खुंटी के कई गांवों में पुत्र के लिए नही वर के लिए मनाई जाती है जिउतिया

रांची : देश के कई राज्यों में मनाए जाने वाला जिउतिया झारखंड का एक प्रमुख त्योहार है, जिसे आदिवासियों के के साथ गैर आदिवासी भी उसी निष्ठा और विश्वास के साथ मनाते हैं. जीवित्पुत्रिका व्रत माता अपनी संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना के लिए रखती हैं. जिन महिलाओं के बच्चे नहीं हैं, उन्हें जिउतिया व्रत करने का अधिकार नहीं है. लेकिन खूंटी जिले के कर्रा प्रखंड में कई ऐसे गांव ऐसे हैं, जहां बच्चियां और कुंआरी कन्याएं जीवित्पुत्रिका का व्रत रखती हैं.

22Scope News

सुनने में भले ही थोड़ा अटपटा लगे पर खूंटी के पहाड़टोली, बमरजा, डुमरगड़ी, कइसरा, समेत कई गांवों में कुंआरी लड़कियां अपने भाई की रक्षा, अच्छे वर और घर पाने की कामना से जिउतियाका उपवास रखती हैं. जिउतिया की पौराणिक कथा में भी संतान के दीर्घायु होने की कामना से जीवितपुत्रिका व्रत करने का वर्णन आता है. इसकी कहानी राजा जिमुतवाहन से जुड़ी हुई है, लेकिन कर्रा प्रखंड के पश्चिमी भाग के कई गाांवों में बाल-बच्चेदार महिलाएं नहीं, बल्कि कुंआरी कन्याएं जितिया का व्रत करती हैं.

22Scope News

पहाड़टोली गांव के उपेंद्र पाहन बताते हैं कि उनके गांव में ही नहीं, आसपास के दर्जनों गांवों में कुंआरी लड़कियां जिउतिया का उपवास करती हैं और आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को दिन भर निर्जला उपवास रहकर शाम को पीपल पेड़ की डालियों को घर के आंगन में गाड़कर उनकी विधिवत पूजा-अर्चना करती हैं.

22Scope News

पीपल की डालियों को गांव का पाहन ही आंगन में गाड़ता है. फिर पूरी रात नाचते झूमते हैं ये परंपरा सदियों से चली आ रही है. वहीं गांव की लड़कियां हिचकिचाते हुए बोली कि ये व्रत एक अच्छे वर के लिए भी किया जाता है लेकिन काफी उत्साह के साथ पूरे गांव की लड़किया इस पर्व त्योहार को मनाती है.

22Scope News

गांव के लोग बताते हैं कि जिउतिया के आठ दिन पहले एक पवित्र बर्तन में बालू रखकर आठ तरह के अनाजों को उसमें रखा जाता है. हर दिन नहा-धोकर लड़कियां उसमें पवित्र जल देती हैं. आठ दिनों के अंदर पौधे तैयार हो जाते हैं. इन्हें जावा कहा जाता है. मान्यता ऐसी है कि जिसका जावा जितना अधिक होता है, उसे उतना ही अच्छा माना जाता है. जितिया पूजा में जावा का काफी महत्व है. बिना जावा के पूजा नहीं हो सकती.

अश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी की रात को पूजा-अर्चना के बाद सुबह में जावा और पीपल की डालियों को नदियों में भक्तिभाव से विसर्जित कर दिया जाता है. डालियों के विसर्जन के बाद ही व्रत रखने वाली बच्चियां और युवतियां कुछ खाती है.

रिपोर्ट : मदन सिंह

Share with family and friends:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *