वाराणसी कोर्ट ने जमीन पट्टा फर्जीवाड़े में पूर्व ग्राम प्रधान समेत 13 को भेजा जेल, 30 साल बाद हुआ फैसला

वाराणसी : वाराणसी कोर्ट ने जमीन पट्टा फर्जीवाड़े में पूर्व ग्राम प्रधान समेत 13 को भेजा जेल, 30 साल बाद हुआ फैसला। वाराणसी कोर्ट ने जमीन पट्टा के फर्जीवाड़े के मामले में 30 साल बाद फैसला सुनाते हुए पूर्व ग्राम समेत 13 को दोषी पाया। सभी दोषीसिद्ध आरोपियों को वाराणसी कोर्ट ने जेल भेजने का आदेश दिया है।

पूरे मामले का वाराणसी कोर्ट से मिले ब्योरे के मुताबिक, प्रकरण पूर्वांचल के ही सोनभद्र जिले का है और इसकी सुनवाई वाराणसी कोर्ट में की जा रही थी। यह मामला 30 साल पुराना है। इसमें फर्जीवाड़ा कर ग्राम सभा की जमीन का पट्टा कराने का आरोप था।

इस फर्जीवाड़े में लिप्त रहे की नाम शामिल थे। करीब 30 साल पुराने मामले में अब वाराणसी के विशेष न्यायाधीश चतुर्थ (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) रविन्द्र कुमार श्रीवास्तव ने सोनभद्र जिला के बड़हर परगना के मूर्तिया गांव निवासी व पूर्व प्रधान विजय कुमार सिंह समेत 13 आरोपियों को दोषीसिद्ध करार दिया है।

उसी क्रम में सभी दोषियों को उनके अपराधों के अनुरूप सजा का ऐलान किया है।

आरोपियों को 3 से 4 साल की कारावास

वाराणसी कोर्ट से इस मामले में मिले ब्योरे के मुताबिक, ग्राम सभा की जमीन के पट्टा करने में हुए फर्जीवाड़े में दोषी मिले सोनभद्र जिला के बड़हर परगना के मूर्तिया गांव निवासी व पूर्व प्रधान विजय कुमार सिंह को 4 साल के कारावास एवं 30 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है।

जुर्माना न देने पर चार माह अतिरिक्त कारावास की सजा भुगतनी होगी। इसी मामले में अदालत ने दोषीसिद्ध पूर्व प्रधान विजय कुमार सिंह के भाई इंद्र कुमार सिंह के अलावा अन्य दोषियों वीरेंद्र सिंह,महेंद्र सिंह,सतीश सिंह,राजकुमार सिंह, हरिश्चंद्र, भोलानाथ, मुनेश्वर, जगेश्वर, पंकज सिंह, सुशीला देवी एवं श्याम नारायण को 3-3 वर्ष के कारावास एवं 10-10 हजार रुपये के अर्थदंड से दंडित किया है।

अर्थदंड न देने पर 30-30 दिन अतिरिक्त कारावास की सजा भुगतनी होगी।

वाराणसी कोर्ट
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वर्ष 1995 में हुई थी इस फर्जीवाड़े की शिकायत…

वाराणसी कोर्ट से इस मामले सुनाए गए फैसले में पूरे फर्जीवाड़े का कहानी और ब्योरे का उल्लेख है। अदालत में अभियोजन पक्ष की ओर से एडीजीसी संतोष कुमार तिवारी ने पैरवी की।

अभियोजन पक्ष के अनुसार मूर्तिया गांव में ग्राम समाज व उत्तर प्रदेश प्रदेश सरकार की भूमि को पट्टे में दिए जाने के संबंध में अनियमितता और भ्रष्टाचार करने की शिकायत तत्कालीन विधायक रामलोटन सिंह व गांव के लोगों ने वर्ष 1995 में शिकायत की थी।

इसकी जांच की जिम्मेदारी भ्रष्टाचार निवारण संगठन अपराध अनुसंधान विभाग वाराणसी को सौंपी गई। जांच के बाद तत्कालीन निरीक्षक देवेन्द्र प्रताप यादव ने आरोपितों के खिलाफ घोरावल थाना में फर्जीवाड़ा एवं भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया।

इस मामले में इसमें राजस्वकर्मी भी तत्कालीन प्रधान के साथ शामिल होकर भ्रष्टाचार के दोषी मिले।

वाराणसी कोर्ट
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30 साल पुराने मुकदमे की सुनवाई अवधि में 6 आरोपियों की हुई मौत

इस 30 साल पुराने मुकदमे की सुनवाई के दौरान लेखपाल शिवनारायण, कानूनगो त्रिभुवन राम चौबे समेत 6 आरोपियों की मृत्यु हो चुकी है।

दर्ज फर्जीवाड़े के मुकदमे की विवेचना में फर्जीवाड़ा एवं भ्रष्टाचार करने की पुष्टि करते हुए विवेचनाधिकारी ने मूर्तियां गांव के प्रधान रहे विजय कुमार सिंह, क्षेत्रीय लेखपाल शिवनारायण लाल, कानूनगो त्रिभुवन राम चौबे समेत 19 लोगों के खिलाफ अदालत में आरोपपत्र प्रेषित कर दी।

आरोपपत्र में गलत नाम पता और फर्जीवाड़ा कर पट्टे पर जमीन अपने नाम कराने के साक्ष्य भी संलग्न किया गया था। आरोपपत्र में कहा गया कि उक्त लेखपालों,कानूनगो व नायब तहसीलदार ने पट्टों का जानबूझकर सही सत्यापन न करके पट्टीदारों को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए फर्जी दस्तावेज तैयार करने में भरपूर सहयोग किया गया।

मुकदमे की सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष की दलील थी कि अभियुक्तों ने साजिश रचकर सार्वजनिक संपत्ति का पट्टा पिता-पति का फर्जी नाम लिखकर जिस गांव के रहने वाले नहीं हैं वो भी उस गांव के निवासी बनकर,पट्टा प्राप्त कर लिए और खतौनी में नाम दर्ज कराकर भूमि पर काबिज हो गए।

अब 30 साल बाद आए फैसले पर जहां पीड़ित पक्ष ने कानून और न्यायपालिका पर भरोसा जताया है तो सजायाफ्ता पक्ष मीडिया के सामने भी आने से बचता रहा।

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