लखनऊ : भतीजे आकाश आनंद को मायावती ने बसपा से भी निकाला। अपने भतीजे आकाश आनंद के खिलाफ बसपा सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने बड़ा एक्शन लिया हैं एवं आकाश आनंद को बसपा से निकाल दिया है।
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इसकी घोषणा खुद मायावती ने सोमवार को की। बसपा में जारी मौजूदा सियासी घमासान का निचोड़ यह है कि बसपा सुप्रीमो मायावती ने आकाश आनंद से नेशनल कोआर्डिनेटर सहित सभी पद छीनने के बाद अब उन्हें पार्टी से ही निष्कासित कर दिया है।
इस एक्शन को लेकर बसपा मुखिया मायावती ने कहा कि – ‘बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के आंदोलन के हित में और कांशीराम जी की अनुशासन परंपरा का पालन करते हुए आकाश आनंद को उनके ससुर की तरह पार्टी और आंदोलन के हित में पार्टी से निष्कासित किया जाता है।’
आनंद के निष्कासन पर यह बोलीं मायावतीं…
अपने फैसले के बारे में जानकारी देते हुए पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने कहा कि – ‘…बसपा की आल-इण्डिया की बैठक में कल (बीते रविवार को) आकाश आनन्द को पार्टी हित से अधिक पार्टी से निष्कासित अपने ससुर अशोक सिद्धार्थ के प्रभाव में लगातार बने रहने के कारण नेशनल कोआर्डिनेटर सहित सभी जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया था।
…उसका उसे पश्चताप करके अपनी परिपक्वता दिखानी थी लेकिन इसके विपरीत आकाश ने जो अपनी लम्बी-चौड़ी प्रतिक्रिया दी है वह उसके पछतावे व राजनीतिक मैच्युरिटी का नहीं बल्कि उसके ससुर के ही प्रभाव वाला ज्यादातर स्वार्थी, अहंकारी व गैर-मिशनरी है। उससे बचने की सलाह मैं पार्टी के ऐसे सभी लोगों को देने के साथ दण्डित भी करती रही हूं।
…अतः डॉ. भीमराव आंबेडकर के आत्मसम्मान व स्वाभिमान मूवमेन्ट के हित में तथा कांशीराम की अनुशासन की परम्परा को निभाते हुए आकाश आनन्द को, उनके ससुर की तरह, पार्टी व मूवमेन्ट के हित में पार्टी से निष्कासित किया जाता है।’
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अपने खिलाफ एक्शन पर यह बोले थे आकाश आनंद…
आकाश आनंद ने अपने खिलाफ संगठन में हुए एक्शन पर सफाई देते हुए सोशल मीडिया में बयान दिया था। कहा था कि – ‘…मैं मायावती जी का कैडर हूं और उनके नेतृत्व में मैने त्याग, निष्ठा और समर्पण के कभी ना भूलने वाले सबक सीखे हैं, ये सब मेरे लिए केवल एक विचार नहीं, बल्कि जीवन का उद्देश्य हैं।
…आदरणीय बहन जी का हर फैसला मेरे लिए पत्थर की लकीर के समान है, मैं उनके हर फैसले का सम्मान करता हूं उस फैसले के साथ खड़ा हूं।
…मायावती जी द्वारा मुझे पार्टी के सभी पदों से मुक्त करने का निर्णय मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से भावनात्मक है, लेकिन साथ ही अब एक बड़ी चुनौती भी है, परीक्षा कठिन है और लड़ाई लंबी है। ऐसे कठिन समय में धैर्य और संकल्प ही सच्चे साथी होते हैं।
…बहुजन मिशन और मूवमेंट के एक सच्चे कार्यकर्ता की तरह, मैं पार्टी और मिशन के लिए पूरी निष्ठा से काम करता रहूंगा और अपनी आखिरी सांस तक अपने समाज के हक की लड़ाई लड़ता रहूंगा।
कुछ विरोधी दल के लोग ये सोच रहे हैं कि पार्टी के इस फैसले से मेरा राजनीतिक करियर समाप्त हो गया, उन्हें समझना चाहिए कि बहुजन मूवमेंट कोई करियर नहीं, बल्कि करोड़ों दलित, शोषित, वंचित और गरीबों के आत्म-सम्मान व स्वाभिमान की लड़ाई है।
…यह एक विचार है, एक आंदोलन है, जिसे दबाया नहीं जा सकता। इस मशाल को जलाए रखने और इसके लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने के लिए लाखों आकाश आनंद हमेशा तैयार हैं।’
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पार्टी पर परिवार को तरजीह देने से बसपा में मचा है घमासान…?
अपने भतीजे आकाश आनंद को आज और उससे पहले आकाश के ससुर को पार्टी से निकालने के बसपा सुप्रीमो मायावती के फैसले की अब सियासी समीक्षा भी शुरू हो गई है।
कहा जाने लगा है कि पार्टी और परिवार पर अपना नियंत्रण बनाए रखने और पार्टी पर परिवार को तरजीह देने की मायावती की सोच ने बसपा में मौजूदा मचे घमासान को जन्म दिया है। इसको दो तरह से देखा जा रहा है।
मायावती ने लोकसभा चुनाव से पहले आकाश आनंद को नेशनल कोऑर्डिनेटर के साथ अपना उत्तराधिकारी बनाया था, लेकिन कुछ ही महीनों में ही मायावती ने अपने ही फैसले को पलटते हुए आकाश आनंद को पार्टी के सभी पदों से हटा दिया।
कहा यह भी जाने लगा है कि बहुजन समाज पार्टी के घटते जनाधार और वोटबैंक के लिए मायावती ने एक ऐसे इनोसेंट शख्स को जिम्मेदार बता दिया जिसका राजनीति से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है।
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बसपा के किसी कार्यक्रम में आकाश आनंद की पत्नी डॉक्टर प्रज्ञा नहीं दिखी हैं। वो एक डॉक्टर हैं और उनकी अपनी दुनिया है। मायावती के फैसले से ये तो तय है कि बसपा सुप्रीमो पार्टी और परिवार दोनों की लगाम अपने हाथ में रखना चाहती हैं।
दलित राजनीति के एक और धुरंधर नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद भी इस फैसले को बसपा सुप्रीमो के परिवारवाद से जुड़ा फैसला ही बता रहे हैं।
चंद्रशेखर ने कहा, ‘…ये बहनजी का अपना निर्णय है। वे अपनी पार्टी की मालिक हैं। मालिक जो भी निर्णय लेता है वो सोच समझ कर लेता है। उनके फैसलों को असर समाज पर भी होता है। आज बहुजन राजनीति की विचारधारा को लेकर चलने का काम हम कर रहे हैं।
…मैं उनका सम्मान करता हूं, लेकिन पिछले 1 साल में जिस प्रकार के फैसले उनके द्वारा लिए गए उससे मुझे बाबा साहेब आंबेडकर की बात याद आती है कि रानी के पेट से राजा जन्म नहीं लेगा, आपने उस सिद्धांत को ठुकरा कर समाज पर ये थोपने का काम किया और समाज ने उसे अस्वीकार कर दिया।’