डिजीटल डेस्क : Political Message Behind Statement –भोले बाबा के खिलाफ मायावती के कड़े बयान के बड़े गूढ़ हैं सियासी मायने। हाथरस हादसे के परिप्रेक्ष्य में बसपा सुप्रीमो मायावती शनिवार को अचानक सुर्खियों में आ गईं। इसके पीछे भी वजह साफ है। हादसे के चार दिनों तक कोई भी सियासी दल भोले बाबा के खिलाफ किसी भी प्रकार की टिप्पणी से बच रहा था। सरकारी तौर पर शिकंजा कसता हुआ दिख भले ही रहा था लेकिन धरातल पर जनता के बीच बाबा के खिलाफ न तो खुला एक्शन देखने को मिला और ना ही बयान। इसी क्रम में अब शनिवार को बसपा सुप्रीमो मायावती पहली राजनेता बन गई हैं, जिसने सूरजपाल जाटव उर्फ साकार हरि के खिलाफ बयान दिया है। वह भी ऐसे वक्त में जब यूपी में विधानसभा की 8 सीटों पर उपचुनाव प्रस्तावित है। . इन 8 में से कई सीटों पर बाबा साकार हरि का दबदबा है और यहां पर उनके समर्थक जीत-हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वही वोटर हैं जो बसपा के कोर वोटर भी माने जाते हैं या बसपा के वोट बैंक कहे जाते हैं। माना जा रहा है कि बसपा सुप्रीमो का ताजा बयान इसी वोट बैंक को बसपा के नजदीक लाने का गंभीर प्रयास भी है क्योंकि बसपा के कोर वोटर अपने सुप्रीमो के कड़े तेवरों के फैन हैं।
भोले बाबा पर आक्रामक रुख अपनाकर बड़ा रिस्क तो नहीं ले रहीं मायावती ?
हाथरस हादसे के बाद से ही निशाने पर आए भोले बाबा के खिलाफ सियासी तौर पर जितना बड़ा हमला शनिवार को बसपा सुप्रीमो मायावती ने बोला है, उससे सभी सियासी रणनीतिकार और सियासी दिग्गज भी चकित हैं। यूपी की सत्ताधारी पार्टी हो या विपक्षी, हाथरस हादसे पर अब तक किसी ने भी बाबा के खिलाफ खुलकर मोर्चा नहीं खोला है। अभी तक इन पार्टियों का फोकस मुआवजे और पीड़ित को हक दिलाने पर ही रहा है। सपा ने प्रशासनिक लापरवाही को जरूर मुद्दा बनाया है, लेकिन उसने बाबा के खिलाफ कोई बड़ी टिप्पणी नहीं की है। उलटे पार्टी के महासचिव रामगोपाल यादव ने बाबा को बेकसूर बता दिया जिसकी दो बड़ी वजहें हैं। पहला तो यह कि मैनपुरी से लेकर आगरा तक के इलाकों में बाबा के भारी तादाद में समर्थक हैं जिसमें लोकसभा की 10 और विधानसभा की कम के कम 50 सीटें हैं। दूसरी बड़ी वजह यह है कि बाबा दलित समुदाय से आते हैं और उनके अधिकांश समर्थक भी इसी जाति के हैं। यूपी में दलित समुदाय की आबादी 22 प्रतिशत है, जिसमें 13 प्रतिशत जाटव हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि फिर मायावती ने बाबा के खिलाफ मोर्चा खोलकर इतना बड़ा रिस्क क्यों लिया है? इसे लेकर तमाम बसपा विरोधी सियासी पार्टी भी सकते में हैं कि कहीं यह बसपा सुप्रीमों की अपने कोर वोटरों को नए सिरे से सहेजने एवं एकजुट करने की कोई नई सोची समझी रणनीति तो नहीं ?
खोई हुई सियासी जमीन पाने को पुराने सख्त तेवरों में सामने आईं मायावती
वर्ष 1990 से लेकर 2022 तक पश्चिमी यूपी और आलू बेल्ट के इस इलाके में बसपा का मजबूत दबदबा था, लेकिन वर्ष 2022 के बाद इन इलाकों से बसपा बुरी तरह हार रही है। यूपी में वर्तमान में बसपा के सिर्फ एक विधायक हैं, जबकि उसके सांसदों की संख्या शून्य पर हो गई है। बसपा के जो एक विधायक चुनाव जीते हैं, वो भी पूर्वांचल से आते हैं। ऐसे में मायावती के पास इन इलाकों में खोने के लिए कुछ विशेष बचा नहीं है। इसीलिए सियासी हलके में माना जा रहा है कि बसपा सुप्रीमो मायावती भोले बाबा पर निशाना साधकर अपने पुराने लॉ एंड ऑर्डर वाली इमेज से लोगों के बीच पहुंचने का प्रयास कर रही हैं जो कि अतीत में भी लोगों को खूब पसंद हुआ करता था। यह अनायास ही नहीं है कि शनिवार को बसपा सुप्रीमो ने बाबा पर सख्त कार्रवाई की भी मांग करते हुए अपनी पोस्ट में लिखा – ‘हाथरस कांड में बाबा भोले सहित अन्य जो भी दोषी हैं, उनके विरुद्ध सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। ऐसे अन्य और बाबाओं के विरुद्ध भी कार्रवाई होनी जरूरी है। इस मामले में सरकार को अपने राजनैतिक स्वार्थ में ढ़ीला नहीं पड़ना चाहिए’।
बसपा सुप्रीमों की निगाहें अपने कोर वोटर्स पर, उन्हें साथ लाने पर फोकस
सियासी लिहाज देखें तो वर्ष 2019 के बाद मायावती का वोट प्रतिशत लगातार घट रहा है। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में मायावती की पार्टी को सिर्फ 9 प्रतिशत मत मिले हैं। आम तौर पर मायावती की अगुवाई वाले बसपा का वोट 18-20 प्रतिशत के आसपास रहता आया है। अब हाथरस हादसे के बाद अचानक सख्त तेवरों एवं तल्ख शव्दावलियों के साथ बसपा सुप्रीमो मायावती का बाबा पर निशाना साधे जाने को भी सियासी लिहाज से कोर वोट बैंक को अपने प्रति जागृत करने के लिहाज से भी देखा जा रहा है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि भोले बाबा के खिलाफ चुनिंदा कड़े और सधे शब्दों में मायावती ने अपने जारी बयान में बसपा के हित का भी खास ध्यान रखा है। यह अनायास ही नहीं है कि इसी बयान में पूर्व मुख्यमंत्री ने लिखा है कि बसपा दलितों, पिछड़ों और गरीबों की पार्टी है जिनके दुख को कोई बाबा नहीं, बल्कि दलितों, पिछड़ों और गरीबों के हितों की सोच रखने वाली बसपा वाली सरकार ही खत्म कर सकेगी। इसी क्रम में बसपा सुप्रीमो मायावती ने दलित मतदाताओं से सीधे तौर पर बसपा के साथ आने की भी अपील की है।
बसपा सुप्रीमो का कोर वोटरों को संदेश – अपनी तकदीर बदलने को बसपा से जुड़ें
यूपी में दलित, पिछड़े और गरीब तबके की जो राजनीति बसपा ने शुरू की थी, उसने अन्य सभी सियासी दलों की जमीन हिलाकर रख दी थी। सवर्णों और ओबीसी के साथ ही अल्पसंख्यकों को साधकर सियासत करने वाली पार्टियां भी बसपा की रणनीति के सामने एकाधिक बार धूल चाटने को मजबूर हुईं थीं और वह भी उसी यूपी में जहां से होकर दिल्ली की सत्ता का रास्ता गुजरता है। ऐसे में महज एक विधायक और शून्य सांसद की हैसियत पर आई बसपा को पुनरुत्थान की जरूरत महसूस हो रही थी और हाथरस हादसे पर अन्य सियासी दलों की चुप्पी ने बसपा को एक गोल्डन चांस दिया है। इसे किसी भी हाल में बसपा सुप्रीमो हाथ से जाने नहीं देना चाहतीं। वह दलित वोटरों की मानसिकता से भलीभांति वाकिफ हैं एवं उनके संवेदनशील रगों को दबाने में माहिर भी मानी जाती हैं। इसी कारण मायावती के ताजा रुख से सभी सियासी दलों को बगलें झांकने को मजबूर होना पड़ा है। इसे जातिगत वोटरों की गणित से भी समझा जा सकता है। जिस पश्चिमी यूपी के हाथरस में हादसा हुआ है, वहां भी दलित, पिछड़े गरीब तबके के वोटर कभी बसपा के ही कोर वोटर हुआ करते थे। अब इन्हें बसपा सुप्रीमो अपने पाले में लाने को व्यग्र हैं। इसे यूं भी समझा जा सकता है कि बीते लोकसभा चुनाव में बसपा को जाटव समुदाय का 44 प्रतिशत और गैर-जाटव दलित का 15 प्रतिशत वोट मिला। यूपी में दलितों की आबादी करीब 22 प्रतिशत है जिसमें जाटवों की संख्या 13 प्रतिशत है। इसी क्रम में यह भी बता दें कि यूपी में लोकसभा की 17 और विधानसभा की 86 सीटें दलितों के लिए आरक्षित हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में शनिवार को भोले बाबा के खिलाफ बसपा सुप्रीमो मायावती के जारी बयान को पढ़े और सुनें तो पूरी बात समझ में आ जाती है। मायावती ने आगे इसी पोस्ट में लिखा है – ‘इन तबकों को अपना दुख दूर करने के लिए बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के बताए हुए रास्तों पर चलकर इन्हें सत्ता खुद अपने हाथों में लेकर अपनी तकदीर खुद बदलनी होगी। इसके लिए इन्हें अपनी पार्टी बसपा से ही जुड़ना होगा। तभी ये लोग हाथरस जैसे काण्डों से बच सकते हैं। देश में गरीबों, दलितों व पीड़ितों को अपनी गरीबी व अन्य सभी दुःखों को दूर करने के लिए हाथरस के भोले बाबा जैसे अनेकों और बाबाओं के अन्धविश्वास व पाखण्डवाद के बहकावे में आकर अपने दुःख व पीड़ा को और नहीं बढ़ाना चाहिए। मैं सबको यही सलाह देना चाहती हूं।‘