Garhwa : पूरे देश के साथ-साथ झारखंड में भी लोकसभा चुनाव खत्म हो चुकी है। अब इसके साथ ही राज्य में विधानसभा चुनाव का भी बिगुल बज चुका है जिसको लेकर राज्य की तमाम पार्टियां इसकी तैयारियों में जुट गई है। हमारे खास प्रोग्राम सीट स्कैनर के तहत गढ़वा विधानसभा सीट का स्कैन करेंगे और जानेंगे गढ़वा सीट का हाल।
गढ़वा जिले में राज्य की दो विधानसभा क्षेत्र आती है एक गढ़वा और दूसरा भवनाथपुर। वर्तमान में गढ़वा सीट से मिथलेश ठाकुर जेएमएम से चुनाव जीतकर सरकार में मंत्री है तो वहीं भवनाथपुर से बीजेपी से भानूप्रताप शाही विधायक हैं।
भाजपा का जोर फिर से जीते गढ़वा सीट
झारखंड में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव राजनीतिक दृष्टिकोण से काफी अहम माना जा रहा है। भाजपा जहां महागठबंधन सरकार को सत्ता से हटाकर राज्य की सत्ता में अपनी वापसी कर डबल इंजन की सरकार बनाने की तैयारी में है तो वहीं लोकसभा चुनाव के नतीजों से उत्साहित इंडिया गठबंधन एक बार फिर सत्ता पर काबिज होने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा रहे हैं। चुनावी जंग जीतने के लिए राजनीतिक दलों के अंदर बैठकों का दौर लगातार जारी है।
भाजपा झारखंड विधानसभा चुनाव फतेह करने के लिए पूरी ताकत लगाती दिख रही हैं इसलिए तो पार्टी ने अपने कद्दावर नेता केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा लगातार झारखंड का दौरा कर रहे है। दोनों ही नेता पार्टी के नेताओं में जान फूंकने का काम कर रहे हैं और लगातार राज्य का दौरा कर रहे हैं।
अगर बात करें गढ़वा विधानसभा सीट की तो ये सीट पहली बार 1952 में अस्तित्व में आयी। इस सीट पर शुरुआत में 20 सालों तक कांग्रेस का कब्जा रहा तो वहीं 1980 के बाद इस सीट पर बीजेपी और राजद का कब्जा रहा है। साल 2019 में पहली बार झारखंड मुक्ति मोर्चा ने इस सीट पर जीत दर्ज की है।
Garhwa : शुरुआती चुनाव में कांग्रेस का रहा है दबदबा
वर्ष 1952 में इस सीट पर हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के राजकिशोर सिन्हा पहली बार विधायक बने थे। इसके बाद 1957 में कांग्रेस की राजेश्ववरी सरोज दास इस सीट से जीतकर पहली बार विधानसभा की सीढ़ी चढ़ी। 1962 में हुए तीसरे चुनाव में स्वतंत्र पार्टी के गोपीनाथ सिंह ने यह सीट कांग्रेस से छीन ली, लेकिन 1967 में लक्ष्मी प्रसाद ने इस सीट पर जीत दर्ज कर यह सीट वापस कांग्रेस की झोली में डाल दिया।
1972 के चुनाव में अवध किशोर तिवारी ने जीत दर्ज करते हुए कांग्रेस की इस सीट को बरकरार रखा। 1977 में जनता पार्टी की लहर में गढ़वा विधानसभा सीट कांग्रेस के हाथ से चली गई पर उसके अगले ही साल 1980 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने फिर से वापसी करते जीत दर्ज की। कांग्रेस के युगल किशोर पांडेय ने इस सीट पर जीत दर्ज किया।
अगर बात करें 1990 की तो गढ़वा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी युगल किशोर पांडेय भाजपा के गोपीनाथ सिंह से महज कुछ वोटों के अंतर से हार गए थे। इसके बाद से कांग्रेस ऐसी कमजोर हुई कि फिर उसने अकेले दम पर चुनाव लड़ने के बजाय गठबंधन धर्म में सिमट गई।
Garhwa : राजद ने 1993 से 2005 तक लगातार जीते हैं चुनाव
गढ़वा सीट पर कांग्रेस के अलावा अगर किसी पार्टी की कब्जा रहा है तो वो राजद है। राजद ने 4 बार सीट पर अपना दबदबा बनाए रखा था। राजद ने यहां 1993 में हुए उपचुनाव से लेकर 1995, 2000 और 2005 में लगातार जीत दर्ज की थी। इन सभी चुनावों में राजद से गिरिनाथ सिंह यहां से विजेता रहे थे।
वहीं भाजपा ने यह सीट 1985, 1990 और 2014 में तीन बार जीती। दिलचस्प बात ये है कि भाजपा के टिकट पर 1985 और 1990 दोनों बार गिरिनाथ सिंह के पिता गोपीनाथ सिंह ने जीत दर्ज की थी। इस सीट पर अब तक सबसे ज्यादा 30 सालों तक स्वतंत्र पार्टी, भाजपा, राजद को मिलाकर गिरिनाथ सिंह के परिवार का कब्जा रहा है। इस परिवार से साल 2009 में झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर सत्येंद्रनाथ तिवारी ने यह सीट छीन कर कर अपने पाले में कर लिया था।
2019 में हुए विधानसभा चुनाव में गढ़वा सीट पर भारी उलटफेर हुआ और आज तक इस सीट पर कभी चुनाव नहीं जीतने वाली पार्टी झामुमो प्रत्याशी मिथिलेश कुमार ठाकुर ने पहली बार जीत दर्ज की। उन्होंने बीजेपी के सत्येन्द्र नाथ तिवारी को हार का स्वाद चखाते हुए इस सीट पर काबिज हो गए। झामुमो को पहली बार गढ़वा सीट पर जीत हासिल हुई….. पहली बार विधायक बनने वाले मिथिलेश कुमार ठाकुर को हेमंत सोरेन की कैबिनेट में मंत्री बनाया गया। हालांकि इस सीट पर जेएमएम और बीजेपी के बीच वर्चस्व की लड़ाई अभी भी जारी है।
2019 के चुनाव में जेएमएम ने सबको चौंकाया
गढ़वा विधानसभा सीट पर राजनीतिक लड़ाई तो जारी है, पर यहां के तमाम मुद्दों और समस्याओं से बेशक मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है। यहां की मुख्य समस्याओं में बेरोजगारी, पलायन, सुखाड़ आदि शामिल है।
बहरहाल विधानसभा चुनाव को लेकर तमाम पार्टीयों ने कमर कस ली है। सभी पार्टियां जीतोड़ मेहनत करने के साथ अपने मुद्दो को जनता के बीच भूनाने में कोई कोई कसर नहीं छोड़ रही है। देखने वाली बता होगी कि क्या एक बार फिर से जेएमएम गढ़वा सीट पर जमी रहेगी या फिर बीजेपी वापस से इस सीट को अपने पाले में करने में कामयब होगी। या फिर इन सब के बीच कुछ और समीकरण बनेंगे।