Politics : सुप्रीम कोर्ट के कोटे के अंदर कोटे को सही ठहराने पर यूपी में गरमाने लगी सियासत, मायावती बिफरीं तो राजभर-निषाद खुश

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जनार्दन सिंह की रिपोर्ट

डिजीटल डेस्क : Politicsसुप्रीम कोर्ट के कोटे के अंदर कोटे को सही ठहराने पर यूपी में गरमाने लगी सियासत, मायावती बिफरीं तो राजभर-निषाद खुश। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को लेकर बीते गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की ओर से सुनाए गए ऐतिहासिक फैसले के तहत सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने साल 2004 के ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए फैसले को पलटते हुए एसएसी-एसटी के आरक्षण में कोटा के भीतर कोटा बनाने का अधिकार राज्यों को दे दिया है। इससे देश में राज्य सरकारें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को मिलने वाले आरक्षण का वर्गीकरण करने का निर्णय आसानी से ले सकेंगी। इसी क्रम में उसी उत्तर प्रदेश में पिछड़ा बनाम अतिपिछड़े की राजनीतिक जमीन तैयार कर दी है जहां होकर दिल्ली की सत्ता का रास्ता गुजरता है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर शुक्रवार को जहां सवाल उठाया है, वहीं यूपी के सत्तारूढ़ सरकार में शामिल ओपी राजभर और डॉ. संजय निषाद अंदर ही अंदर खासे खुश हैं। अब कोटे के अंदर कोटे को लेकर यूपी की सियासत में दिख रही नई गरमाहट जल्द ही नए ज्वलंत सियासी मुद्दे के रूप में सामने आए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

पहले तैयार आरक्षण वाली सियासी बिसात अब गरमानी लाजिमी

रोहिणी कमीशन और यूपी के राघवेंद्र सिंह आयोग के मामले में सुप्रीम कोर्ट का एससी-एसटी में दिए गए निर्देश बेहद अहम है, क्योंकि कोर्ट ने कहा है कि राज्यों के पास इस बात की शक्ति है कि वह अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का डेटा देखकर सब-क्लासिफिकेशन को रिजर्वेशन दे सकता है। यह फैसला आने वाले दिनों में नजीर बनेगा। राज्य की सरकारें अब एससी-एसटी कैटेगरी को सब-कैटेगरी बनाने के मामले में सरकार बहुत फूंक-फूंक कर कदम उठाएगी, लेकिन इससे यूपी में ओम प्रकाश राजभर ने अपने आंदोलन को धार देने की कवायद शुरू कर दी है। मतलब साफ है कि सुप्रीम कोर्ट के कोटे में कोटा फैसले के बाद अब इस प्रदेश में राजनीति गरमानी तय है।

यूपी में कोटे के अंदर कोटे का मसला सियासी तौर पर बेहद ही संवेदनशील

यूपी में एससी-एसटी में 66 जातियां हैं लेकिन सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ 3 से 4 जातियों तक ही सीमित है। इसी तरह से यूपी में 27 फीसदी ओबीसी को मिलने वाले आरक्षण को लेकर कहा जाता रहा है कि कुछ जातियों को ही आरक्षण का लाभ मिला है और कई अतिपिछड़ी जातियां वंचित रह जाती हैं। इसीलिए यूपी में पिछड़ी जातियों में कोटे को अलग करने की मांग उठनी तय है। सुभासपा और निषाद पार्टी ओबीसी को मिलने वाले 27 फीसदी आरक्षण में से अतिपिछड़ी जातियों के लिए अलग से कोटा की मांग करती रही हैं। मंडल कमीशन के लागू होने से 27 फीसदी आरक्षण ओबीसी के लिए निर्धारित किया गया था। इस आरक्षण का फायदा मिलने का जिन पिछड़ी जातियों पर आरोप लगते हैं, उनमें कुर्मी, यादव, मौर्य, जाट, गुर्जर, लोध, माली जैसी जातियां हैं। दूसरी ओर, मल्लाह, निषाद, केवट, बिंद, कहार, कश्यप, धीमर, रैकवार, तुरैहा, बाथम, भर, राजभर, मांझी, धीवर, प्रजापति, कुम्हार, मछुवा, बंजारा, घोसी, नोनिया जैसी सैकड़ों जातियां हैं, जिनको ओबीसी के आरक्षण का लाभ यादव और कुर्मी जैसा नहीं मिल पाया है। यह मुद्दा ऐसे समय आया है जब देश में जातिगत जनगणना को लेकर बहस चल रही है। ऐसे में सरकार के स्तर पर आरक्षण या जाति से जुड़े किसी भी मसले में बहुत सावधानी के साथ कदम बढ़ाना होना क्योंकि जरा सी चूक पर आर-पार वाली सियासत भी शुरू होने का खतरा रहेगा।

यूपी में एनडीए के घटक दलों आरक्षण के पैरोकार नेता
यूपी में एनडीए के घटक दलों आरक्षण के पैरोकार नेता

कोटे के अंदर कोटे पर संविधान पीठ ने यह कहा था…

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली सात जजों की बेंच ने बीते गुरूवार को कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के वर्गीकरण करने से संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं होता है। अनुच्छेद-15 और 16 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो राज्यों को रिजर्वेशन के लिए जाति में वर्गीकरण से रोकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार को ऐसा करने के लिए किसी भी जाति के सब-क्लासिफिकेशन के लिए डेटा से बताना होगा कि उस वर्ग का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है। राज्य इस मामले में मनमर्जी नहीं कर सकता या फिर राजनीतिक लाभ के लिए ऐसा नहीं कर सकता।

क्या है रोहिणी कमीशन जिसकी सिफारिशें सार्वजनिक नहीं हुईं

बता दें कि मंडल कमीशन की सिफारिश लागू होने के बाद ओबीसी समुदाय को मिलने वाले 27 फीसदी आरक्षण को बांटने के लिए लंबे समय से मांग उठती रही है। मौजूदा केंद्र सरकार ने भी ओबीसी कैटिगरी के अंदर सब-कैटिगरी तलाशने के लिए रोहिणी कमीशन गठित की थी और कमीशन ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप दी है, लेकिन अब तक सार्वजनिक नहीं हुई है। रोहिणी कमीशन की सिफारिश को लागू करने की मांग लंबे समय से ओबीसी समुदाय में आने वाली अतिपिछड़ी जाति को लोग करते रहे हैं।

हुकुम सिंह आयोग और राघवेंद्र सिंह आयोग की बातें भी जान लें…

रोहिणी कमीशन का गठन राष्ट्रीय स्तर पर ओबीसी के आरक्षण में सब-कैटिगरी बनाने के लिए किया गया था, जबकि उत्तर प्रदेश में दो अयोग- हुकुम सिंह आयोग और राघवेंद्र सिंह आयोग का गठन किया गया था। 22 साल पहले एससी-एसटी के 21 फीसदी और ओबीसी के 27 फीसदी आरक्षण कोटे को विभाजित करने के लिए हुकुम सिंह आयोग का गठन राजनाथ सिंह सरकार में किया गया था। 28 जून 2001 को गठित समिति ने 2002 में सरकार को सौंपी थी, जिसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। हुकुम सिंह आयोग ने एससी-एसटी को मिलने वाले 21 फीसदी आरक्षण को 2 हिस्सों में बांटने का सुझाव दिया था। इसलिए समिति ने यूपी के 10 लाख सरकारी पदों का विश्लेषण कर कहा था कि कुछ जातियां अपनी आबादी का 10 फीसदी भी आरक्षण नहीं ले पाई हैं, जबकि कुछ जातियों ने अपनी आबादी से ज्यादा नौकरी पाई हैं। इसके चलते यूपी में 21 फीसदी दलित और 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण को हिस्सों में बांट दिया जाए। एससी आरक्षण के लिए उन्होंने जाटव-धुसिया और उनकी उपजातियों को एक कैटेगरी में रखा जाए और बाकी अनुसूचित जातियों को अलग अलग से कोटा दिया जाए। इसके लिए उन्होंने 10 और 11 फीसदी में बांटने की सिफारिश हुकुम सिंह की अध्यक्षता वाली समाजिक न्याय समिति ने की थी। इसी तरह ओबीसी को पिछड़ा और अतिपछड़ा के बीच बांटने की सिफारिश की थी, लेकिन सियासी मजबूरी के चलते लागू नहीं किया जा सका।

योगी सरकार ने गठित किया था राघवेंद्र सिंह आयोग का गठन

साल 2017 में यूपी की सत्ता में वापसी करने पर भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ओबीसी के आरक्षण को सब-कैटेगरी के लिए राघवेंद्र सिंह की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया था। साल 2018 में राघवेंद्र सिंह आयोग का गठन होने के बाद आयोग ने अपनी रिपोर्ट 2019 में सौंप दी थी। उनकी रिपोर्ट में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण को तीन भागों में बांटने की सिफारिश की थी। यह पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा और सर्वाधिक पिछड़ा के रूप में था जिसके लिए बकायदा आरक्षण का प्रतिशत भी निर्धारित किया गया था। साथ पिछड़े वर्ग में सबसे कम जातियों को रखने की सिफारिश की गई थी, जिसमें यादव, कुर्मी जैसी संपन्न जातियां हैं। अति पिछड़े में वे जातियां हैं, जो कृषक या दस्तकार हैं और सर्वाधिक पिछड़े में उन जातियों को रखा गया है, जो पूरी तरह से भूमिहीन, गैरदस्तकार, अकुशल श्रमिक हैं। ओबीसी के लिए आरक्षित कुल 27 प्रतिशत कोटे में संपन्न पिछड़ी जातियों में यादव, अहीर, जाट, कुर्मी, सोनार और चौरसिया सरीखी जातियां शामिल हैं। इन्हें 7 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की गई है जबकि अति पिछड़ा वर्ग में गिरी, गुर्जर, गोसाईं, लोध, कुशवाहा, कुम्हार, माली, लोहार समेत 65 जातियों को 11 प्रतिशत और मल्लाह, केवट, निषाद, राई, गद्दी, घोसी, राजभर जैसी 95 जातियों को 9 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की गई है।

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मायावती ने दागे सवाल – क्या दलितों व आदिवासियों का जीवन भेदभाव मुक्त हो गया?

बसपा सुप्रीमो और यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने शुक्रवार को आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के दिए गए फैसले पर सवाल उठाए। कहा कि क्या दलितों व आदिवासियों का जीवन द्वेष व भेदभाव-मुक्त हो गया है? ऐसे में आरक्षण का बंटवारा कितना उचित है? उन्होंने भाजपा-कांग्रेस को भी निशाने पर लिया और कहा कि एससी-एसटी व ओबीसी लेकर दोनों दलों का रवैया उदारवादी रहा है सुधारवादी नहीं। बसपा सुप्रीमो ने कहा कि सामाजिक उत्पीड़न की तुलना में राजनीतिक उत्पीड़न कुछ भी नहीं। क्या देश के खासकर करोड़ों दलितों व आदिवासियों का जीवन द्वेष व भेदभाव-मुक्त आत्म-सम्मान व स्वाभिमान पूर्ण का हो पाया है। अगर नहीं तो फिर जाति के आधार पर तोड़े व पछाड़े गए इन वर्गों के बीच आरक्षण का बंटवारा कितना उचित है? देश के एससी, एसटी व ओबीसी बहुजनों के प्रति कांग्रेस व भाजपा दोनों ही पार्टियों और सरकारों का रवैया उदारवादी रहा है सुधारवादी नहीं। वे इनके सामाजिक परिवर्तन व आर्थिक मुक्ति के पक्षधर नहीं हैं। वरना इन लोगों द्वारा आरक्षण को संविधान की 9वीं अनुसूची में डालकर इसकी सुरक्षा जरूर की गई होती।

ओबीसी आरक्षण के बंटवारे का रास्ता खुलने से भाजपा के सहयोगी दल खुश

सुप्रीम कोर्ट ने भले ही अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के संबंध में कोटा के भीतर कोटा बनाने का अधिकार दिया हो, लेकिन इससे उत्तर प्रदेश में ओबीसी आरक्षण के बंटवारे का भी रास्ता खोल दिया है। प्रदेश में ओबीसी आरक्षण को कोटा के भीतर कोटा बनाने की मांग लंबे समय से उठती रही है। भाजपा के दो सहयोगी- सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर और निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद लंबे समय से ओबीसी आरक्षण को बांटने की मांग करते रहे हैं। इसे लेकर वो अपनी बात योगी सरकार से लेकर केंद्र की मोदी सरकार तक पहुंचा चुके हैं।

ओपी राजभर
ओपी राजभर

ओमप्रकाश राजभर ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का किया स्वागत

दूसरी ओर, सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को कोटा के अंदर कोटा देने का अधिकार देने के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। शुक्रवार को उन्होंने कहा कि पिछड़े वर्ग के लिए भी इस तरह की व्यवस्था हो ताकि अतिपिछड़ी जातियों को भी आरक्षण का लाभ मिल सके। इसी क्रम में ओपी राजभर ने आगे कहा कि वह निजी तौर पर इस मसले पर अपना दल सुप्रीमो व केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल, रालोद सुप्रीमो जयंत चौधरी और निषाद पार्टी के प्रमुख डॉ. संजय निषाद के साथ मिल कर ओबीसी आरक्षण मुद्दे पर भाजपा के शीर्ष नेताओं के संपर्क में हैं। राजभर ने मांग की कि रोहिणी आयोग की सिफारिश के आधार पर कोटा के भीतर कोटा वाला ओबीसी आरक्षण लागू किया जाए।

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