतिशत गिरावट आई है। विशेषज्ञ इसे जलाशयों में गंदगी, बोटिंग की बढ़ती गतिविधियों और ग्लोबल वार्मिंग का परिणाम मानते हैं।

हर साल 5 जनवरी को राष्ट्रीय पक्षी दिवस मनाने का उद्देश्य पक्षियों के संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाना है। यह दिन हमें “चिड़िया के घोंसले में सोने की चमक” वाली कहावत की याद दिलाता है — पक्षियों की छोटी-छोटी जरूरतें ही उनकी समृद्धि का आधार हैं। इसकी शुरुआत 2002 में बोर्न फ्री यूएसए और एवियन वेलफेयर गठबंधन ने की थी। इस अवसर पर, पक्षियों के महत्व और उनके संरक्षण की आवश्यकता को उजागर किया जाता है।

कवि सुमित्रानंदन पंत ने पक्षियों की स्वतंत्रता का वर्णन इन शब्दों में किया

“पंख फैलाए नभ को छूते, स्वर्णिम आशा के सांचे। धरा-गगन को जोड़ने वाले, ये पंछी, सुख के दूत हमारे।”

पक्षियों का उल्लेख भारतीय साहित्य और कहानियों में सदैव प्रेरणा का स्रोत रहा है। कालिदास के “मेघदूत” में यक्ष बादलों को संदेशवाहक बनाते हैं, परंतु प्रकृति में पक्षी सदैव सबसे विश्वसनीय संदेशवाहक रहे हैं। रांची के आर्द्रभूमि में पक्षियों की चहचहाहट मानो प्रकृति का मधुर संगीत है, जो हर कवि के मन में नई कविताओं को जन्म देता है।

“कोयल की कुहुक मन मोह ले, मोर का नृत्य धरा की गोद ले।”

“छोटे पंखों में सपने बड़े, नील गगन में उड़ानें कढ़े। इनके गीतों से सजे जहां, हम रखें इन्हें सदा जवां।”

इस राष्ट्रीय पक्षी दिवस पर, आइए, हम यह संकल्प लें कि “घर का जोगी जोगड़ा, आन गांव का सिद्ध,” जैसे हालात पैदा न होने दें। प्रकृति और पक्षियों के संरक्षण में हमारा योगदान हर चहचहाहट को जीवंत बनाए रखने का वादा है।

 

 

Share with family and friends: