100 वर्ष पूरा करने जा रहे रेलवे स्कूल को बंद करने पर छात्रों और अभिभावकों में उबाल

जमशेदपुर : 100 वर्ष पूरा करने जा रहे रेलवे स्कूल को बंद करने का फरमान जारी किया गया है. बिना वैकल्पिक व्यवस्था किये इस फरमान से छात्र ही नहीं अभिभावकों में भी हड़कंप मच गया है. स्थिति इतनी विकराल हो गई है कि इन्हें आंदोलन का रूप अख्तियार करना पड़ रहा है.

पिछले 5 वर्षों से बंद नामांकन बंद

एक तरफ सरकार छात्रों के भविष्य के लिए हर बच्चे शिक्षित हो, इसके लिए जोर दे रही है. दूसरी तरफ अचानक से स्कूल बंद करने का फरमान अपने आप में ही सवालिया निशान खड़ा करता है .हम बात कर रहे हैं बागबेड़ा लाल बिल्डिंग स्थित रेलवे हाई स्कूल की. जिसकी नींव 1925 में रखी गई थी और 1962 में इस स्कूल को हाई स्कूल में कन्वर्ट कर दिया गया. वर्तमान में इस स्कूल में कक्षा 6 से कक्षा 10 तक के छात्र अध्ययनरत हैं और अब नामांकन की प्रक्रिया पिछले 5 वर्षों से बंद कर दी गई है. अक्टूबर माह में रेल प्रबंधन द्वारा इस स्कूल को बंद करने का निर्णय लिया गया और उसकी प्रक्रिया शुरू कर दी गई. स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों के साथ-साथ अभिभावक भी अब चिंतित हो गए हैं कि बिना वैकल्पिक व्यवस्था छात्र जाएंगे तो जाएंगे कहां.

अभिभावकों की नहीं कोई सुनने वाला

एक तरफ छात्र मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं. दूसरी तरफ रेल प्रबंधन द्वारा बिना वैकल्पिक व्यवस्था किये स्कूल को बंद करने के फरमान से छात्र के अभिभावकों की चिंता बढ़ गई है. स्कूल में पढ़ने वाले लगभग 125 बच्चों के अभिभावक स्कूल प्रबंधन से लेकर रेलवे के वरीय पदाधिकारियों से मुलाकात कर आग्रह कर रहे हैं. लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है. अभिभावकों के अनुसार छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ वे कतई बर्दाश्त नहीं कर सकते, इसके लिए उन्हें जो करना होगा वे करने को तैयार हैं.

स्कूल प्रबंधन को रेल प्रबंधन ने जारी किया नोटिस

स्कूल प्रबंधन को रेल प्रबंधन द्वारा नोटिस जारी कर स्कूल में नामांकन लेने के लिए पूरी तरह से रोक लगा दी है. साथ ही इस नोटिस में केंद्रीय विद्यालय के प्राचार्य के नाम एक आग्रह पत्र भी जारी किया गया, जिनमें इन बच्चों को नामांकन लेने का आग्रह किया गया है. केंद्रीय विद्यालय द्वारा इस दिशा में किसी तरह की पहल नहीं की गई. ऐसे में स्कूल में अध्ययनरत 125 छात्र जो कई वर्षों से स्कूल में पढ़ते हुए आ रहे हैं, जनवरी माह में स्कूल बंद हो जाने के बाद वे अब किस स्कूल में जाएंगे. उनके लिए क्या वैकल्पिक व्यवस्था होगी. स्कूल के प्राचार्य को इस संबंध में कोई भी जानकारी नहीं है. रेलवे के वरीय पदाधिकारियों का हवाला देते हुए इस मामले में कुछ भी करने के लिए उन्होंने असमर्थता जाहिर की.

रेल कर्मचारियों के भी बच्चे पढ़ते हैं

सबसे बड़ी बात है इस स्कूल में केवल रेल कर्मचारियों के बच्चे ही नहीं बल्कि आसपास के गरीब लोगों के बच्चे भी पढ़ाई करते हैं. स्कूल कुछ ही वर्षों में अब 100 वर्ष पूरा करने जा रहा है, ऐसे में इस स्कूल को बंद करने का तुगलकी फरमान का स्थानीय पंचायत प्रतिनिधियों ने पुरजोर विरोध करना शुरू कर दिया है. उन्होंने इस समस्या को लेकर पिछले दिनों टाटानगर रेल के एडीएन से मुलाकात की निष्कर्ष शून्य निकलने पर थक हार कर छात्रों, उनके अभिभावकों के साथ स्कूल परिसर में ही उपवास करना शुरू किया है. साथ ही इस फरमान को रेल प्रबंधन द्वारा वापस नहीं लिए जाने पर उग्र आंदोलन की चेतावनी दी है.

अधर में छात्रों का भविष्य

एक तरफ देश के बच्चों को देश का भविष्य करार दिया जाता है. दूसरी तरफ उन्हीं छात्रों का भविष्य अधर में लटक जाए, तो क्या होगा. रेल प्रबंधन को इस मामले में हस्तक्षेप कर इन छात्रों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करने की है.

रिपोर्ट: लाला जब़ी

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