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नवादा: बिहार में विधानसभा चुनाव अगले वर्ष होना है लेकिन बिहार की यात्रा पर सभी दलों के नेता निकल रहे हैं और लोगों से मुलाकात कर रहे हैं। एक तरफ जहां बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव यात्रा कर रहे हैं तो दूसरी तरफ जदयू के महासचिव मनीष वर्मा भी जिलों की यात्रा कर रहे हैं। पूर्व मंत्री मुकेश सहनी भी इन दिनों यात्रा कर रहे हैं, जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर पिछले करीब दो वर्षों से बिहार की पदयात्रा कर रहे हैं इधर भाकपा माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य भी बिहार की यात्रा कर रहे हैं।
दीपांकर भट्टाचार्य मंगलवार को बदलो बिहार न्याय यात्रा के दौरान नवादा पहुंचे जहां उन्होंने लोगों को संबोधित करते हुए राज्य और केंद्र सरकार पर जम कर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि पिछले दो दशकों से बिहार में सुशासन, विकास का नारा देने वाले और अपने आप को पिछड़ों और अतिपिछड़ों का हिमायती बताने वालों की सरकार है। यह सरकार दंभ तो सुशासन का भर्ती है लेकिन लूट और झूठ की सरकार साबित हुई है। इतने दिनों से इनके सत्ता में रहने के बावजूद आज बिहार की आबादी का एक तिहाई यानि करीब 94 लाख से भी अधिक परिवार अपने लिए प्रतिदिन दो सौ रूपये भी नहीं जुटा पाते हैं।
दैनिक मजदूरी वृद्धि की घोषणा झूठी
दीपांकर भट्टाचार्य ने केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि केंद्र की सरकार ने दैनिक मजदूरी वृद्धि की घोषणा तो कर दी लेकिन बिहार में जीविका कर्मियों समेत लाखों स्कीम वर्कर्स से तुच्छ राशि पर बेगारों की तरह काम करवाया जाता है।
राज्य सरकार ने किया झूठा वादा
सरकार ने अपने ही सर्वेक्षण में पाए गए 6 हजार से कम मासिक आमदनी वाले 94 लाख परिवारों को स्वरोजगार के लिए दो लाख रूपये सहायता प्रदान करने की घोषणा की है लेकिन इसके साथ ही आय प्रमाणपत्र की एक शर्त लगा दी है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार का इरादा साफ होता तो सर्वेक्षण रिकॉर्ड के अनुसार परिवारों को सीधा लाभ दिया जा सकता था। अब तक मात्र 40 हजार परिवारों को ही पहली क़िस्त मिली है। इस गति से अगर जरुरतमंद परिवारों की मदद की जाएगी तो सभी 94 लाख परिवार तक मदद पहुंचने में 236 वर्ष लग जायेंगे।
बाढ़ की स्थायी समाधान से मतलब नहीं, जातीय गणना
दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि राज्य के 16 जिलों में बाढ़ ने तबाही मचाया और सरकार राहत के नाम पर बस खानापूर्ति कर रही है। सरकार को बाढ़ की स्थायी समाधान से कोई मतलब नहीं है। जातीय गणना के बाद राज्य में सरकार ने आरक्षण का दायरा बढ़ाया और अब उस पर कोर्ट ने रोक लगा दी। केंद्र सरकार अगर आरक्षण के बढ़े दायरा को नौंवी अनुसूची में डालती तो कोर्ट इस मामले में कोई आदेश नहीं जारी कर पाती।
केंद्र ने ठुकराई मांगें
बिहार की तर्ज पर पूरे देश में जातीय गणना करवाने और बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को केंद्र की सरकार ने सिरे से ख़ारिज कर दिया। बिहार अभी के से में सामाजिक राजनितिक संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के न्याय के साथ विकास के और सुशासन पूरी तरह से सबके सामने उजागर हो रही है। इन्हीं राजनीतिक परिस्थितियों को बदलने के भाकपा माले यात्रा कर रही है।
दिखा नहीं विशेष राज्य का दर्जा दो
उन्होंने कहा कि हमारी मुख्य मांगें है कि बिहार को धोखा नहीं विशेष राज्य का दर्जा दो, राज्य में बाढ़ का स्थायी समाधान करो। हमने सात सूत्री मांगें सरकार को दी लेकिन उन मांगों को अनसुना कर दिया गया। हमने राज्यपाल को 10 सूत्री मांगों का ज्ञापन सौंपा है और हमारी मुख्य मांग है कि राज्य की सरकार अपने वादों को निभाए। बिहार की जनता की हकमारी बंद हो, बिहार की जनता के साथ न्याय हो और शांति के साथ उनका विकास हो। अगर ऐसा नहीं होगा तो फिर जनता राज्य के साथ ही केंद्र की वर्तमान सरकार को उखाड़ फेंकेगी।
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नवादा से अनिल शर्मा की रिपोर्ट
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