Inside Story : रिहाई के बाद सुर्खियों में आए पूर्व विधायक उदयभान ने अतीक को उसी के अंदाज में सबक सिखाने को थामा था असलहा

गत दिनों नैनी सेंट्रल जेल से रिहा हुए पूर्व विधायक उदयभान करवरिया परिजनों के साथ

जनार्दन सिंह की रिपोर्ट

डिजीटल डेस्क : Inside Story रिहाई के बाद सुर्खियों में आए पूर्व विधायक उदयभान ने अतीक को उसी के अंदाज में सबक सिखाने को थामा था असलहा। बीते बृहस्पतिवार की सुबह साढ़े सात बजे प्रयागराज के नैनी जेल से रिहा हुए बाहुबली पूर्व विधायक उदयभान करवरिया को लेकर यूपी में सियासी पारा लगातार हाई है। सीएम योगी आदित्यनाथ पर गत लोकसभा चुनाव के बाद से संगठन और सरकार में मुखर होते विरोधी सुर अचानक से फिर सुधरने लगे हैं तो लाजिमी तौर पर उस शख्सियत पर सभी की निगाहें बरबस ही जा टिकतीं हैं कि जिसके रसूख से सियासी माहौल में भी हलचल है। उदयभान करवरिया को लेकर चर्चाएं तेज हैं कि मौजूदा समय में सीएम योगी आदित्यनाथ से करवरिया परिवार की नजदीकियां सभी जानते हैं लेकिन उससे पहले भाजपा के संस्थापक त्रयी में एक अन्यतम डॉ. मुरली मनोहर जोशी तो इसी उदयभान के चुनावी प्रबंधन कौशल के सदैव कायल रहे। सूबे में पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) के हितैषी के रूप में पेश कर सपा ने लोकसभा चुनाव में अपनी सेहत सुधारी तो उसमें पीडीए के अलावा ब्राह्मण वोटरों का भी बड़ा हाथ माना गया। लेकिन अब उसी ब्राह्मण वर्ग के उदयभान की रिहाई से भाजपा की ओर दरकने की आशंका तेज हुई तो सपा ने आखिरी वक्त पर माता प्रसाद पांडेय को यूपी विधानसभा में अपना विधायक दल नेता बना दिया।  यह अकारण ही नहीं है कि तूफानी सरोज को यूपी का नेता प्रतपक्ष बनाना तय कर लेने के बाद समाजवादी पार्टी ने यूपी में बदलते सियासी हालात के मद्देनजर अपना दांव बदल दिया और पुराने विश्वस्त ब्राह्मण नेता माता प्रसाद को यूपी का नया नेता प्रतिपक्ष बनाना तय किया।

उदयभान के दादा ने रखा था अवैध शराब और रेत खनन के धंधे में कदम

अब इसी क्रम में बात करें उदयभान करवरिया की उन्हें परिवार में दादा के जमाने से अपराध जगत से कमाई का स्रोत बना लेकिन खुद उदयभान बचपने से ही परिवार की इन खूबियों से इतर काफी मेधावी, सहज और मिलनसार स्वभाव वाले रहे। इस बच्चे के मेधावी प्रतिभा को जानने के बाद से ही परिवार के लोगों ने भी उसे कभी अपराध में घसीटने तक की कोशिश नहीं की और प्रयास किया कि उसकी परछाईं भी उस पर ना पड़े।लेकिन होनी को कुछ और मंजूर था। प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) के करवरिया बंधुओं के लिए अवैध शराब, रेत खनन का धंधा पुश्तैनी था। इस धंधे की शुरुआत इलाहाबाद के कुख्यात माफिया भूक्कल महाराज के पिता जगत नारायण करवरिया ने की थी और इस धंधे में राजनीतिक संरक्षण पाने के लिए जगत नारायण करवरिया ने राजनीति में भी उतरने की कोशिश की थीलेकिन वह ना तो अपने धंधे को बहुत आगे बढ़ा पाए और ना ही राजनीति में ही अपना करियर बना पाये।

उदयभान के पिता भुक्कल महाराज ने जमाया अवैध धंधे में अपना सिक्का

बाद में 70 के दशक में उन्होंने अपने बेटे वशिष्ठ नारायण करवरिया उर्फ भुक्कल महाराज को आगे किया तो भुक्कल महाराज अपने पिता की अपेक्षा धंधे में काफी शातिर निकले। उन्होंने अपनी चालाकी से धंधे को तो आगे बढ़ाया ही, राजनीति में भी पहचान बनाई। हालांकि वह भी चुनावी राजनीति में फेल हो गए। भूक्कल महाराज की तरह ही उनके अगली पीढ़ी में उनके बड़े बेटे सूरजभान करवरिया और छोटे बेटे कपिल मुनि करवरिया को पुश्तैनी धंधे में रुचि थी। दोनों शुरू से भुक्कल महाराज के साथ धंधे में शामिल भी थे। यह अलग बात है कि वह कुछ खास नहीं कर पाए।मंझले बेटे उदयभान करवरिया बचपन से ही मार कुटाई में रुचि नहीं थी। वह पढ़ने में होशियार थे और उनकी मेधा देखपिता ने भी उनकी पढ़ाई में बाधा नहीं डाली। इसलिए उदयभान करवरिया ने इंटरमीडिएट की पढ़ाई की और अच्छे नंबरों से पास हो गये।

इलेक्ट्रानिक्स इंजीनियर बन दिल्ली जाने वाले थे उदयभान

इंटरमीडिएट में उदयभान करवरिया की मेरिट अच्छी थी।इसलिए उस समय इलाहाबाद के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थान आईईआरटी में उनका आसानी से दाखिला भी हो गया। वहां से उदयभान करवरिया ने इलेक्ट्रॉनिक्स ब्रांच में इंजीनियरिंग की और अपने बैच में तीसरे स्थान पर रहे थे। उस परीक्षा को पास करने पर उदयभान करवरिया को दिल्ली की एक प्रतिष्ठित कंपनी से अच्छे पैकेज पर नौकरी का ऑफर आया तो उन्होंने हमेशा हमेशा के लिए अपने खानदान में मार कुटाई वाला पुश्तैनी धंधा छोड़ कर दिल्ली आने का फैसला कर लिया था। तभी उनके पिता भुक्कल के चेले अतीक ने ऐसी हरकत की कि पूरी जीवन गाथा ही बदल गई।

अतीक ने की गुरु भुक्कल की हत्या तो इंजीनियर उदयभान बदला लेने को बने बाहुबली

घर से दिल्ली निकलने की उदयभान करवरिया तैयारी कर ही रहे था कि अचानक पिता भुक्कल महाराज की हत्या की खबर आई। पता चला कि भुक्कल महाराज को किसी और ने नहीं बल्कि उनके चेले अतीक अहमद ने ही गोली मारी है।वही वाकया उदयभान करवरिया के जीवन का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ और उसने तुरंत फैसला लिया कि अब वह नौकरी नहीं करेगा बल्कि अतीक को उसके ही तरीके से सबक सिखाएगा। फिर तो पहली बार उसने असलहा थामा और बाहुबली बनने की राह पर चलना तय किया।इसके बाद उदयभान ना केवल पूरे दमखम के साथ अपने पुश्तैनी धंधे में उतरे, बल्कि साल 1996 से राजनीति में कदम रखा। उस समय वह पहली बार कौशाम्बी में जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष चुने गये।

पूर्व विधायक उदयभान करवरिया की पुरानी फोटो
पूर्व विधायक उदयभान करवरिया की पुरानी फोटो

सियासत में भाजपा के डॉ. मुरली मनोहर जोशी के खास विश्वस्त बने उदयभान

जिला सहकारी बैंक का अध्यक्ष रहते हुए उदयभान करवरिया इलाहाबाद के तत्कालीन सांसद डॉ. मुरली मनोहर जोशी के संपर्क में आए।उदयभान की संगठन क्षमता काफी अच्छी थी और इसीलिए वह भाजपा के महत्वपूर्ण सांसद के बेहद खास हो गए। उदयभान करवरिया ने अपने को पाकसाफ दिखाने की भरपूर कोशिश की और इसके लिए वह सांसद मुरली मनोहर जोशी की छत्रछाया तो ओढ़ ही रखी थी लेकिन उसके साथ हीहमेशा जनता के बीच बने रहते। साथ ही समानांतर तरीके से वह रेत खनन, अवैध शराब और रियल एस्टेट के धंधा भी जारी रखे हुए थे। उसी धंधे में प्रतिद्वंदिता बढ़ने पर उन्होंने झूंसी से सपा विधायक जवाहर यादव उर्फ जवाहर पंडित की सिविल लाइंस चौराहे पर सरेआम हत्या की तो बाहुबली कहे जाने लगे और देखते ही देखते ऐसा रुतबा बना कि सपा नेताओं की छत्रछाया में रहने वाला डॉन अतीक भी खौफ में आ गया था।

भाइयों को दिलाया बसपा से टिकट और अतीक अहमद को दी शिकस्त

साल 2007 का चुनाव जीतने के बाद उदयभान करवरिया ने अपने मूल लक्ष्य अतीक अहमद की ओर फोकस किया। बताया जाता है कि तब उसके लिए साल 2007 में ही उदयभान ने मायावती से सेटिंग की और अपने बड़े भाई सूरजभान करवरिया को बसपा से एमएलसी बनवाया। फिर बसपा से ही साल 2009 के चुनाव में उदयभान ने अपने छोटे भाई कपिल मुनि करवरिया को फूलपुर लोकसभा सीट से टिकट दिलाया जिससे कि उस समय अतीक अहमद चुनाव लड़ता था। उस चुनाव में कपिल मुनि करवरिया चुनाव जीते और पहली बार अतीक अहमद को राजनीतिक शिकस्त मिली थी। उसके बाद तो इलाहाबाद में उदयभान करवरिया की हनक ऐसी हो गई कि अतीक अहमद को दोबारा कभी और किसी चुनाव में जीत नहीं मिली। यहां तक कि रेत खनन और रियल एस्टेट जैसे अपराध के क्षेत्र में भी जगह जगह टकराव होने लगा और नौबत यहां तक आ गई कि अतीक व उसके गुर्गे उदयभान करवरिया को देख अपना रास्ता बदलने में ही भलाई समझने लगे थे।

फिर तो दो बार विधायक बने उदयभान और बढ़ाई अपनी सियासी पैठ भी

राजनीति में होने के ही वजह से ही इस तिहरे हत्याकांड में लंबे समय तक किसी पुलिस अफसर ने उदयभान को छेड़ने की कोशिश नहीं की। इसी दौरान वह पहली बार साल 2002 में भाजपा के ही झंडे तले बारा विधानसभा सीट से चुनाव जीते और बाद में 2007 में भी यह सीट जीती लेकिन साल 2012 में यह सीट आरक्षित (एससी) हो गई तो इलाहाबाद (उत्तर) विधानसभा सीट से पर्चा भर दिया लेकिन वहां कांग्रेस के अनुग्रह नारायण सिंह से हार गए। फिर साल 2013 में जब उदयभान जेल गए तो साल 2017 के चुनाव में भाजपा के ही टिकट पर अपनी पत्नी नीलम करवरिया को मैदान में उतारा। जेल में बैठकर खुद चुनावी फील्डिंग सजाई और नीलम करवरिया विधायक बन गईं। संयोग से साल 2019 के चुनाव में उदयभान को सजा हो गई। उसका असर साल 2022 के विधानसभा चुनावों पर पड़ा और लाख कोशिशों के बावजूद खुद नीलम करवरिया भी चुनाव हार गईं।

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