रांची: राजधानी के ग्रामीण इलाकों में अवैध बालू का खेल खुलेआम चल रहा है। दिन में पुलिस की चौकसी और रात में बालू माफियाओं की मौज! एक ही चालान पर कई ट्रिप करने की कला में माहिर ये कारोबारी अब इतनी बारीकी से काम कर रहे हैं कि पुलिस भी नजर आ रही है। आखिर रिश्वत की खनक के आगे कानूनी हथकड़ियां भी बेबस हो जाती हैं।
चालान की चतुराई!
बालू कारोबारी चालान दूर-दराज के इलाकों से कटवाते हैं, और फिर निकट के स्थानों में बालू की डंपिंग कर देते हैं। जब कभी पुलिस चेकिंग करती है, तो वही चालान दिखाकर खुद को पाक-साफ साबित कर लेते हैं। नतीजा? पुलिस की छवि साफ और माफिया का खेल जारी!
रात के अंधेरे में अवैध कारोबार की रौशनी!
रात होते ही राजधानी के पिठौरिया, बुढ़मू, ठाकुरगांव और कांके जैसे इलाकों में बालू माफियाओं की सक्रियता बढ़ जाती है। गाड़ियों की लंबी कतारें, एक के बाद एक बालू से लदी गाड़ियां, और उनके आगे-आगे चलते कारोबारी, ताकि रास्ते में कोई बाधा आए तो ‘मैनेजमेंट’ तुरंत हो जाए।
एक बालू कारोबारी ने नाम न छापने की शर्त पर खुलासा किया कि एक गाड़ी के बदले थाने में 15,000 रुपये दिए जाते हैं। बदले में उन्हें एक महीने की ‘छूट’ मिलती है। पुलिस थानों में इन माफियाओं का इतना प्रभाव है कि दिन में थानेदार के आदेश चलते हैं और रात में माफियाओं की मनमर्जी!
मुंशी: थाने का अघोषित मालिक!
थानों में तैनात मुंशी का रोल अहम होता है। कई वर्षों से एक ही जगह पर जमे ये मुंशी ही सारा ‘खेल’ संचालित करते हैं। थानेदार बदल जाते हैं, लेकिन मुंशी जस के तस रहते हैं। नए थानेदार के लिए यह ‘लोकल गाइड’ होते हैं, जो बताते हैं कि कहां से कितना ‘आय’ होती है। यही कारण है कि मुंशी का प्रभाव इतना मजबूत है कि बालू माफियाओं से लेकर पुलिस प्रशासन तक सब इनकी ‘सुविधा’ को समझते हैं।
थानेदार पर वसूली का आरोप!
इटकी थाना प्रभारी अभिषेक कुमार पर अवैध वसूली के आरोप लगे हैं। मो. खालिद नामक व्यक्ति ने एसीबी में शिकायत दर्ज कराई है कि अभिषेक कुमार के आदेश पर उसका चालक रोशन हर गाड़ी से 500 रुपये और एक गाड़ी की एंट्री के लिए 10,000 रुपये वसूलता है।
बालू की कालाबाजारी और सफेदपोशों की साजिश!
बालू की कालाबाजारी में कुछ सफेदपोश भी शामिल हैं, जो पर्दे के पीछे से इस अवैध धंधे को नियंत्रित कर रहे हैं। महंगे भवन निर्माण से लेकर सरकारी ठेकों तक, बालू की बढ़ती कीमतों का असर हर जगह दिखता है।
सरकार और प्रशासन अवैध बालू खनन रोकने के लिए स्पेशल टीम का गठन करती है, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात! आखिर बालू माफियाओं का नेटवर्क इतना मजबूत है कि वे हर बार प्रशासन से एक कदम आगे ही रहते हैं।
“कानून के आगे बालू की दीवार!”
बालू माफियाओं का यह खेल कब खत्म होगा, यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन जब तक पुलिस की ‘मिलीभगत’ और सफेदपोशों का ‘आशीर्वाद’ बना रहेगा, तब तक राजधानी में बालू की गाड़ियां यूं ही धड़ल्ले से दौड़ती रहेंगी, और कानून बस धूल चाटता रहेगा!