पलामू प्रमंडल में राजनीतिक हलचल: जाति और विकास का खेल

भाजपा के गढ़ को साधने की कोशिश में जेएमएम: पलामू में चुनावी चुनौती

पलामू:  प्रमंडल, जिसमें पलामू, लातेहार और गढ़वा जिले शामिल हैं, विधानसभा की नौ सीटों पर चुनावी गतिविधियों के बीच है। इनमें से छह सीटें सामान्य हैं, जबकि दो सीटें अनुसूचित जाति (एससी) और एक अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित हैं। चुनावी सरगर्मी बढ़ने के साथ, नामांकन का सिलसिला भी शुरू हो गया है।

2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने चार सीटें जीती थीं, वहीं 2019 में यह संख्या बढ़कर पांच हो गई। उस समय झामुमो को दो सीटें मिलीं और कांग्रेस व एनसीपी को एक-एक सीट पर सफलता मिली। पिछले चुनाव में नौजवान संघर्ष मोर्चा के विधायक भाजपा में शामिल होकर चुनाव जीते थे, जिसके चलते भवनाथपुर की सीट भाजपा की हो गई है।

पलामू प्रमंडल में जातिगत राजनीति का गहरा प्रभाव है। मनिका को छोड़कर अन्य सभी सीटों पर बिहार स्टाइल की जातिगत राजनीति देखने को मिलती है। यहां मुख्य प्रतिद्वंद्वी एनडीए (भाजपा और सहयोगी दल) और ‘इंडिया’ (झामुमो, राजद, और कांग्रेस) गठबंधन के बीच टक्कर है। जातिगत समीकरणों में ब्राह्मण, यादव, कुर्मी, मुस्लिम, आदिवासी, और अनुसूचित जाति के मतदाता प्रमुख हैं।

यादव और अन्य पिछड़ी जातियों का समर्थन राजद, कांग्रेस, और झामुमो को मिलता रहा है, जबकि भाजपा की पैठ उच्च जातियों और शहरी मतदाताओं में मजबूत है। पलामू प्रमंडल में अनुसूचित जाति और जनजाति के वोटरों का भी महत्वपूर्ण योगदान है, जिससे झामुमो और कांग्रेस का आदिवासी मतदाताओं पर प्रभाव स्पष्ट है।

छतरपुर और हुसैनाबाद में नए समीकरण बन सकते हैं, क्योंकि किसी भी दल ने अपने वर्तमान विधायक का टिकट नहीं काटा है। वर्तमान में दोनों गठबंधन बराबरी पर नजर आ रहे हैं, लेकिन अगर राजनीतिक माहौल में बदलाव आता है, तो चुनाव परिणाम भी प्रभावित हो सकते हैं।

चुनावी मुद्दों की बात करें तो मंईयां योजना, गोगो दीदी योजना, इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, और जल संकट जैसे मुद्दे प्रमुख हैं। दोनों गठबंधन इन मुद्दों पर अपनी योजनाएं और वादे प्रचारित कर रहे हैं।

भाजपा, जो कि एनडीए के अन्य घटक दलों की तुलना में यहां मजबूत है, पिछले चुनाव में नौ में से पांच विधायक जीते थे। वर्तमान में, पार्टी विकास के मुद्दों के साथ-साथ अपने परंपरागत वोट बैंक को साधने के लिए प्रयासरत है। दूसरी ओर, ‘इंडिया’ गठबंधन, जिसमें माले, राजद और कांग्रेस शामिल हैं, आदिवासी हितों और विकास के मुद्दों को प्रमुखता से उठाने का प्रयास कर रहा है।

अंततः, नेताओं और दलों के मिलन का असर मतदाताओं पर क्या पड़ेगा, यह देखने वाली बात होगी। अगर वोट ट्रांसफर में बदलाव होता है, तो इसका सीधा प्रभाव चुनाव परिणामों पर पड़ेगा। पलामू प्रमंडल में इस बार चुनावी नतीजे कई कारणों से दिलचस्प साबित हो सकते हैं।

 

Share with family and friends: