Patna- सुधाकर सिंह का इस्तीफा- कानून मंत्री कार्तिकेय सिंह के बाद नीतीश सरकार का एक और विकेट गिर गया,
मंत्री बनने के साथ ही अपने विवादित बयानों के लिए मीडिया में सुर्खियां बटोर रहे,
कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री को सौंप दिया है.
इस प्रकार देखा जाय तो नीतीश सरकार से दो मंत्रियों की विदाई हो चुकी है,
लेकिन कार्तिकेय सिंह की विदाई और सुधाकर सिंह की विदाई में एक अन्तर है,
जहां कार्तिकेय सिंह की विदाई का कारण विपक्ष का दवाब बताया गया था,
वहीं सुधाकर सिंह की विदाई को अति महत्वाकांक्षा की भेंट कह जा सकता है.
सुधाकर सिंह का इस्तीफा के राजनीतिक निहितार्थ
सुधाकर सिंह मंत्री बनते ही बिहार का भगत सिंह बनने की कोशिश कर रहे थें,
उनकी कोशिश थी कि उनकी छवि एक जुझारू और आम आदमी के
मुददे को लेकर संघर्ष करने वाले राजनेता की है.
यही कारण रहा है कि शपथ ग्रहण के पहले दिन से ही
वह उस सरकार को ही निशाने पर लेना शुरू कर चुके थें, जिसका हिस्सा वह खुद थें,
यदि यह माना भी जाय की उनके विभाग में कुछ कमियां थी,
अफसरशाही थी, तो इसमें सुधार करने के लिए ही तो उन्हे मंत्री बनाया गया था,
लेकिन वह कमियों से सुधार की बात नहीं कर,
वह प्रकारांतर से नीतीश कुमार की साफ सुधरी छवि पर ही सवालिया निशान उठा रहे थें.
क्या नीतीश को चुनौती देने की स्थिति में हैं सुधाकर
समझने वाले इस खेल को भली भांति समझ रहे थें.
लेकिन क्या सुधाकर सिंह भविष्य में भी नीतीश कुमार के सामने कोई संकट पैदा कर सकते हैं?
क्या सुधाकर सिंह का सामाजिक दायरा इतना बड़ा है?
कि वह नीतीश कुमार के समक्ष अपनी समानांतर राजनीति को खड़ी कर सकें?
क्योंकि बिहार की राजनीति की कड़वी लेकिन तल्ख सच्चाई यह है
कि नीतीश और तेजस्वी के मिलने के बाद एक बड़े सामाजिक समूह की घेराबंदी उनके पक्ष में हो चुकी है,
सुधाकर सिंह जिस सामाजिक समूह का प्रतिनिधित्व करते है,
उसका अधिकांश हिस्सा वह पहले से ही भाजपा के साथ खड़ा है.
कुल मिलाकर कर सुधाकर सिंह के इस्तीफे से नीतीश- तेजस्वी को कोई संकट तो नहीं दिख रहा है.
नीतीश के साथ जाने को इच्छुक नहीं थें जगदानंद
यहां एक बात और गौर करने वाली है कि जगदानंद सिंह दिली इच्छा कभी भी नीतीश के साथ जाने की नहीं थी.
वह तो स्पष्ट रुप से मान रहे थे कि आज नहीं तो कल तेजस्वी की सरकार बननी ही है,
लेकिन नीतीश और तेजस्वी का यह प्रयोग को उन्हे स्वीकार करना पड़ा,
और एक बात यह भी कि सुधाकर सिहं जगदानंद सिंह नहीं है,
जगदनंद सिंह लालू यादव के पुराने वह वफादार साथी रहे हैं. उनके हर दुख के वह सहयात्री रहे हैं,
जिस सामाजिक न्याय की लड़ाई का दावा लालू यादव के द्वारा किया जाता रहा है,
उसके एक संबल जगदानंद सिंह भी रहे हैं, लेकिन यही बात सुधाकर सिंह के बारे में नहीं कही जा सकती,
तेजस्वी के राजनीतिक औरा से बाहर निकलने की कोशिश
शायद सुधाकर सिंह के किसी अवचेतन में तेजस्वी का राजनीतिक औरा से बाहर निकल कर
अपनी राजनीति सरजमीन तैयार करने की इच्छा भी है.
इसलिए सुधाकर सिंह के इस्तीफे पर जगदानंद सिंह
जो भी बोले उसे एक पिता का बयान ही माना जाता सकता है.
शायद यही जगदानंद सिंह का भावात्मक संकट भी है.
कैसी शहादत कैसा बलिदान?
सदन रहे कि सुधाकर सिंह के इस्तीफे पर जगदानंद सिंह ने इसे बलिदान की संज्ञा की दी थी.
लेकिन सवाल फिर वही है.
किस बात का बलिदान? आप के पास तो मौका था कि आप सिस्टम के जंग को दूर करें,
लेकिन आपने तो मु्द्दे को उठाकर पलायन करना उचित समक्षा,
या आपके बयानों से इस प्रकार की परिस्थितियां पैदा हो गयी कि आखिरकार आपको विवश होकर अपना इस्तीफा सौंपना पड़ा.
नीतीश सरकार को बड़ा झटका, कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने दिया इस्तीफा