रांची: राजनीति में उठापटक हमेशा से चलती आ रही है, लेकिन इस बार ‘इंडिया’ के घटक दलों के बीच सीटों को लेकर जो विवाद हो रहा है, वह एक नये मोड़ की ओर बढ़ रहा है। सभी पार्टियों की सूची फाइनल हो गई है, लेकिन धनवार, विश्रामपुर और छतरपुर की सीटों पर आपसी भिड़ंत तय है।
धनवार में माले के राजकुमार यादव और झामुमो के निजामुद्दीन अंसारी आमने-सामने हैं। दोनों दलों के बीच अंतिम समय तक समझौता नहीं हो पाया, जिससे स्थिति और पेचीदा हो गई है। यहां पर यह मानना है कि जैसे दो भाई एक ही बंटवारे को लेकर आपस में भिड़ जाते हैं, वैसे ही ये दल भी अपनी राजनीतिक जमीन के लिए एक-दूसरे से टकरा रहे हैं। माले ने झामुमो को स्पष्ट किया था कि वह अपनी स्थिति पर अडिग रहेगा, लेकिन झामुमो भी पीछे हटने को तैयार नहीं था। नतीजतन, भाई-भाई की तरह दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ खड़े होने का निर्णय लिया है।
वहीं, छतरपुर में कांग्रेस के राधाकृष्ण किशोर और राजद के विजय कुमार की स्थिति भी इसी तरह की है। दोनों दल अपने-अपने प्रत्याशियों के प्रति प्रतिबद्ध हैं, और न तो किसी प्रकार का समझौता करने को तैयार हैं। यह स्थिति एक परिवार में बंटवारे की तरह है, जहां भावनाएं और प्रतिवाद एक-दूसरे को कमजोर करने के बजाय और मजबूत कर रहे हैं।
विश्रामपुर में भी कांग्रेस के सुधीर कुमार चंद्रवंशी और राजद के नरेश प्रसाद सिंह के बीच टकराव की संभावना है। दोनों दल अपने-अपने उम्मीदवारों को लेकर उतने ही उत्सुक हैं, जितने कि बंटवारे के समय भाई अपनी हिस्सेदारी को लेकर होते हैं।
इन घटनाक्रमों को देख कर लगता है कि यह न केवल राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता है, बल्कि ‘हट बंधन’ के इस खेल में भाई-भाई की तरह एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हैं।
इस बार, ‘इंडिया’ के घटक दलों के बीच की यह लड़ाई सिर्फ एक चुनावी संघर्ष नहीं है, बल्कि यह दर्शाती है कि राजनीति में एक साथ रहने का वादा कितना कमजोर हो सकता है। क्या यह सीटों का बटवारा अंततः दोनों दलों के रिश्तों में दरार ला देगा, या फिर किसी समाधान की ओर ले जाएगा? यह तो भविष्य ही बताएगा, लेकिन इस समय जो हालात हैं, वे दर्शाते हैं कि राजनीति में आपसी विश्वास और भाईचारे का क्या महत्व होता है।