Thursday, August 7, 2025

Related Posts

धागा से लेकर वस्त्र तक बना रही महिलाएं, पति रख रहे बिजनेस का हिसाब किताब

गयाजी : सात अगस्त यानी आज को राष्ट्रीय हस्तकरघा दिवस है। गयाजी में महिलाएं हस्तकरघा दिवस की सुंदरता को बढ़ा रही है। दरअसल, गयाजी के पटवा टोली की महिलाएं सिर्फ किचन ही नहीं बल्कि अपनी हैंडलूम-पावरलूम की फैक्ट्री भी संभाल रही है। एक और जहां महिलाएं बुनकरी में अग्रणी भूमिका निभा रही, खुद धागा से लेकर वस्त्र का निर्माण कर रही तो दूसरी ओर पति (घर के पुरुष) बिजनेस का हिसाब किताब रख रहे हैं। उनका काम मार्केटिंग संभालना है।

मैं सिर्फ किचन नहीं.. बल्कि फैक्ट्री भी संभालती हूं

मैं सिर्फ किचन नहीं बल्कि हैंडलूम-पावरलूम की फैक्ट्री भी संभालती हूं। सीता देवी छोटन हैंडलूम में काम कर रही है। सीता देवी धागा बुन रही है। वह धागा ही नहीं बुनती, बल्कि खुद पूरी फैक्ट्री चलाकर वस्त्रो का निर्माण भी करती है। सीता देवी के साथ घर की और भी महिलाएं इस निर्माण में जुटी हुई है। राष्ट्रीय हस्तकरघा दिवस पर यह सुंदर तस्वीर पटवा टोली की है. पटवा टोली बुनकरों की नगरी है। यहां पटवा समुदाय के दो हजार से अधिक घर हैं। पटवा समाज के लोग पूरी तरह से पारंपरिक रूप से बुनकरी से जुड़े हुए हैं।

बुनकरों का गांव है पटवा टोली

गया का पटवा टोली बुनकरों का गांव है। इसे बिहार का मैनचेस्टर कहा जाता है। यहां का निर्मित वस्त्र देश के दर्जन भर राज्यों में सप्लाई होता है। बिहार, बंगाल, झारखंड और उड़ीसा में यहां के वस्त्रों की विशेष डिमांड होती है। क्योंकि यहां के वस्त्र पूरी कारीगरी से बनाए जाते हैं। सुंदर कारीगरी में वस्त्र निर्माण के लिए पटवा टोली काफी प्रसिद्ध है। यही वजह है कि इसे बिहार का मैनचेस्टर कहा जाता है। मानपुर के पटवा टोली में दो हजार से अधिक घर बुनकरो के हैं। तकरीबन 15 हजार की आबादी बुनकरी से जुड़े पटवा समुदाय की है। यहां का सालाना बिजनेस तकरीबन चार सौ करोड़ यानी चार अरब का है। इसी प्रकार यहां दो हजार से अधिक हैंडलूम संचालित हैं तो 10 हजार के करीब पावर लूम संचालित है। देश का सबसे बड़ा हस्तकरघा उद्योग आज भी गया के पटवा टोली में पारंपरिक तौर से जीवंत है।

हस्तकरघा दिवस पर पटवा टोली में आधी आबादी की सुंदर तस्वीर

हस्तकरघागा भारतीय परंपरा की एक पहचान है। गया का पटवा टोली वस्त्र उद्योग के लिए देशभर में प्रसिद्ध है। राष्ट्रीय हस्तकरघा दिवस पर आधी आबादी कही जाने वाली महिलाएं पटवा टोली के बुनकरी उद्योग में सुंदर तस्वीर पेश कर रही है। पटवा समाज की महिलाएं न सिर्फ अपने कामकाज को संभाल रही, किचन से लेकर घरेलू काम को भी निपटा रही, बल्कि हैंंडलूूम- पावरलूम की फैक्ट्रियां भी संचालित कर रही है। पटवा टोली की सीता देवी के पति हिसाब किताब में जुटे हुए हैं। सीता देवी धागे बुन रही है। इन धागों से वस्त्रो का निर्माण होता है। गमछे, चादर, धोती और आदिवासी साड़ी समेत अन्य वस्त्र तैयार किए जाते हैं। वह बताती है कि हमारे पास आज भी कई हैंडलूम है जो कि हाथों से चलाते हैं लेकिन अब धीरे-धीरे आधुनिकता के दौर में पावरलूम भी आ गया है तो हैंडलूम के साथ-साथ पावरलूम भी हम लोग चला रहे हैं। हस्तकरघा की जो परंपरा थी वह आज भी चल रही है। हैंडलूम और पावर लूम दोनों से धागे बनाते हैं। वस्त्रों का निर्माण करते हैं। सीता देवी बताती है कि इसमें मेहनत काफी ज्यादा है।

पहले देहरी से नहीं निकलती थी महिलाएं, अब संभाल रही हैंडलूम का कारोबार

सीता देवी बताती हैं कि पहले हम लोग देहरी भी पार नहीं करते थे। कई तरह की बंधन थे लेकिन हालिया सालों में काफी कुछ बदला है। पटवाटोली में पहले हैंडलूम-पावरलूम पुरुष चलाते थे। दिन-रात की मेहनत से थक जाते थे। ऐसे में पटवा टोली की महिलाओं ने सहमति बनाई कि जब घर में ही रहना है तो क्यों न घर के किचन के काम काज के साथ-साथ बुनकरी का उद्योग भी संभाला जाए। इसके बाद से फैक्ट्री में निर्माण कार्य हमने संभाल लिया है। अब जितने भी वस्त्रों का निर्माण होता है। वे लोग करती है। पति सिर्फ बिजनेस देखते हैं। मार्केटिंग हिसाब किताब का लेखा-जोखा रखते हैं। कहां माल सप्लाई करनी है, यह उन्हीं के जिम्मे है।

यह भी देखें :

आर्थिक मजबूती आई तो दुगने जोश से हो रहा काम

पहले पटवाटोली में सभी हैंडलूम पावरलूम कारीगरों पर निर्भर था लेकिन महिलाओं ने कमान संभाली तो अब काफी संख्या में हैंडलूम के कारोबारी (हैंडलूम संचालक) आत्मनिर्भर से हो गए हैं। घर की सारी महिलाएं अब एक होकर हैंडलूम-पावरलूम चला रही है और वस्त्रो का निर्माण कर रही है। इससे जहां निर्माण कार्य बढ़ा है। वही, खर्चे में कमी आ गई है। क्योंकि पहले खर्च बाहरी कारीगरों के कारण काफी बढ़ जाता था। अब यह बच जाता है। वही, काम भी बेहिसाब होता है, यानी की समय की कोई पाबंदी नहीं रहती। इससे बचत ज्यादा बढ़ी है। पहले छोटन हैंडलूम चलाकर 50 हजार कमाते थे। अब 60-70 हजार रुपए महीने आराम से कमा रहे हैं। इस तरह दूसरे पर निर्भरता घटी है और पटवा टोली की महिलाओं ने खुद को आत्मनिर्भर बनाया है। महिलाएं जब खुद हैंडलूम पावरलूम की फैक्ट्रियां संभाल रही है तो पहले कभी-कभी होने वाले घाटे के बाद इसे बंद करने का जो विचार आता था, वह एकदम से खत्म हो गया है।

बंद कर देते फैक्ट्रियां

वही छोटन प्रसाद बताते हैं कि अब पटवा टोली में हैंडलूम-पावरलूम से वस्त्रो का निर्माण में अब उतनी बचत नहीं रह गई है, जितनी पहले थी। कंप्टीशन का भी दौर है। कम इनकम के कारण हमने सोचा था कि इस व्यवसाय को बंद कर देंगे। किंतु जब घर की महिलाएं आगे आई तो एक नया जोश उत्साह आया। अब घर की महिलाएं धागे से लेकर वस्त्रों का निर्माण कर रही है और मैं हिसाब किताब रखता हूं। मार्केटिंग का पूरा काम मैं संभालता हूं। कहां कितना माल सप्लाई करने हैं उसका हिसाब किताब रखता हूं। पटवा टोली से बिहार, झारखंड, बंगाल और उड़ीसा समेत अन्य राज्यों में वस्त्र जाते हैं। इसका हिसाब किताब रखना भी काफी मुश्किल होता था, लेकिन अब सब कुछ आसान हो गया है। घर की महिलाओं ने पूरी तस्वीर बदल कर रख दी है। अब इनकम में वृद्धि होने से बुनकारी के धंधे को और बढ़ावा देने की सोच रहे हैं। पहले सालाना 15-20 लाख का टर्नओवर होता था। किंतु जब से महिलाओं ने कमान संभाली है तो यह रेंज बढा है। वहीं, पहले 50 से 60 हजार कमाई होती थी, वह कमाई भी बढ़ गई है।

यह भी पढ़े : पुनौरा धाम मंदिर में चल रही जोर-शोर से तैयारी, सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम

आशीष कुमार की रिपोर्ट

127,000FansLike
22,000FollowersFollow
587FollowersFollow
562,000SubscribersSubscribe