रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव में इंडिया और एनडीए गठबंधन ने बाहें फैलाकर दलबदलुओं का स्वागत किया है। जैसे ही चुनाव का माहौल गरमाया, टिकटों की बारिश शुरू हो गई। ऐसे 26 नेताओं को प्रत्याशी बनाया गया है, जिन्होंने पिछले कुछ महीनों में पार्टी बदली—क्योंकि चुनाव की घोषणा के बाद, टिकट के लिए पाला बदलने में ही समझदारी थी।
इस खेल में पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन सबसे बड़ा चेहरा हैं। पिछला चुनाव झामुमो के टिकट पर सरायकेला से जीते थे। जब हेमंत सोरेन जेल गए, तो झामुमो ने चंपाई को मुख्यमंत्री बना दिया। पर जब हेमंत बाहर आए और चंपाई को सीएम पद से विदाई दी, तो चंपाई ने भाजपा का झंडा थाम लिया।
अब वे सरायकेला से भाजपा के उम्मीदवार हैं—सच में, ना हम इधर के हैं, ना हम उधर के हैं, जिधर गद्दी मले, हम उधर के हैं!
पिछले चुनाव में जीतने वाले नौ विधायकों को इस बार टिकट मिला है। बाबूलाल मरांडी, चंपाई सोरेन, अमित यादव, सरयू राय, कमलेश कुमार सिंह, सीता सोरेन, जयप्रकाश भाई पटेल, लोबिन हेम्ब्रम और केदार हाजरा जैसे नाम इस सूची में शामिल हैं। क्या यह सब देख कर लगता है कि ये लोग किसी विचारधारा के लिए लड़ रहे हैं, या बस गद्दी की तलाश में हैं?
चुनाव के दूसरे चरण में भी दलबदलुओं और बागियों के नए चेहरे सामने आ रहे हैं। मधुपुर में पूर्व भाजपा विधायक राज पालिवार, लिट्टीपाड़ा में झामुमो विधायक दिनेश विलियम मरांडी, और नाला में भाजपा के पूर्व विधायक बाटुल झा ताल ठोक रहे हैं। ये सभी नेता एक बार फिर से अपनी राजनीतिक किस्मत आजमाने के लिए तैयार हैं।
इस प्रकार की राजनीति में असली सवाल यह है: क्या हम इन नेताओं को अपनी आवाज देने के लिए तैयार हैं, या फिर हमें चाहिए कि हम ऐसे लोगों को पहचानें जो असली विचारधारा के लिए लड़ते हैं? चुनावी राजनीति में ये दलबदलू जब अपनी गद्दी के लिए कभी इधर, कभी उधर होते हैं, तब हमें यह सोचना चाहिए कि क्या हम ऐसे नेताओं पर भरोसा कर सकते हैं?
तो आइए, हम भी सजग रहें और देख लें कि किसकी बाहों में हमारा भविष्य सुरक्षित है!