रांची: झारखंड की राजनीति के इतिहास में एक अजब संयोग ने राज्य के हर मुख्यमंत्री को सोचने पर मजबूर किया है। राज्य गठन के बाद से अब तक सत्ता पर काबिज हर मुख्यमंत्री को किसी न किसी चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। ऐसा संयोग, जिसने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे हर नेता की नींद उड़ाई है और हर चुनाव को उनके लिए दहशत का पर्याय बना दिया है।
Highlights
मुख्यमंत्रियों का हार का इतिहास
पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी से लेकर वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तक, सभी ने कभी न कभी चुनावी हार का स्वाद चखा है। इनमें से कुछ तो मुख्यमंत्री रहते हुए ही चुनाव हार गए।
- बाबूलाल मरांडी: झारखंड के पहले मुख्यमंत्री, 2014 के विधानसभा चुनाव में भाकपा (माले) के राजकुमार यादव से हार गए।
- शिबू सोरेन: तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे दशो गुरु 2009 के तमाड़ उपचुनाव में राजा पीटर से हार गए।
- अर्जुन मुंडा: तीन बार मुख्यमंत्री बने मुंडा, 2014 में खरसावां सीट पर हार गए।
- मधु कोड़ा: राज्य के पहले निर्दलीय मुख्यमंत्री, 2014 में नीरल पूर्ति से चुनाव हारे।
- रघुवर दास: 2019 के चुनाव में जमशेदपुर पूर्वी सीट पर निर्दलीय सरयू राय से हार गए।
- हेमंत सोरेन: 2014 में दुमका सीट पर भाजपा की लुईस मरांडी से पराजित हुए थे।
चुनाव 2024: क्या बदलेगा इतिहास?
2024 के विधानसभा चुनाव में दो पूर्व मुख्यमंत्री मैदान में हैं।
- हेमंत सोरेन: बरहेट सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, जहां जीत की संभावनाएं प्रबल हैं।
- बाबूलाल मरांडी: राजधनवार सीट पर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। हालांकि शुरुआती बगावत की स्थिति अब नियंत्रण में है, और जीत की संभावना बढ़ी है।
बाकी दिग्गज कहां हैं?
- अर्जुन मुंडा लोकसभा चुनाव हारने के बाद विधानसभा चुनाव से दूर हैं।
- मधु कोड़ा और उनकी पत्नी गीता कोड़ा ने भी अपनी चुनावी मौजूदगी कम कर दी है।
- शिबू सोरेन स्वास्थ्य कारणों से राजनीति से दूर हैं।
- रघुवर दास अब उड़ीसा के राज्यपाल हैं।
टोने-टोटके और बेचैनी का दौर
झारखंड की चुनावी राजनीति में यह ‘हार का इतिहास’ हर मुख्यमंत्री को असहज करता है। सत्ता पर रहते हुए चुनाव हारने का डर नतीजों के आने तक उन्हें बेचैन रखता है।
क्या 2024 का चुनाव इस मिथक को तोड़ पाएगा? क्या झारखंड के मुख्यमंत्री अपनी जीत का सिलसिला बरकरार रख पाएंगे? यह देखना दिलचस्प होगा।