पूर्वी सिंहभूम : पूर्वी सिंहभूम में चुनावी माहौल गर्म है, जहां टशन, ईगो और ओवर कॉन्फिडेंस का बोलबाला है। सभी छह सीटों पर इंडिया बनाम एनडीए की सीधी टक्कर देखने को मिल रही है।
इस बार, बागी और निर्दलीय प्रत्याशियों की मौजूदगी ने चुनावी समीकरणों को और दिलचस्प बना दिया है। यह चुनाव पूर्व मुख्यमंत्रियों अर्जुन मुंडा, रघुवर दास और चंपाई सोरेन के लिए एक बड़ा चौराहा है।
अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा पोटका सीट से, रघुवर दास की बहू पूर्णिमा दास जमशेदपुर पूर्वी से और चंपाई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन घाटशिला से चुनावी रण में हैं।
ये सभी पहली बार चुनावी मैदान में हैं, और उनके जीतने-हारने से उनकी पारिवारिक राजनीतिक विरासत पर असर पड़ेगा। 2019 में रघुवर दास को हराने वाले सरयू राय अब पश्चिमी सीट पर हैं, लेकिन उनके बिना इस चुनाव की कहानी अधूरी है।
भाजपा ने पूर्णिमा को मैदान में उतारा है, जो पहली बार चुनाव लड़ रही हैं, और उनका सामना कांग्रेस के डॉ. अजय कुमार से होगा। दोनों को जीत का विश्वास है, लेकिन क्या उनके दल के लोग उनके इस भरोसे को कमजोर नहीं कर रहे? जुगसलाई में झामुमो ने संजीव सरदार पर भरोसा जताया है, जो मीरा मुंडा के खिलाफ हैं।
घाटशिला में रामदास सोरेन और बाबूलाल सोरेन की टक्कर में गहमागहमी बढ़ी हुई है। यहां के प्रमुख मुद्दे बिजली, सड़क, पानी, शिक्षा, और स्थानीय रोजगार की कमी हैं।
विकास के वादे जिनके मजबूत होंगे, वे जीत के करीब होंगे। बहरागोड़ा में झामुमो ने समीर मोहंती को उतारा है, जबकि भाजपा ने डॉ. दिनेशानंद गोस्वामी को मैदान में उतारा है।
यहां चुनावी मुद्दों पर चर्चा कम और व्यक्तिगत राजनीति अधिक हो रही है। बढ़ते अपराध, ट्रैफिक जाम, और बुनियादी सुविधाओं की कमी जैसे मुद्दे जनता के ध्यान से ओझल होते जा रहे हैं।
राजनीतिक रणनीतियों का जाल बिछा हुआ है। नाम वापसी की प्रक्रिया में जो दल अपनी स्थिति संभालने में सफल रहेगा, वह जीत के करीब पहुंच जाएगा। इस चुनावी महासंग्राम में न केवल वोट, बल्कि राजनीतिक अस्तित्व का भी सवाल है।
पूर्वी सिंहभूम की इस चुनावी जंग में देखना यह है कि कौन सी पार्टी अपने वादों को निभाने में सफल होगी और कौन से मुद्दे वोटरों के दिल को छूने में कामयाब होंगे। यह निश्चित है कि इस बार की लड़ाई केवल सीटों की नहीं, बल्कि प्रतिष्ठा और राजनीतिक भविष्य की भी है।