वाराणसी : गणेश शंकर विद्यार्थी को नितिन गडकरी और CM Yogi ने दी श्रद्धांजलि। स्वतंत्रता सेनानी एवं पत्रकार रहे गणेश शंकर विद्यार्थी को उनकी पुण्यतिथि पर मंगलवार को केंद्रीय नितिन गडकरी के साथ ही यूपी के CM Yogi आदित्यनाथ और छत्तीसगढ़ के सीएम विष्णु देव साय ने याद किया।
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तीनों ने ही गणेश शंकर विद्यार्थी को उनकी पुण्यतिथि पर अपने-अपने तरीके से श्रद्धांजलि दी। इन तीनों ही नेताओं ने गणेश शंकर विद्यार्थी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को याद किया।
कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गणेश शंकर विद्यार्थी ने क्रांतिकारी ऐसी पत्रकारिता की कि उनके लेखन से ब्रिटिश सरकार भी डरती थी।
गडकरी ने किया विद्यार्थी का अभिवादन
अपने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर जारी संदेश में केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने मंगलवार को कहा कि – ‘महान स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी जी के स्मृति दिवस पर उन्हें विनम्र अभिवादन।’
फतेहपुर में जन्मे गणेश शंकर विद्यार्थी का नाम पत्रकारिता जगत में सम्मानपूर्वक लिया जाता है। उन्हें हिंदी पत्रकारिता का पितामह और लेखनी का जादूगर भी कहा जाता है। गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म 26 अक्टूबर 1890 को उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के हाथगांव के एक कायस्थ परिवार में हुआ था।
उनके पिता मुंशी जयनारायण हेडमास्टर थे। वे ग्वालियर रियासत में मुंगावली के ऐंग्लो वर्नाक्युलर स्कूल के हेडमास्टर थे. माता का नाम गोमती देवी था। गणेश शंकर विद्यार्थी विद्यारंभ उर्दू से हुआ और वर्ष 1905 में भेलसा से अंग्रेजी मिडिल परीक्षा पास की।
साल 1907 में प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में कानपुर से एंट्रेंस परीक्षा पास करके आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद के कायस्थ पाठशाला काॅलेज में भर्ती हुए। उसी समय से पत्रकारिता की ओर झुकाव हुआ।
फिर भारत में अंग्रेजी राज के यशस्वी लेखक पंडित सुन्दर लाल कायस्थ इलाहाबाद के साथ उनके हिंदी साप्ताहिक कर्मयोगी के संपादन में सहयोग देने लगे। हालांकि गरीबी की वजह से उन्हें पढ़ाई छोड़कर नौकरी करनी पड़ी।

CM Yogi और विष्णु देव साय ने भी दी श्रद्धांजलि
मंगलवार को गणेश शंकर विद्यार्थी की पुण्य तिथि पर उनके अवदानों को याद करते हुए यूपी के CM Yogi आदित्यनाथ ने उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए। अपने सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर CM Yogi आदित्यनाथ ने इस संबंध में पोस्ट भी साझा किया है।
CM Yogi आदित्यनाथ ने इस संदेश में लिखा – ‘मूल्य आधारित पत्रकारिता के आदर्श, महान स्वाधीनता संग्राम सेनानी, उत्कृष्ट समाजसेवी गणेश शंकर विद्यार्थी की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि!’
इसी क्रम में छत्तीसगढ़ के सीएम विष्णु देव साय ने कहा कि – ‘…निर्भीक पत्रकार, प्रबुद्ध लेखक और महान स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी को उनकी पुण्यतिथि (25 मार्च) पर नमन।
…विद्यार्थी जी न केवल पत्रकारिता के प्रतीक थे, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे योद्धा थे जिन्होंने अपनी लेखनी से जनचेतना की क्रांति को जन्म दिया। …गणेश शंकर विद्यार्थी जी ने ‘प्रताप’ समाचार पत्र के जरिए देश के गरीब किसानों, श्रमिकों और आम जन की आवाज़ को राष्ट्रीय मंच पर पहुंचाया।
…उन्होंने निडर पत्रकारिता के जरिए ब्रिटिश शासन की नींव को हिलाकर स्वतंत्रता संग्राम को एक नया दिशा दी। विद्यार्थी जी का जीवन हम सभी को समाजसेवा और राष्ट्रप्रेम की प्रेरणा देता है।’

भगत सिंह की फांसी पर भड़के दंगे को शांत कराने में दी प्राणों की आहुति
बता दें कि गणेश शंकर विद्यार्थी का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। साल 1931 में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दिए जाने के दो दिन बाद (25 मार्च) को कानपुर में भड़के दंगों में उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी थी।
उनके निधन पर तब महात्मा गांधी ने कहा था कि – ‘मुझे ऐसी मृत्यु से ईर्ष्या होती है। काश मुझे भी वैसी मौत नसीब हो।’
गणेश शंकर विद्यार्थी के पिता जयनारायण श्रीवास्तव ग्वालियर में शिक्षक थे। उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा संगम नगरी इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में प्राप्त की। वर्ष 1911 में गणेश शंकर विद्यार्थी सरस्वती में पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी के सहायक के रूप में नियुक्त हुए।
कुछ समय बाद सरस्वती छोड़कर अभ्युदय में सहायक संपादक हुए। वहां सितंबर, 1913 तक रहे। दो ही महीने बाद 9 नवम्बर 1913 को कानपुर से स्वयं अपना हिंदी साप्ताहिक प्रताप के नाम से निकाला।
उसी समय से उनका राजनीतिक, सामाजिक और प्रौढ़ साहित्यिक जीवन प्रारंभ हुआ। पहले लोकमान्य तिलक को अपना राजनीतिक गुरु माना, किंतु राजनीति में गांधी जी के अवतरण के बाद उनके अनन्य भक्त हो गए। एनीं बेसेंट के होमरूल आंदोलन में बहुत लगन से काम किया और कानपुर के मजदूर वर्ग के नेता हो गए।
कांग्रेस के विभिन्न आंदोलनों में भाग लेने तथा अधिकारियों के अत्याचारों के विरुद्ध निर्भीक होकर समाचार पत्र प्रताप में लेख लिखने के संबंध में ये पांच बार जेल भी जाना पड़ा और समाचार पत्र से कई बार जमानत मांगी गई। प्रताप किसानों और मजदूरों का हिमायती पत्र रहा।

चिट्ठी पत्री स्तंभ प्रताप की निजी विशेषता थी। कुछ ही वर्षों में वे उत्तर प्रदेश (तब संयुक्त प्रांत) के चोटी के शीर्ष कांग्रेसी नेता हो गए। वर्ष 1925 ई. में कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन की स्वागत-समिति के प्रधानमंत्री हुए तथा 1930 ई. में प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हुए।
इसी नाते सन 1930 ई. के सत्याग्रह आंदोलन के अपने प्रदेश के सर्वप्रथम डिक्टेटर नियुक्त हुए। समाचार पत्र प्रताप में भगत सिंह, राम दुलारे त्रिपाठी ने भी काम किया।
बता दें कि कांग्रेस ने काकोरी अभियुक्तों की पैरवी के लिए एक कमेटी बनाई थी। उसमें मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, शिव प्रसाद गुप्ता व गणेश शंकर विद्यार्थी भी थे। गणेश शंकर विद्यार्थी पर अभियुक्तों के मुकदमे संबंधी सारे प्रबंध का दायित्व था।
वकीलों में गोविंद वल्लभ पंत, मोहन लाल सक्सेना, कलकत्ता के बैरिस्टर बीके चौधरी तथा चंद्र भानु गुप्ता थे। हिंदी साहित्य सम्मलेन के 19 वें (गोरखपुर) अधिवेशन के ये सभापति चुने गए थे। वह बड़े सुधारवादी किंतु साथ ही धर्मपरायण और ईश्वरभक्त थे।
गणेश शंकर विद्यार्थी वक्ता भी बहुत प्रभावपूर्ण और उच्च कोटि के थे। वह स्वभाव के अत्यंत सरल, किंतु क्रोधी और हठी भी थे। बताते हैं कि वर्ष 1931 में 23 मार्च को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दी गई तो पूरे देश में बंद बुलाया गया।
उसी दौरान कानपुर में दंगा भड़क गया। 25 मार्च को गणेश शंकर विद्यार्थी दंगा शांत कराने के लिए भीड़ में पहुंच गए और हिंदुओं की भीड़ से मुस्लिमों और मुस्लिमों की भीड़ से हिंदुओं को बचाया।
दंगा शांत कराने में वह कामयाब भी रहे, लेकिन दो गुटों में फंस गए। हिंसक भीड़ ने कुल्हाड़ी और चाकू मार-मार कर उनकी जान ले ली।