रांची: झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस गौतम कुमार चौधरी की एकलपीठ ने एक विविध अपील याचिका पर सुनवाई करते हुए वसीयत की वैधता को लेकर अहम टिप्पणी की है। अदालत ने स्पष्ट किया कि वसीयत के निष्पादन पर संदेह केवल अस्पष्ट और अनुमान आधारित दावों पर नहीं किया जा सकता। वसीयतकर्ता की मृत्यु वसीयत के तुरंत बाद हो जाने या वसीयत में संपत्ति का विस्तृत विवरण न होने को आधार बनाकर वसीयत को अमान्य नहीं ठहराया जा सकता।
अदालत ने कहा कि संदेहास्पद परिस्थितियों को कोई निर्धारित सूची या मानक में नहीं बांधा जा सकता। वसीयतकर्ता की मृत्यु वसीयत के एक महीने के भीतर होने मात्र से यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि वे वसीयत लिखते समय मानसिक या शारीरिक रूप से अक्षम थीं।
यह आदेश प्रार्थी सीताराम गोस्वामी द्वारा दायर विविध अपील पर दिया गया, जिसमें उन्होंने निचली अदालत द्वारा उनकी प्रोबेट याचिका खारिज किए जाने को चुनौती दी थी। वाद के अनुसार, राधा देव्या उर्फ कुसुम देव्या, जो कि सीताराम की पितामह की बहन थीं, ने 3 सितंबर 2004 को एक पंजीकृत वसीयत के माध्यम से अपनी संपत्ति उनके नाम की थी। उनका निधन 26 सितंबर 2004 को हुआ था। भूमि वर्ष 1968 में खरीदी गई थी।
वहीं प्रतिवादी पक्ष ने वसीयत की वैधता को इस आधार पर चुनौती दी थी कि राधा देव्या वसीयत के समय गंभीर रूप से बीमार थीं और मानसिक रूप से भी अक्षम थीं। साथ ही उन्होंने यह भी दावा किया कि उन्हें संपत्ति देने का अधिकार नहीं था।
इन तथ्यों के आधार पर हाईकोर्ट ने वसीयत को विधिवत मानते हुए उस पर मुहर लगाई और निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को प्रोबेट (वसीयत की न्यायिक स्वीकृति) प्रदान किया जाए। साथ ही कोर्ट फीस जमा कर प्रोबेट की प्रति उपलब्ध करायी जाए।