डिजिटल डेस्क । मोहन भागवत : पूरे हिंदू समाज को एकजुट करना चाहता है RSS । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने पश्चिम बंगाल के बर्दवान में अपने 10 दिवसीय प्रवास के दौरान रविवार को संघ के स्वयंसेवकों की एक बड़ी सभा को संबोधित किया।
Highlights
कोर्ट की अनुमति से आयोजित हुई इस सभा को संबोधित करते हुए डॉ. मोहन भागवत ने एक लाइन में RSS की कार्ययोजना और मौजूदा लक्ष्य का खुलकर जिक्र किया।
डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि – ‘…यह आग्रह क्यों है? संघ क्या करना चाहता है? एक वाक्य में इस प्रश्न का उत्तर देना हो तो संघ संपूर्ण हिंदू समाज का संगठन करना चाहता है। हिंदू समाज का संगठन क्यूं? क्योंकि इस देश का उत्तरदायी समाज हिंदू समाज है।’
बोले भागवत – समाज को संगठित करना ही RSS का काम
इसी क्रम में RSS के प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने आगे कहा कि – ‘…हिंदू समाज का मानना है कि एकता में ही विविधता समाहित है। हम आजकल कहते हैं विविधता में एकता, हिन्दू समझता है कि एकता की ही विविधता है। संघ का उद्देश्य केवल हिन्दू समाज को एकजुट करना है।
…एक लाख 30 हजार से ऊपर देश भर में स्वयंसेवक हैं। वो किसी से कोई पैसा नहीं लेते हैं…वो अपने दम पर काम करते हैं। इसलिए हम कह रहे हैं, हम यशस्वी होने के लिए ऐसा नहीं कर रहे।
…भारत की उन्नति में अपना सार्थक योगदान देने के लिए ऐसा कर रहे हैं। ….संघ ने उन्हें बस संस्कार और विचार दिया है, प्रेरणा दी है। …संघ को एक ही काम करना है, समाज को संगठित करना और समाज का निर्माण करना।’
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डॉ. मोहन भागवत की दो टूक – भारत कोई भूगोल नहीं…
RSS के प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने अपने संबोधन में गूढ़ संदेश दिया। कहा कि – ‘…भारतवर्ष केवल एक भूगोल नहीं है केवल। भूगोल तो छोटा बड़ा होते रहता है। परंतु भारत तब कहा जाता है जब उसका एक स्वभाव होता है। भारत का एक स्वभाव है।
…उस स्वभाव के साथ हम नहीं रह सकते, ऐसा जिनको लगा उन्होंने अपना अलग देश बना लिया। तो स्वाभाविक ही है कि जो नहीं बिछड़े…उन सबको भारत नाम का स्वभाव चाहिए। …और वो भारत नाम का स्वभाव आज का नहीं है। 15 अगस्त 1947 के बाद…ऐसा नहीं है। वो उससे भी प्राचीन है। बहुत प्राचीन है।
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…जब दुनिया के इतिहास ने आंखें खोलीं तो उसने इस भूभाग पर जिसको इंडो-ईरानियन प्लेट कहते हैं, इस भूभाग पर रहने वाले सबका यही स्वभाव पाया। वो स्वभाव क्या है? …विश्व की विविधता को स्वीकार करके हिंदू चलता है। सभी की अपनी – अपनी विशिष्टताएं होती हैं।
विविधता में एकता- हिंदू इसको जानता है। इसलिए जानता है कि वो ये समझता है कि ये एकता की ही विविधताएं हैं…विशिष्टताएं हैं। एकता का श्रृंगार है। और इसलिए अपनी-अपनी विशिष्टता पर श्रद्धापूर्वक चलो। सबकी विशिष्टताओं का सम्मान करो।’
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संघ प्रमुख ने बिना नाम लिए सियासी दलों को भी दिया बड़प्पन का गूढ़ संदेश…
संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि हम आजकल कहते हैं विविधता में एकता, हिन्दू समझता है कि एकता की ही विविधता है। मोहन भागवत ने इसी सभा को संबोधित करते हुए विविधता में एकता की बात की और रामायण के उदाहरण दिए।
कहा कि यहां राजा महाराजाओं को कोई याद नहीं करता लेकिन उस राजा को याद करते हैं, जिसने पिता के लिए 14 साल वनवास किया, जिसने भाई की खड़ाउ रखकर वापस लौटने पर भाई को राज्य दिया। फिर सियासी दलों के लिए बिना नाम लिए और बिना उनका जिक्र किए गूढ़ संदेश दिया।
संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि – ‘…मनुष्य को व्यक्ति के नाते जीना है। लेकिन केवल व्यक्ति के नाते नहीं जीना है। व्यक्ति परिवार के लिए है। परिवार समाज के लिए है। समाज मानवता के लिए है। सारा जीवन सृष्टि-जीवन में आता है।
…और इसलिए पर्यावरण की मित्रता भी उस स्वभाव में पहले से है। व्यक्ति बड़ा कि समाज बड़ा- ये विवाद यहां पर है नहीं। सबकी अपनी-अपनी सत्ता है। अपनी सत्ता दूसरों को बड़ी करने के काम में आए …हम बड़े हों तो दूसरों को बड़ा करें। वही वास्तविक बड़प्पन है।’