Palamu– सुखाड़, नक्सलवाद, बेरोजगारी और विस्थापन का दंश झेलते पलामू के किसानों को कृषि अनुसंधान केंद्र, पलामू द्वारा संतरे की खेती से किए जाने से अपनी जर्जर किस्मत बदलने की उम्मीद जागी है. किसानों के सामने पर्याप्त वारिश के अभाव में अपनी जमीन परती रखने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचता था. लेकिन कृषि अनुसंधान केंद्र, पलामू में सैकड़ों में एकड़ लहलहाती संतरे की खेती से उनके सपने अब पूरे होते नजर आ रहे हैं.
दरअसल कृषि अनुसंधान केंद्र, पलामू ने 2007 में नागपुर से हजारों संतरे के पौधों को मंगवा कर सकड़ों एकड़ में इसका प्लांटेशन करवाया, कुछ ही दिनों में ये सभी पौधे फसल देने लगे.अब हर साल लाखों रुपये की कमाई होती है. कृषि अनुसंधान केंद्र, पलामू का यही प्रयोग किसानों को प्रेरित कर गया. उन्हे अपनी किस्मत बदलने का महामंत्र मिल गया.
किसानों का कहना है कि संतरे की खेती और इसकी लहलहाती फसल देखकर हमें भी इसकी खेती करने की प्ररेणा मिल रही है. कम बारिश होने के कारण हमारा जमीन परती रहा करता था. शायद ही कभी हम खेती कर पाते थें. लेकिन कृषि अनुसंधान के इस प्रयोग को देख कर हमें हिम्मत मिली है. हमारे सपने को पंख लगे है.
अब इस संतरे की खेती को देखने के लिए यहां किसानों की भीड़ जमा रहती है, किसान इसकी बारीकियों को समझ रहे है, कृषि वैज्ञानिक भी किसानों को पूरी जानकारी और उसकी बारीकियां समझाने का प्रयास कर रहे हैं, इसके साथ ही हर मुमकिन सुविधा देने का आश्वासन दिया जा रहा है.
कृषि अनुसंधान केंद्र, चियांकी के वैज्ञानिक प्रमोद कुमार का कहना है कि कृषि अनुसंधान केंद्र के अलावा कई गांवों में किसानों ने इसकी खेती प्रारम्भ कर दिया गया है. जल्द ही पलामू के संतरे आपको राजधानी रांची सहित पूरे झारखंड में देखने को मिलने पर हैरानी नहीं होगी. फिलहाल अभी इसकी बिक्री पलामू शहर और इसके ग्रामीण हाटों में की जा रही है.
संजीत यादव