देश को पहला राष्ट्रपति देने वाला जिला स्कूल का हाल-बेहाल, अपनी बदहाली पर बहा रहा है आंसू

सारण : भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की 137वीं जयंती है. इस मौके पर पर देश उन्हें याद कर रहा है. राजेन्द्र बाबू का जन्म 3 दिसम्बर 1884 को बिहार के तत्कालीन सारण जिले के जीरादेई नामक गांव में हुआ था. राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल 26 जनवरी 1950 से 14 मई 1962 तक का रहा था.

“EXAMINEE IS BETTER THAN EXAMINER” यह ऐतिहासिक टिप्पणी वर्ष 1902 में सारण जिला मुख्यालय स्थित जिला स्कूल छपरा से मैट्रिक की परीक्षा के बाद देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद के उत्तर पुस्तिका की जाँच के दौरान अंग्रेज परीक्षक ऩे किया था. यह वही स्कूल है जहां से स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद मैट्रिक तक कि शिक्षा देने वाला यह जिला स्कूल अपने बदहाली पर आंसू बहा रहा है. जहां बुनियादी शिक्षण सुविधाए भी मयस्सर नहीं है जो अपने आप में “स्वर्णिम अतीत का बदहाल वर्तमान” की कहावत चरितार्थ कर रहा है. इतना ही नहीं बल्कि इस विद्यालय के कई भवन शिक्षा विभाग के कब्जे में है. स्कूल प्रशासन के द्वारा विभाग को कई बार आवेदन दिया चुका है, लेकिन आज तक अतिक्रमण मुक्त नही हो सका है कारण चाहे जो भी.

इतना ही नही इसी परिषर में जिला कम्प्यूटर सोसायटी,नव पदस्थापित एक और विद्यालय भी खुल गया है. साथ ही परिषर में ही जिला प्रशासन द्वारा एक पार्क भी बन रहा है. वैसे कहने को तो सैकड़ो छात्रो का नामांकन है लेकिन आते कुछ ही है. प्रति वर्ष की भांति 3 दिसंबर को देशरत्न की जयंती पर विद्यालय प्रशासन द्वारा एक परिचर्चा का आयोजन कर अपनी खानापूर्ति कर ली जाती है. कारण की देश के प्रथम राष्ट्रपति डाक्टर राजेंद्र प्रसाद का जन्म 03 दिसम्बर 1884 में तत्कालीन सारण जिला वर्तमान में सिवान जिले के जीरादेई गांव में हुआ था. लेकिन उनकी प्राथमिक व प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा प्रमंडलीय मुख्यालय सारण के इसी जिला स्कूल से शुरू हुआ था.

इसी विद्यालय में राजेंद्र बाबु का नामांकन 1893 में आठवे वर्ग में हुआ था. जो उस वक्त का प्रारंभिक वर्ग था उस समय आठवीं वर्ग से उतीर्ण करने के बाद इसी स्कूल में नामांकन के लिए एंट्रेस में आया करते थे. जिसे अव्वल दर्जा का वर्ग कहा जाता था राजेंद्र बाबु इतने कुशाग्र बुद्धि के थे की उन्हें वर्ग आठ से सीधे वर्ग नौ में प्रोन्नति कर दिया गया था. उन्होंने इसी जिला स्कूल से 1902 में एंट्रेस की परीक्षा दी थी. जिसमे पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, आसाम, वर्मा और नेपाल में प्रथम स्थान प्राप्त कर अपने प्रान्त का नाम रोशन किया था, लेकिन लाख प्रयास करने के बाद भी वो उत्तर पुस्तिका कोलकाता से बिहार नहीं आ सका है. जिसमें अंग्रेज परीक्षक ने एतिहासिक टिप्पणी की है इस विद्यालय के शिक्षक व छात्र जिला स्कूल को एक धरोहर के रूप में देखते है.

राजेन्द्र बाबु की गौरव गाथा सुन एक घंटे की दूरी तय करके आती है स्कूल में पढ़ाई करने लेकिन स्कूल प्रशासन की लापरवाही कहा जाये या पढ़ाई करने वाले छात्रों की लापरवाही छात्रों की उपस्थिति नगण्य रहती है. यही कारण है कि एक घंटे की दूरी तय करने वाली आरती को लंच के समय वगैर पढ़ाई किये वापस वैरंग लौटना पड़ता है. आरती ने स्वराज खबर के संवाददाता से बातचीत के दौरान अपनी आपबीती सुनाते हुए कहती है कि मैंने अपने पिता जी से देशरत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद और जिला स्कूल के बारे में मालूम हुआ तो मेरी इच्छा हुई कि मैं भी उसी स्कूल में अपना नाम लिखवाऊंगी लेकिन यहां सिर्फ लड़को की पढ़ाई होती है तो मैंने इसी परिषर ने स्थापित नव पदस्थापित स्कूल में नाम लिखवा ली और पढ़ाई करने बहुत दूर से आती हूं लेकिन वगैर पढ़ाई के वापस लौटना पड़ता है.

राजकीय इंटर कॉलेज जिला स्कूल को मॉडल स्कूल का दर्जा प्राप्त है लेकिन सुविधा के नाम पर कुछ भी नही है इस विद्यालय के कोने-कोने में राजेन्द्र प्रसाद की यादें जुड़ी हुई है. लेकिन स्कूल की वर्तमान दशा व दिशा देख कर ऐसा नही लगता की इसका इतिहास इतना गौरवशाली रहा होगा. जर्जर भवन शिक्षा की बुनियादी सुविधाओं का अभाव के बावजूद उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में दो दर्जन शिक्षक है जो छात्रों को पठन पाठन के अलावे अन्य गतिविधियों की शिक्षा देने का कार्य करते है.

विद्यालय परिषर में शिक्षा विभाग का अतिक्रमण खुद शिक्षा विभाग ऩे ही किया है और क्लास रूम में शिक्षा विभाग के आठ कार्यालय संचालित होते है जिसका प्रतिकूल प्रभाव भी पठन पाठन पर पड़ता है विद्यालय के कई प्राचार्य आये और चले गए लेकिन अतिक्रमण मुक्त कराने में सफलता नही मिली कारण की खुद विभाग ही अतिक्रम कर चैन की नींद सो गई है. समय रहते अगर शिक्षा विभाग शिक्षा के इस मंदिर को संरक्षित नही किया तो वो दिन भी दूर नही जब गौरवशाली अतीत वाला यह स्कूल इतिहास के पन्नो में दफ़न हो जाये जरुरत है इसे सजाने व संवारने की जिससे छात्रों को राजेंद्र बाबु की तरह बनने का प्रेरणा मिले.

रिपोर्ट : रंजीत

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