आदिवासियों को सरना धर्म कोड की मान्यता अबतक नहीं देना उनके संवैधानिक मौलिक अधिकार पर हमला: सालखन मुर्मू 

बेरमो: भारत देश के लगभग 15 करोड़ प्रकृति पूजक आदिवासियों को धार्मिक आजादी अर्थात सरना धर्म कोड की मान्यता से वंचित रखने के लिए मुख्यतः कांग्रेस और भाजपा दोषी है। 1951 की जनगणना तक आदिवासियों के लिए अलग धार्मिक कॉलम था।

जिसे कांग्रेस पार्टी ने बाद में हटा दिया। अब भाजपा आदिवासियों को जबरन हिंदू बनाने पर उतारू है। परन्तु 2011 की जनगणना में प्रकृति पूजक आदिवासियों ने 50 लाख की संख्या में सरना धर्म लिखाया था जबकि मान्यता प्राप्त जैन धर्म वालों की संख्या 44 लाख थी।

तब भी आदिवासियों को सरना धर्म कोड की मान्यता अबतक नहीं देना उनके संवैधानिक मौलिक अधिकार पर हमला है। उक्त बाते सालखन मुर्मू  ने कही है।

इस मामले में उन्हों ने आगे बयान देते हुए कहा है कि धार्मिक गुलामी की यह प्रताड़ना भारत के आदिवासियों को जबरन हिंदू मुसलमान, ईसाई आदि बनने- बनाने को मजबूर करती है।

नतीजनन आदिवासी अपनी भाषा संस्कृति, सोच संस्कार और प्रकृतिवादी जीवन मूल्यों आदि की जड़ों से कटने को विवश है। जो भयंकर धार्मिक शोषण और मानवाधिकार का उल्लंघन है।

सरना धर्म के पवित्र धार्मिक स्थलों यथा मरांग बुरु (पारसनाथ पहाड़, गिरिडीह), लुगु बुरु (बोकारो) और अजोधिया बुरु (पुरुलिया) आदि को भी बचाना अब अनिवार्य हो गया है।

अतः अपनी धार्मिक आजादी को 2023 में हासिल करने के लिए देश-विदेश से लाखों आदिवासी सरना धर्म कोड जनसभा के लिए 8 नवंबर 2023 को रांची (झारखंड) के मोरहाबादी मैदान में एकजुट होकर अपनी आवाज बुलंद करेंगे।

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ कांग्रेस के नेता मान्य राहुल गांधी और मान्य सोनिया गांधी को भी ललकारेंगे – भारत के आदिवासियों को संविधान प्रदत्त धार्मिक आजादी प्रदान करो। सरना धर्म कोड मान्यता की घोषणा करो अन्यथा 8 दिसंबर भारत बंद होगा।

Share with family and friends: