झारखंड हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि लंबित आपराधिक मामलों के आधार पर पेंशन और ग्रेच्युटी रोकी नहीं जा सकती। यह कर्मचारी का कानूनी अधिकार है।
रांची: झारखंड हाईकोर्ट ने सेवानिवृत्त महिला लेक्चरर शांति देवी की याचिका पर सुनवाई करते हुए एक अहम आदेश पारित किया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि जब तक दोष सिद्ध न हो, केवल आपराधिक कार्यवाही लंबित रहने के आधार पर किसी कर्मचारी की पेंशन, ग्रेच्युटी या अवकाश नकदीकरण जैसे लाभ रोके नहीं जा सकते।
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हाईकोर्ट ने कहा: दोष सिद्ध हुए बिना पेंशन और ग्रेच्युटी नहीं रोकी जा सकती।
याचिकाकर्ता शांति देवी की सेवाएं 1984 से शिक्षण में रही हैं।
2011 में गिरफ्तारी के बाद निलंबन और 2018 में अनिवार्य सेवानिवृत्ति।
पेंशन, ग्रेच्युटी और अवकाश नकदीकरण लाभ रोक दिए गए थे।
अदालत ने कर्मचारी का कानूनी अधिकार मानते हुए आदेश पारित किया।
मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति राजेश शंकर की खंडपीठ ने कहा कि पेंशन और ग्रेच्युटी कर्मचारी का कानूनी अधिकार है और इसे लंबित मामले का हवाला देकर नकारा नहीं जा सकता।
गौरतलब है कि शांति देवी को 1984 में बीएनजे कॉलेज में अस्थायी व्याख्याता के रूप में नियुक्त किया गया था। 2002 में उनका तबादला रामलखन सिंह यादव कॉलेज में हुआ और 2003 में उन्हें जेपीएससी का सदस्य बनाया गया। 2011 में सतर्कता विभाग ने कुछ मामलों में उन्हें गिरफ्तार किया, जिसके बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया। हालांकि बाद में जमानत मिलने के बाद भी वर्ष 2018 में उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी गई और पेंशन सहित अन्य लाभ रोक दिए गए थे। इसी आदेश के खिलाफ शांति देवी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
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