डिजिटल डेस्क : चर्चा में भाजपा की 4 विरोधी पार्टियों का वन नेशन वन इलेक्शन बिल को समर्थन देना। लोकसभा में मंगलवार को पेश होने और स्वीकार किए जाने के पास विस्तृत चर्चा के लिए जेपीसी को भेजे गए वन नेशन-वन इलेक्शन विधेयक को भाृजपा के 4 विरोधी राजनीतिक दलों के स्टैंड सबसे ज्यादा सुर्खियों में है।
इन दलों के सियासी गणित और स्टैंड पर चर्चा जारी है। इसमें उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक के सियासी दल शामिल हैं। जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर आंध्र प्रदेश में विपक्ष की भूमिका में है, लेकिन उसने बिल का समर्थन करने का फैसला किया।
इसी तरह मायावती भाजपा के विरोध में चुनाव लड़ती रही है, लेकिन उनकी पार्टी ने वन नेशन-वन इलेक्शन का समर्थन कर दिया है। ओडिशा के नवीन पटनायक भी बिल के समर्थन में रहे हैं। हालांकि, बिल पर वोटिंग के दौरान पार्टी का रुख क्या होगा। इस पर कोई फैसला नहीं हो पाया है। बीजेडी के पास राज्यसभा में 7 सांसद हैं।
मायावती के इस बिल को समर्थन देने के पीछे की सियासी वजहें…
मायावती की पार्टी बसपा (बहुजन समाज पार्टी) यूपी, एमपी, राजस्थान और पंजाब की सियासत में सक्रिय है। बसपा इनमें भाजपा के विरोध में ही चुनाव लड़ती रही है। बावजूद इसके मायावती ने वन नेशन-वन इलेक्शन का समर्थन कर दिया है। मायावती ने 3 बड़ी वजहों से बिल का समर्थन किया है।
पहली वजह चुनावी चंदा है। बिल के समर्थन की दूसरी वजह क्रेडिट की लड़ाई है। साल 2007 में जब यह मामला उठा था, तब मायावती ने सबसे पहले इसका समर्थन किया था। ऐसे में मायावती इसका विरोध कर क्रेडिट की लड़ाई में पीछे नहीं रहना चाहती है।
वन नेशन-वन इलेक्शन के समर्थन की तीसरी वजह मायावती के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। मायावती के पास पूरे देश में वर्तमान में 5 विधायक और जीरो लोकसभा सांसद हैं।
बिल के संबंध में मायावती ने समर्थन का पत्र जारी करते हुए बयान जारी कर कहा है कि – ‘यह बिल गरीब और मजलूमों के हित में है। बिल के आने से चुनाव का खर्च कम होगा और यह बसपा के भी हित में है। चुनाव एक साथ होने से पार्टी पर बोझ कम होगा। हमारी पार्टी को उद्योगपतियों से चंदा नहीं मिलता है, जिसकी वजह से अलग-अलग चुनाव लड़ने में मुश्किलें आती है’।
नवीन पटनायक ने अपनाया बीच का रास्ता, अपनी सियासी साख बचाने के दांव में बिल के पक्ष में…
वन नेशन वन इलेक्शन बिल पर 3 महीने पहले ओडिशा के पूर्व सीएम नवीन पटनायक ने अपना बयान दिया था। उस वक्त सभी बिल पर स्टडी करने की बात कही थी। उसके बाद पटनायक ने इस बिल पर चुप्पी साध ली है। पार्टी के राज्यसभा सांसद सस्मित पात्रा का कहना है कि अभी हमने इस पर फाइनल फैसला नहीं किया है।
नवीन पटनायक के पास वर्तमान में राज्यसभा के 7 सांसद हैं। ऐसे में पटनायक के सामने अभी सबसे बड़ी चुनौती अपने सांसदों को बचाने की है। साल 2024 में हार के बाद पटनायक के 2 सांसद पार्टी छोड़ चुके हैं। बताया जा रहा है कि पटनायक इस मुद्दे पर ज्यादा मुखर होना नहीं चाहते हैं, जिससे वोटिंग के दौरान उनके सभी सांसद एनडीए की तरफ खिसक जाएं।
ओडिशा के सियासी गलियारों में हाल ही में पटनायक की पार्टी के 7 सांसदों के भाजपा में जाने की खबरें चल रही है। हालांकि, मंगलवार को इन सांसदों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस दावे को खारिज करने की कोशिश की है। ओडिशा में लोकसभा के साथ ही विधानसभा के चुनाव होते रहे हैं और नवीन पटनायक ने ही इसकी पहल की थी। ऐसे में पटनायक खुलकर इसका विरोध भी नहीं कर सकते हैं।
बिल को वाईएसआर कांग्रेस के समर्थन देने के पीछे भी हैं गूढ़ सियासी वजहें…
दक्षिण में जगनमोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस भी वन नेशन-वन इलेक्शन के समर्थन में है। पार्टी इस विधेयक को पहले ही राष्ट्रहित में बता चुकी है। वाईएसआर आंध्र की सियासत में सक्रिय है और अभी एनडीए के विरोध की राजनीति कर रही है। आंध्र में भाजपा, टीडीपी और जनसेना पार्टी की सरकार है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर जगनमोहन रेड्डी की पार्टी इसके समर्थन में क्यों है? दरअसल, आंध्र प्रदेश में पहले से ही लोकसभा के साथ विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं। वाईएसआर आंध्र की ही सियासत करती है तो उसे विरोध करके भी कोई ज्यादा फायदा नहीं होने वाला है। जगनमोहन रेड्डी के सामने पार्टी बचाने की भी चुनौती है। आंध्र में हार के बाद वाईएसआर के 2 सांसद पार्टी छोड़ चुके हैं।
जम्मू कश्मीर के गुलाम नबी आजाद भी हैं लोकसभा में स्वीकृत हुए बिल के समर्थन में, जाने वजहें…
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद भी इस बिल का समर्थन कर रहे हैं। उनकी राजनीति भाजपा विरोध की ही रही है। वर्तमान में आजाद के पास कोई सांसद नहीं है। इसके बावजूद उनका समर्थन सरकार के लिए राहत की बात है। दरअसल, आजाद की गिनती देश की सियासत में मुसलमानों के बड़े चेहरे के रूप में होती रही है। बता दें कि आजाद वन नेशन-वन इलेक्शन को लेकर बनाई गई कोविंद कमेटी के भी सदस्य रहे हैं।