रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान 20 नवंबर को होने वाला है, और इससे पहले राज्य की राजनीति में एक नया मोड़ आ चुका है। विभिन्न राजनीतिक दल जनता के बीच अपनी योजनाओं और समर्थन की अपील कर रहे हैं। राज्य में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार जहां अपनी योजनाओं जैसे सर्वजन पेंशन योजना, मैया सम्मान योजना, सावित्रीबाई फुले किशोरी समृद्धि योजना के साथ मैदान में है, वहीं भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने राज्य में बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे को चुनावी प्रचार का एक प्रमुख हथियार बनाया है।
बीजेपी ने अपने चुनावी अभियान के दौरान जो नारा दिया है, वह काफी चर्चा में है – “एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे, बट तो कटेंगे।” यह नारा राज्य की राजनीति में एक नया आयाम जोड़ता है, और बीजेपी का दावा है कि इसका उद्देश्य केवल और केवल बाहरी ताकतों, विशेष रूप से बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ समाज को एकजुट करना है। इस नारे की शुरुआत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल से हुई थी, और अब यह नारा झारखंड से लेकर महाराष्ट्र तक राजनीतिक चर्चा का विषय बन चुका है।
बीजेपी के इस नारे को लेकर राजनीतिक दलों के बीच तीखी बहस हो रही है। विपक्ष इसे सांप्रदायिक आरोपित नारा बताते हुए, यह दावा कर रहा है कि यह हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण करने की बीजेपी की कोशिश है। कांग्रेस के अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे ने इस नारे को आतंकवादियों का नारा करार दिया था, और बीजेपी के इस नारे पर तीखा पलटवार किया था। बीजेपी का कहना है कि इस नारे का उद्देश्य केवल समाज को एकजुट करना है, न कि किसी विशेष समुदाय को निशाना बनाना।
बीजेपी का मुख्य आरोप है कि झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठियों के लिए एक सुरक्षित ठिकाना बन चुका है। संथाल परगना, जो राज्य का एक महत्वपूर्ण इलाका है, में बीजेपी का कहना है कि बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठियों ने वहां की राजनीति और समाज में दखल दिया है। बीजेपी का दावा है कि इन घुसपैठियों ने स्थानीय आदिवासी युवतियों से शादी करके राजनीतिक ताकत हासिल की है और अपनी पत्नियों को रिजर्व सीटों पर चुनाव लड़वाकर आदिवासी समाज के राजनीतिक नियंत्रण पर कब्जा किया है। इसके अलावा, यह भी आरोप है कि इन घुसपैठियों ने स्थानीय आदिवासी जमीनों पर कब्जा कर लिया है और राज्य के संसाधनों का नियंत्रण भी प्राप्त कर लिया है।
बीजेपी का कहना है कि संथाल परगना सहित राज्य के अन्य क्षेत्रों में अप्रत्याशित रूप से एक समुदाय विशेष के मतदाताओं की संख्या में वृद्धि हुई है, जो बांग्लादेशी घुसपैठ के आरोपों को बल देता है। बीजेपी का यह भी आरोप है कि इन नए मतदाताओं की उम्र 50 वर्ष से अधिक है, जो सामान्य तौर पर बांग्लादेशी घुसपैठियों के रूप में देखे जा रहे हैं। बीजेपी की रणनीति है कि वह गैर-मुस्लिम और आदिवासी समाज को एकजुट करके अपने पक्ष में मतदान कराए। खासतौर पर संथाल परगना जैसे आदिवासी क्षेत्रों में बीजेपी के अभियान का फोकस बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे पर है, और पार्टी चाहती है कि आदिवासी समाज इस मुद्दे को गंभीरता से समझे। बीजेपी का दावा है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों ने न केवल स्थानीय हिंदू समाज, बल्कि आदिवासी समाज का अस्तित्व भी खतरे में डाल दिया है।
वहीं, विपक्ष का कहना है कि बीजेपी का यह नारा और मुद्दा केवल वोटों का ध्रुवीकरण करने के लिए है। कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा और आरजेडी ने जातीय समीकरण के आधार पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, ताकि वे अपनी पारंपरिक वोट बैंक को बनाए रख सकें। ये दल बीजेपी के आरोपों का विरोध करते हुए, इसे समाज को बांटने और तनाव बढ़ाने की कोशिश मानते हैं।
अब यह बड़ा सवाल है कि क्या बीजेपी का ‘एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे’ नारा चुनावी परिणाम पर असर डाल पाएगा या नहीं। अगर बीजेपी के नारे और बांग्लादेशी घुसपैठ के आरोपों से आदिवासी और गैर-मुस्लिम समुदाय प्रभावित होते हैं, तो इसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है। संथाल परगना जैसे आदिवासी क्षेत्रों में जहां बीजेपी की छवि एक सशक्त राजनीतिक ताकत के रूप में उभर रही है, वहां यह मुद्दा निर्णायक हो सकता है।
वहीं, अगर इस मुद्दे पर जनता का मत विभाजित होता है और विपक्ष इसे बीजेपी की सांप्रदायिक राजनीति समझता है, तो यह नारा बीजेपी के खिलाफ भी जा सकता है। खासकर उन सीटों पर जहां परंपरागत रूप से कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा का प्रभाव रहा है।
इस चुनावी माहौल में 20 नवंबर को मतदान के बाद ही यह स्पष्ट होगा कि बीजेपी का यह नारा और मुद्दा जनता को कितना प्रभावित करता है और क्या इसके माध्यम से पार्टी को चुनावी लाभ मिलेगा या नहीं।