नई दिल्ली : देश में बढ़ती महंगाई के बीच भारत ने गेहूं और चावल के निर्यात पर बैन लगा दी है.
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अब इस पर भारत सरकार ने सफाई दी है. भारत ने विश्व व्यापार संगठन की बैठक में
गेहूं और चावल के निर्यात पर पाबंदी के लगाने के अपने फैसले का बचाव किया है.
हालांकि, संगठन के सदस्य कुछ देशों ने भारत के रुख को लेकर चिंता जताई है.
यह जानकारी एक अधिकारी ने दी.
गेहूं और चावल के निर्यात: बैन लगाने का ये है वजह
डब्ल्यूटीओ की बैठक पिछले हफ्ते जिनेवा में हुई थी. जिसमें अमेरिका, यूरोपीय संघ ने
इस फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा है कि वैश्विक बाजारों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.
अपने फैसले का बचाव करते हुए भारत ने यह स्पष्ट किया है कि चावल के टुकड़े के निर्यात पर
पाबंदी इसलिए लगाई गई क्योंकि हाल के महीनों में अनाज का निर्यात बढ़ गया है
जिससे घरेलू बाजार पर दबाव बढ़ रहा है. वहीं गेहूं के मामले में खाद्य सुरक्षा चिंताओं की
वजह से निर्यात पर पाबंदी लगाने की जरूरत पड़ी है.
लगातार रखी जा रही है निगरानी
भारत ने घरेलू उपलब्धता को बढ़ाने के लिए मई में गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी.
उसने चावल के टुकड़े के निर्यात पर भी रोक लगाई थी और उसना को छोड़कर
गैर-बासमती चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत उत्पाद शुल्क लगाया था.
दरअसल, चालू खरीफ सत्र में धान की फसल की बुवाई कम हुई है ऐसे में घरेलू आपूर्ति को
बढ़ाने के लिए यह कदम उठाना पड़ा है.
एक अधिकारी ने बताया, ‘भारत ने कहा है कि ये पाबंदियां अस्थायी हैं और लगातार निगरानी रखी जा रही है.’
भारत से चावल की टुकड़े और चावल के अन्य उत्पादों का बड़े पैमाने पर आयात करने वाले सेनेगल ने अनुरोध किया है कि इस कठिन वक्त में खाद्य उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए वह व्यापार खुला रखे.
गेहूं और चावल के निर्यात: इन देशों ने किया अनुरोध
बैठक में थाइलैंड, ऑस्ट्रेलिया, उरुग्वे, अमेरिका, कनाडा, ब्राजील, न्यूजीलैंड, पराग्वे और जापान ने
भारत के साथ खाद्य कार्यक्रम को लेकर शांति उपबंध के उपयोग के संबंध में बात करने का अनुरोध किया है. भारत ने धान किसानों को 10 प्रतिशत की सीमा से अधिक समर्थन देने के लिए अप्रैल में तीसरी बार शांति उपबंध का इस्तेमाल किया था.