डिजीटल डेस्क : Politics In UP – नजूल विधेयक पर संगठन के आगे झुकी भाजपा सरकार, विधानसभा में पारित विधेयक को विधान परिषद में लटकाया और प्रवर समिति को भेजा। यूपी में सत्तारूढ़ भाजपा में जारी खींचतान की नई लेकिन काफी रोचक तस्वीर सामने आई है जिसने सियासी पंडितों के साथ ही भाजपा के धुर विरोधी दलों के माहिरों के माथे पर बल डाल दिया है।
Highlights
बुधवार को जिस तरह अपने ही विधायकों ने विरोध के बावजूद इस विधेयक को विधानसभा में ध्वनि मत से सरकार ने पारित करा लिया था, उससे भी ज्यादा आक्रामक अंदाज में विधानपरिषद में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की ओर से प्रस्तुत इसी विधेयक को बिना किसी लंबी-चौड़ी बहस के एमएलसी भूपेंद्र चौधरी की दलील पर ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। नजूल विषयक विधेयक को प्रवर समिति के पास भेज दिया गया है।
जिन भूपेंद्र चौधरी के सुझाव पर विधान परिषद ने विधेयक के संबंध में यह फैसला लिया, वह प्रदेश भाजपा के इस समय पदेन अध्यक्ष हैं। सीधे शब्दों में इस विधेयक के मसले पर भाजपा का संगठन अपनी ही सरकार पर भारी पड़ा और इस विधेयक के बहाने विपक्ष को मिलने वाले बड़ा चुनावी मुद्दा हाथ से निकल गया।
Politics In UP : दो माह में नजूल विधेयक पर संशोधन कर अपनी संस्तुति सरकार को देगी प्रवर समिति
मतलब यह कि जिस कानून की बुधवार तक प्रदेश सरकार जबरदस्त पैरोकार रही, उसी ने 24 घंटे के भीतर बृहस्पतिवार को यू टर्न ले लिया और विधेयक को प्रवर समिति में भेजकर अपनी मुसीबत टाल दी। माना जा रहा है कि भाजपा का यह कदम विधानसभा का उपचुनाव और 2027 से पहले लोगों की नजर में अमानवीय बनने से खुद को बचाने का प्रयास है। अब नजूल संपत्ति विधेयक 2024 का प्रवर समिति अध्ययन कर दो महीने में अपनी रिपोर्ट देगी।
विधानमंडल के सदस्यों के मांग के अनुरूप संभावित संशोधन के साथ समिति अपने सुझाव सरकार को देगी। फिर से संशोधित कर होने पर ही विधेयक दोबारा विधानसभा में पेश किया जाएगा। इसका सीधा मतलब है कि अब ये विधेयक ठंडे बस्ते में चला गया है। राज्य विधान परिषद के 100 सदस्यीय सदन में भाजपा के 79 सदस्य हैं। ऐसे में इस विधेयक को पारित नहीं किया जाना खासा अहम माना जा रहा है।
Politics In UP : केशव मौर्य की ओर से पेश विधेयक पर बोले भूपेंद्र चौधरी – अभी इस पर सहमति नहीं
बता दें कि बीते बुधवार को विधानसभा में भाजपा के विधायक हर्षवर्धन वाजपेयी और सिद्धार्थ नाथ सिंह के अलावा योगी सरकार के नजदीकी माने जाने वाले रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भईया ने बिल पर आपत्ति दर्ज कराते हुए इसे प्रवर समिति को भेजने की मांग उठाई थी। हालांकि तब संख्या बल के आधार पर विधेयक को सदन में पास करा लिया गया था।
बृहस्पतिवार को जब बिल को विधान परिषद में रखा गया तो वहां भी सरकार को अपनों की ही नाराज़गी झेलनी पड़ी। विधान परिषद में नेता सदन केशव प्रसाद मौर्या ने जैसे ही नजूल विधयक विधेयक रखा वैसे ही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष एवं विधानपरिषद सदस्य भूपेन्द्र चौधरी विधेयक पर असहमति प्रकट की तो सरकार के लिए असहज स्थिति बनी। भूपेंद्र चौधरी ने कहा कि अभी इस मुद्दे पर सहमति नहीं है इसलिए इसे प्रवर समिति में भेजा जाए।
विधान परिषद के सभापति ने तुरंत उनके आग्रह को स्वीकार किया और उसे प्रवर समिति में भेज दिया। ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है कि सत्ता पक्ष की तरफ से संशोधन मांगा जाए क्योंकि रूटीन में हमेशा संशोधन विपक्ष ही मांगता है।
Politics In UP : अनुप्रिया बोलीं -विधेयक पर योगी सरकार को गुमराह करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई हो
ठंडे बस्ते में गए यूपी के नजूल जमीन विधेयक का अपना दल (एस) की अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने भी विरोध करते हुए कहा है कि ये एक गैर जरूरी और आम जनता की भावनाओं के खिलाफत वाला विधेयक है। इसे राज्य सरकार को वापस ले लेना चाहिए। उन्होंने इस मामले में अधिकारियों पर सरकार को गुमराह करने का भी आरोप लगाया है।
अनुप्रिया पटेल ने कहा कि नजूल भूमि संबंधी विधेयक (लोक प्रयोजनार्थ प्रबंध और उपयोग) विधेयक, 2024 को विमर्श के लिए विधान परिषद की प्रवर समिति को भेज दिया गया है लेकिन व्यापक विमर्श के बिना लाए गए विधेयक के बारे में मेरा स्पष्ट मानना है कि यह विधेयक न सिर्फ गैरजरूरी है बल्कि आम जन मानस की भावनाओं के विपरीत भी है।
इस मामले में जिन अधिकारियों ने योगी सरकार को गुमराह किया है, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
Politics In UP : विधानसभा में विधेयक का विरोध करने वाले भाजपा विधायक के बदले सुर
बुधवार को विधानसभा में नजूल संबंधी विधेयक पर विधानसभा में आपत्ति जताने वाले भाजपा विधायक हर्षवर्धन वाजपेयी अब बदल गए हैं। अब उनका कहना है कि उनकी आपत्ति बिल के विरोध में नहीं थी बल्कि विधेयक को और बेहतर बनाने के लिए थी। सबसे ज्यादा नजूल की जमीन का मामला उनके विधानसभा क्षेत्र में है इसलिए उन्हें उसपर बोलना ही था।
लेकिन ऐसा नहीं है कि बाकी लोगों को इससे दिक्कत नहीं है। बलरामपुर, गोंडा, बहराईच के कई विधायकों से उनकी बात हुई वो भी इनके सुझाव से सहमत दिखे थे। हर्षवर्धन वाजपेयी ने इसी क्रम में कहा कि कोर्ट के भी कई फैसले हैं, जिसमें सरकार को ये कोर्ट की तरफ से सुझाव दिया गया है कि नजूल की सम्पत्ति पर लम्बे समय से रह रहे लोगों के साथ सरकार विकास कार्य कर सकती है।
पीएम आवास योजना की ही तरह यहां भी उनके लिए आवासीय योजना बन सकती है जो लम्बे समय से यहां काबिज हैं। स्लम एरिया के साथ-साथ विकास मॉडल पर भी काम हो सकता है।
Politics In UP : अनुसूचित जाति के वोटरों के लिए योगी सरकार ने विधेयक को संशोधन के लिए भेजा
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना और जेपीएस राठौर तक 24 घंटे पहले तक नए नजूल संबंधी विधेयक की खूबियां गिना रहे थे और अपने ही विधायकों को इसे ठीक से पढ़ने की सलाह तक दे रहे थे जबकि इनके अपने विधायक इस मुद्दे पर कुछ भी सुनने को तैयार नही थे।
बताया जा रहा है कि नजूल की जमीन पर बसे लोगों में बड़ी संख्या अनुसूचित जाति से जुड़े लोगों की है जिनकी नाराज़गी झेलने की स्थिति में योगी सरकार बिल्कुल नहीं है। इसी बिंदु पर सबसे ज्यादा मुखर रूप में कुंडा विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने बुधवार को विधानसभा में अपनी बात रखी थी। माना जा रहा है कि अनुसूचित जातियों के लिए साफ तौर पर विधेयक में इस बात का उल्लेख करवाने की तैयारी है कि उनके हितों की नए विधेयक में पूरी तरह सुरक्षा की गारंटी रहेगी।
यह तथ्य विधानसभा में पारित विधेयक में स्पष्ट नहीं है और इसी कारण चुनावी नफानुकसान को देखते हुए योगी सरकार ने अनुसूचित जाति को नाराज न करने का मन बनाया और विधेयक को संशोधन के लिए प्रवर समिति में भेजाना तय किया।

Politics In UP : विधेयक के खिलाफ विधानसभा में यह रही थी राजा भैया की बेलाग टिप्पणी…
नजूल भूभाग के इस्तेमाल संबंधी पेश विधेयक पर कुंडा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने बीते बुधवार को यूपी विधानसभा में कहा था कि ये कौन सा विकास हो रहा है। लाखों लोगों को सड़क पर लाने की कोशिश की जा रही है। इससे क्रांति हो जाएगी। इस व्यवस्था से अव्यवस्था पैदा होगी। विधेयक आकार में छोटा है लेकिन इसके नतीजे काफी व्यापक और गंभीर होंगे। इस विधेयक से न तो सत्ता पक्ष को लाभ होने वाला है और ना ही प्रतिपक्ष को।
इस विधेयक को बनाने के लिए जानकारी किन अधिकारियों ने दी है, ये समझ से परे है। काशी, अयोध्या, मेरठ, लखनऊ, बरेली, मेरठ, गोड्डा, बलरामपुर समेत तमाम जिलों में नजूल के भूभाग हैं। ऐसे भूभागों पर अब गांव भी बसे हुए हैं। आबादी वाले उस भूभाग से भूमिधरी कैसे खारिज कर सकते हैं या खत्म कर सकते हैं? बड़ी संख्या में लोग बेघर हो जाएंगे और क्या सरकार लोगों को सड़कों पर लाना चाहती है? इलाहाबाद की बात करें तो वहां सिविल लाइंस में अंग्रेजों के जमाने में वहां सिर्फ वे ही रह सकते थे, कोई सिंधी या अन्य नहीं।
लेकिन अंग्रेजों ने अपने लिए उसी इलाके में धोबी, माली, खानसामा आदि को बसाया और वे बरसों से वहीं रहते आ रहे हैं तो क्या उन्हें इस विधेयक को लागू कर उजाड़ देंगे?इलाहाबाद हाईकोर्ट भी नजूल की भूमि पर बना है तो क्या उसे भी खाली करा देंगे? अगर अंग्रेज फ्री होल्ड कर सकते हैं तो ये जनहितकारी सरकार क्यों नहीं कर सकती है?
Politics In UP : ठंडे बस्ते में गए विधेयक के खिलाफ सपा और कांग्रेस मुखर
प्रवर समिति में बिल को भेंजे जाने के बाद भी सपा इस मुद्दे पर सरकार को लगातार घेरने की कोशिश में है। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखा है कि नजूल की जमीन पर सबसे ज्यादा कब्जा भाजपा के नेताओं का है और इसलिए सरकार पहले अपने लोगों से बिल का विरोध कराती है और फिर प्रवर समिति में भेजती है।
सरकार की मंशा ही नहीं है कि नजूल की जमीन को भाजपा नेताओं से खाली कराया जाए। लगे हाथ कांग्रेस ने इस विधेयक का विरोध करते हुए कहा है कि जबतक सरकार बिल को वापस नहीं लेती कांग्रेस की ओर से इसका विरोध जारी रहेगा।

Politics In UP : विधेयक पेश कर पारित कराने के दौरान संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना ने ये कहा था…
बीते बुधवार को विधानसभा में पेश और पारित नजूल भूमि संबंधी विधेयक पर संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने सदन में कहा था कि यह विधेयक काफी सीमित पन्नों का है लेकिन व्यापक लोकहित में है। अभी तक नजूल भूमि को लेकर सरकारी तौर पर कोई स्पष्ट परिभाषा या व्याख्या उपलब्ध नहीं है लेकिन इस विधेयक से इस बारे में सभी बातें साफ हो जाती हैं।
विधेयक को बनाने के क्रम में पता चला कि अंग्रेजों के जमाने में स्वतंत्रता सेनानियों से जब्त की गई संपत्तियां, भूभाग आदि ही नजूल की श्रेणी में हैं। इसके आवंटन, उपयोग आदि के बारे में अभी तक कोई न तो विधि सम्मत नीति बनी है और ना है। समय-समय पर उसके आवंटन आदि होते रहे हैं। लेकिन अब नए विधेयक से सब परिभाषित है और नजूल भूभाग अब से पूरी तरह सरकारी होगा एवं इस पर किसी व्यक्ति या इकाई का को एकाधिकार या कब्जा नहीं रहेगा।
इसके पीछे एक ही उद्देश्य है कि सार्वजनिक कार्य और विकास कार्य के लिए इस सरकारी भूभाग का इस्तेमाल करना एवं उसी क्रम में समय और धन दोनों की बचत करना। इसमें राजस्व, सिंचाई और वन विभाग के भूभाग शामिल नहीं होंगे या हैं। संसदीय कार्य मंत्री खन्ना ने कहा कि अब तक आवंटित हो चुके नजूल की श्रेणी वाले भूभागों को सरकार वापस अर्जित करेगी और उसके लिए बाकायदा आवंटी को उचित मुआवजा भी देगी। उसका भी ब्योरा विधेयक में विस्तार से उल्लेखित है।
सुरेश खन्ना ने स्पष्ट किया था कि जिन आवंटियों ने नजूल के भूभाग पर कोई निर्माण करा लिया है भवन इत्यादि के रूप में, उसका मुआवजा भी अर्जन करते समय सरकार द्वारा संबंधित आवंटी को दिया जाएगा। ऐसे सभी आवंटियों के मामलों की सुनवाई जिला मजिस्ट्रेट अपने यहां करेंगे और हर आवंटी को अपना पक्ष रखने का मौका देंगे। आवंटी की ओर से रखे गए पक्ष को सुनने के बाद भी विधिसम्मत निर्णय लेते हुए नजूल भूभाग पर अग्रिम कार्रवाई के लिए जिला मजिस्ट्रेट अपनी संस्तुति सरकार को प्रेषित करेंगे।
जिला मजिस्ट्रेट के निर्णय से असंतुष्ट होने की दशा में संबंधित आवंटी उसके खिलाफ 30 दिनों के भीतर सरकार के पास अपना पक्ष रख सकते हैं ताकि पूरे मामले पर सरकार विस्तार से विमर्श कर फैसला ले सके और आवंटी के साथ कोई अन्याय ना हो।
Politics In UP : मानसून सत्र में यूपी में कई अन्य विधेयक ध्वनि मत से हुए पारित
इसके अलावा सदन में यूपी निजी विश्वविद्यालय (द्वितीय संशोधन) विधेयक, यूपी निजी विश्वविद्यालय (तृतीय संशोधन) विधेयक, यूपी निजी विश्वविद्यालय (चतुर्थ संशोधन) विधेयक, यूपी सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों का निवारण) विधेयक, यूपी विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध (संशोधन) विधेयक भी पेश किए गए, जिन्हें ध्वनि मत से पारित घोषित कर दिया गया था।
इसके अलावा उत्तर प्रदेश एससीआर (राज्य राजधानी क्षेत्र) और अन्य क्षेत्र विकास प्राधिकरण विधेयक, उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक, यूपी नोडल विनिधान रीजन विनिर्माण (निर्माण) क्षेत्र विधेयक, बोनस संदाय (उत्तर प्रदेश संशोधन) विधेयक, कारखाना (उत्तर प्रदेश संशोधन) विधेयक, उत्तर प्रदेश विनियोग (2024-2025 का अनुपूरक) विधेयक भी पेश किए गए थे जिन्हें ध्वनि मत से पारित कर दिया गया था।