Annie Besant की जयंती पर काशी के सेंट्रल हिंदू ब्वायज स्कूल में अध्यापिका ने उन पर रची कविता

वाराणसी में सेंट्रल हिंदू स्कूल की संस्थापिका एनी बेसेंट की फाइल फोटो

डिजीटल डेस्क: Annie Besant की जयंती पर काशी के सेंट्रल हिंदू ब्वायज स्कूल में अध्यापिका ने उन पर रची कविता। साल 1898 में वाराणसी में सेंट्रल हिंदू कॉलेज की स्थापना करने वालीं एनी बेसेंट की जयंती पर 1 अक्टूबर को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के अंतर्गत संचालित कमच्छा स्थित सेन्ट्रल हिन्दू ब्वायज स्कूल में उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई।

उन्हें शिक्षकों और विदयार्थियों ने अलग-अलग तरीके से अपनी स्मृतियों में संजोया। उसी क्रम में सेन्ट्रल हिन्दू ब्वायज स्कूल में हिंदी विषय की अध्यापिका डॉ. सोनी स्वरूप की एनी बेसेंट पर रचित कविता ने बरबस ही सबका ध्यान आकृष्ट किया।

डॉ. सोनी स्वरूप की एनी बेसेंट पर रचित कविता…

एक सौ पचीस विद्यालय का है स्थापना वर्ष

मन पुलकित तन पुलकित और अपार है हर्ष ।

अठ्हारह सौ अठानबे में पड़ी विद्यालय  नींव

इस वर्ष इतिहास यहां फिर से हुआ सजीव ।

करण घंटा के एक भवन से शुरू हुआ विद्यालय

इसकी सुदृढ़ नींव थी जैसे अडिग हिमालय।

माता एनी  महामना की ,सी एच एस सुंदर बगिया

अध्ययन कर यहां विभूतियों ने शोभित जिसे किया ।

अंग्रेजी थीं एनी बेसेंट, अंग्रेजों से खेली पारी थी

थीं विदेशी पर भारतीय थीं ,वह एक विदुषी नारी थीं।

वाराणसी में संस्कृत सीखी, गीता का अनुवाद किया

शांतिकुंज आवास बनाया, ज्ञान गेह का नाम दिया ।

थियोसॉफी की थी प्रवर्तक, रमा मन अध्यात्म में

विद्यालय नाम रखा हिन्दू, हिन्दू धर्म था आत्म में।

गोविंद दास कालीचरण मिश्र, और संग थे उपेन्द्र नाथ

सी एच सी स्थापित करने में भगवान दास  एनी के साथ ।

सेंट्रल हिन्दू कालेज पत्रिका की संपादिका  थी एनी

जिसमें विद्यालय गतिविधियां उनको होती थी देनी ।

विद्यालय को पड़ी जरूरत जब जब सुंदर भवनों की

काशी नरेश ने दे दी भूमि कमी नहीं थी रत्नों की ।

महामानव के प्रतिदान से हर एक ईंट  है गढ़ी हुई

मध्य  हमारे उनकी स्मृतियां श्वेत शिला से जड़ी  हुई ।

मित्र ने मित्र की याद में एक भवन था बनवाया

छोटी बिल्डिंग में रानी ने एक कुंआ था खुदवाया।

शिक्षा के प्रचार प्रसार को महापुरुषों ने  दान दिया

एक कक्ष राज्यपाल ने धाय मां  के नाम किया।

भारत भूमि पर एनी ने नारी शिक्षा का  किया विकास

कुप्रथाओं का जड़ से उन्मूलन औ कुरीतियों  का निकास।

हिन्दू गर्ल्स स्कूल खुला जब बालिकाओं में जग गई आस

नर संग नारी शिक्षा पाए एनी का था यही प्रयास।

बासंती नाम दिया गांधी ने भरतवासियों की प्यारी

ज्ञान ज्योत जलाने वाली  वह  अद्भुत थी चिंगारी ।

वाराणसी में सेंट्रल हिंदू स्कूल की संस्थापिका एनी बेसेंट की दादा भाई नैरोजी के साथ की दुर्लभ फोटो
वाराणसी में सेंट्रल हिंदू स्कूल की संस्थापिका एनी बेसेंट की दादा भाई नैरोजी के साथ की दुर्लभ फोटो

सनातन धर्म की शिक्षा दी सनातन का  गुणगान किया

रहकर उसने  भारत में भारतीय संस्कृति  का पान किया ।

कई वर्ष निरंतर किया, लालन-पालन और पोषण

शिक्षा की अलख जगाने को तत्पर सजग रहीं हर क्षण ।

महामना का विश्वविद्यालय टाउन हॉल में चर्चा थी

कैसे बनेगा महाविद्यालय एक समस्या खर्चा थी। ।

एक  विद्यालय की आवश्यकता ,थी महाविद्यालय को

सीएचसी सुपुर्द हुआ काशी हिन्दू विश्वविद्यालय को ।

माता एनी ने महामना का सदैव मान सम्मान किया

एक निवेदन पर उनके सीएचसी  विद्यालय दान दिया ।

बी एच यू की गतिविधियों का केन्द्रक बन सीएचसी  उभरा

ऐतिहासिक संगोष्ठियों   में इसका अधिक समय गुज़रा ।

सी एच सी में ही जन्म हुआ,बी एच यू  कला संकाय का ।

सी।एच एस  है मातृसंस्था ,सी एच एस बी एच यू का मायका

महामना ने विश्वविद्यालय  हित दान जुटाया था सबसे

स्वप्न हुआ पूरा उनका आंखों में सजा था जो कब से ।

दे दान में जूती निजाम ने   किया महामना काअपमान

फिर भी निजाम  सम्मान किया और जूतियां की नीलाम।

वाकपटुता,दृढ़ता, इच्छा शक्ति   शील गुणों के थे स्वामी

जो भी जब-जब जहां मिला मोहन के हो गए अनुगामी ।

पंडित मदन मोहन मालवीय में जाने  कितनी करुणा थी

न मोक्ष की  न स्वर्ग की न राज्य की कामना की ।

सीएचसी की धरती पर  मिले मालवीय और टैगोर

गांधी ने खेल मैदान में  भाषण दिया  अति पुरजोर ।

महामना और एनी ने स्वतंत्रता संघर्ष को दी रफ्तार

अधिवेशनों में हुए शरीक और  हो गये  गिरफ्तार ।

सत्यमेव जयते स्वाध्याय पर महामना ने दीया बल

विद्यार्थी  सहायक सभा बनी छात्रों के हित  जो थी संबल ।

मन लगाकर पढ़ना सीखो खेलकूद व्याख्यान यहां

चित्रकला संगणक भाषा संगीत  विज्ञान यहां ।

ज्ञानार्थ प्रवेश यहां पर प्रस्थान सेवार्थ यहां

शिष्य औ गुरु को आकर मिलता है पुरुषार्थ यहां।

मां बासंती की तपोभूमि ये निखरे इसका रुप सदा

हर  बालक  उपलब्धि पाए उनका था ये स्वप्न सदा ।

सन् उन्नीस सौ इक्तीस में लिया भाषण में अंतिम भाग

20 सितंबर उन्नीस सौ तैंतीस अडयार में  देह का त्याग।

सेवा करने वाली एनी हस्ती जानी मानी थी

सर्वस्व होम किया उसने वह बहुत बड़ी बलिदानी थी ।

एनी बेसेंट, मदन मोहन  की यह विद्यालय है थाती

कहते इनकी पुण्य  आत्मा विचरण कर यहां है सुख पाती।

वाराणसी के सेेंट्रल हिंदू स्कूल की संस्थापिका एनी बेसेंट की फाइल फोटो
वाराणसी के सेेंट्रल हिंदू स्कूल की संस्थापिका एनी बेसेंट की फाइल फोटो

ईंटों में दीवारों में वैभव छुपा है कण कण में

जब जब याद करोगे तुम शीश नवाओगे क्षण में ।

तपो भूमि यह महापुरुषों की  बात नहीं कहने वाली

विद्यालय पर आंच जो आए उसको नहीं  सहने वाली।

सुब्रमण्यम, जयंत विष्णु, राजेश्वर, आचार्य हजारी थे

ख्यात और विख्यात हुए  काम निरंतर जारी थे ।

विद्यालय से  महामना ने विश्वविद्यालय का किया निर्माण

बारह नवंबर उन्नीस सौ छियालीस महामना ने पाया निर्वाण

श्रेष्ठ गुणों के कारण ही महामना कहा था गांधी ने

अभ्युदय दिया था भारत को  आज़ादी की आंधी ने।

यह देवालय है शिक्षा का तुम सब हो दीपक उसके

मां बासंती महामना लौ है जब तक चंदा सूरज  चमके ।

जग को आलोकित तुम करना जाओ जब जब जहां-जहां

माता एनी और महामना का शुभाशीष पाओ वहां वहां

सोनी को  अपने शुभाशीष से किया दोनों ने अभिसिंचित

धन्य हुई जो निमित्त बनाया  क्या मोल चुकाऊंगी किंचित।

एक सौ पचीस विद्यालय का है स्थापना वर्ष

छात्र शिक्षक और विद्यालय नित पाएं नवीन प्रकर्ष।

बीएचयू के सेंट्रल हिंदू ब्वायज स्कूल की हिंदी अध्यापिका डॉ. सोनी स्वरूप
बीएचयू के सेंट्रल हिंदू ब्वायज स्कूल की हिंदी अध्यापिका डॉ. सोनी स्वरूप

विद्यार्थियों को भारत की आजादी में एनी बेसेंट की भूमिका की दी गई जानकारी

सेंट्रल हिंदू स्कूल में मंगलवार को आयोजित कार्यक्रमों में विद्यार्थियों को बताया गया कि लंदन में एक उच्च मध्यम वर्ग परिवार में जन्मीं एनी बेसेंट 1917 में कोलकाता में कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष चुनी गईं।

वह मूल रूप से आयरलैंड की रहने वाली थीं, लेकिन उन विदेशियों में शामिल थीं, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई। महिला अधिकार कार्यकर्ता एनी बेसेंट का जन्म 1 अक्तूबर सन 1847 में हुआ था। उनके पिता डाक्टर थे।

बेसेंट 16 नवंबर 1893 को मद्रास के अडयार में थियोसोफिकल सोसायटी के वार्षिक सम्मेलन में हिस्सा लेने पहली बार भारत आईं और फिर यहीं कि हो कर रह गई।

पहले विश्व युद्ध के दौरान वर्ष 1914 में एनी बेसेंट ने साप्ताहिक समाचार पत्र कॉमनविल की स्थापना की। उसी वर्ष उन्होंने ‘मद्रास स्टैंडर्ड’ को खरीद कर उसे ‘न्यू इंडिया’ नाम दिया।

eभारत में फैली सामाजिक बुराइयों जैसे बाल विवाह, जाति व्यवस्था, विधवा विवाह आदि को दूर करने के लिए बेसेंट ने ‘ब्रदर्स ऑफ सर्विस’ संस्था बनाई थी।

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