वाराणसी : होलिका की प्रतिमाएं चांडालिनी-भक्त प्रह्लाद को मारने वाली के रूप में हुईं स्थापित। होलिका दहन के लिए होलिका की प्रतिमाएं अलग-अलग रूप में स्थापित हुई हैं। सजाकर स्थापित की गईं होलिका की प्रतिमाएं लोगों में आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं।
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दहन से पहले होलिका का पूजन भी पूरे विधि-विधान से लोग कर रहे हैं। इसी क्रम में खास बात यह है कि होलिका का प्रतिमाएं हर स्थान पर अलग – अलग मुद्रा और रूप में स्थापित की गई हैं।
दुर्गापूजा, कालीपूजा और सरस्वती पूजा की तर्ज पर इस बार होलिका दहन के मौके पर सजाकर स्थापित की गईं होलिका की प्रतिमाएं बरबस ही लोगों की निगाहें अपनी ओर खींच रही हैं। काशी में दुर्गा पूजा की तर्ज पर हर त्योहारों पर देवी-देवाताओं की प्रतिमाएं नए ट्रेंड में देखने को मिल रही हैं।
इस बार होलिका की प्रतिमाएं भी खास हैं। कहीं 17 फीट की चांडाल रूप में डरावनी मुद्रा वाली होलिका हैं तो कहीं 14 फीट की रानी पद्मावती की सिंहासन पर विराजमान मुद्रा वाली होलिका स्थापित की गई है।
होलिका प्रतिमाओं की मनभावन निराली छटा
मोक्ष की नगरी काशी यानी वाराणसी में होलिका प्रतिमाओं की छटा अपने आप में निराली है। चेतगंज चौराहे पर 17 फीट की चंडाल रूप में होलिका स्थापित की गईं हैं जबकि बेनियाबाग चौराहे पर 14 फीट की प्रतिमा सिंहासन पर रानी पद्मावती की हसते हुए छल मुद्रा में है।
इसी तरह खोजवां में 14 फीट की राक्षसी की मुद्रा में होलिका प्रतिमा है जबकि लहरतारा में हाथ में खंजर लिए भक्त प्रह्लाद को मारते हुए मुद्रा में होलिका की प्रतिमा है। अब होलिका दहन की तैयारी शुरू हो गई है। कहीं उपले तो कहीं लकड़ी आदि से होलिका सजाई जा रही है।

वहीं, होलिका की प्रतिमाएं भी रखी जाएंगी। इस बार होलिका को राक्षसी व छलकारी रूप में भी दर्शाया जा रहा है। वाराणसी शहर के खोजवां, लक्सा, देवनाथपुरा, अखरी बाईपास आदि इलाकों में होलिका की प्रतिमाएं दहन के लिए स्थापित हुई हैं।
होलिका दहन के लिए वाराणसी शहर में अलग-अलग 30 से अधिक बड़ी होलिका प्रतिमाएं स्थापित हुई हैं। ये प्रतिमाएं 10 से 17 फीट तक ऊंचाई वाली हैं। इसके अलावा कुछ क्लाबों ने देवी मुद्रा में भी होलिका प्रतिमाएं बनवा कर स्थापित की हैं।

दहन के लिए ढाई हजार होलिकाएं सजाकर की गईं तैयार
होली के त्योहार पर होलिका दहन के लिए पूर्वांचल का केंद्र कहे जाने वाले काशी यानी वाराणसी में होलिका दहन की तैयारी को लेकर लोगों में उत्साह देखते ही बन रहा है। शहर में लेकर गांव तक छोटी-बड़ी ढाई हजार से ज्यादा होलिकाएं जलेंगे। इसमें करीब 500 से अधिक स्थानों पर प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं।
अब होलिका दहन की तैयारी शुरू हो गई है। कहीं उपले तो कहीं लकड़ी आदि से होलिका सजाई जा रही है। इसी क्रम में होलिका की प्रतिमाएं भी रखी गई हैं। बता दें कि वसंत पंचमी को ही शहर से गांव तक जगह-जगह प्रतिक के रूप में होलिका लगाई गई हैं।
होलिका दहन पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। इस दिन लोग अपनी बुराइयों को होलिका की अग्नि में भस्म कर भाईचारे व खुशियों के साथ होली खेलते हैं। इस बार होलिका दहन आज बृहस्पतिवार 13 मार्च को है।
काशी में होलिका दहन के लिए की जा रही तैयारियों के क्रम में कुछ विशेष सलाह भी लोगों को जीवन में बेहतरी के लिए दिए जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि कैसे राशि अनुसार होलिका में सामग्री डालने से रोग, कर्ज, चिंता आदि दूर होते हैं।
मेष में सात नग काली मिर्च ऊसारकर, वृषभ में सफेद चंदन पासा, मिथुन में चने की दाल, कर्क में 50 ग्राम सौंफ, सिंह में जौ, कन्या तीन नग जायफल, काली मिर्च, तुला में काले तिल और हल्दी की गांठ, वृश्चिक पीली सरसों ऊसार कर, धनु चावल व तिल, मकर में बिधारा की जड़ और पांच हल्दी की गांठ दहन में अर्पण करने से शनि के साढ़े साती का प्रभाव थोड़ा कम हो जाएगा।
कुंभ में मूंग की दाल, काले तिल, मीन में हल्दी गांठ, पीली सरसों व पीपल की लकड़ी डालें।

होलिका दहन का सर्वश्रेष्ठ शुभ मुहूर्त आज रात 11.26 से 12.30 बजे तक
इस बार होलिका दहन की पावन तिथि आज 13 मार्च बृहस्पतिवार को है लेकिन इस पर भद्रा का साया भी पड़ा है। ऐसे में काशी के विद्वानों ने तमाम शास्त्रीय गणना के उपरांत होलिका दहन के शुभ मुहूर्त के साथ सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त तक का ब्योरा तैयार किया है।
इस गणना में वैदिक पंचांग को आधार माना गया है। वैदिक पंचांग की गणना के अनुसार इस बार होलिका दहन का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त 13 मार्च को रात्रि 11 बजकर 26 मिनट से लेकर 12 बजकर 30 मिनट तक रहेगा।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भद्रा काल में होलिका दहन करना अशुभ माना जाता है, इसलिए भद्रा समाप्ति के बाद ही दहन करना शुभ होता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, 13 मार्च 2025 को सुबह 10.35 बजे से रात 11.26 बजे तक भद्रा काल रहेगा। भद्रा का काल शुभ कार्यों के लिए अशुभ माना जाता है, और इसलिए होलिका दहन जैसे महत्वपूर्ण कार्यों को भद्रा काल में नहीं किया जाता।

भद्रा का समय विशेष रूप से कर्क, सिंह, कुंभ और मीन राशियों में चंद्रमा के गोचर के दौरान होता है, जब भद्रा पृथ्वी लोक पर रहती है। वैदिक पंचांग की गणना के अनुसार, इस 13 मार्च बृहस्पतिवार को प्रातः 10.35 बजे भद्रा आरम्भ हो रहा है और 13 मार्च बृहस्पतिवार को रात्रि 11.26 बजे भद्रा समाप्त होगी।
इसी क्रम में वैदिक पंचांग की गणना में कहा गया है कि इस बार होलिका दहन की तिथि पर लगे भद्रा की पूंछ की अवधि सायं 6.57 से रात्रि 8.14 तक रहेगी जबकि भद्रा का मुख की अवधि रात्रि 8.14 से रात्रि 10.22 बजे तक होगी।
होलिका का दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा पर किया जाता है। इस बार फाल्गुन पूर्णिमा की तिथि का प्रारंभ 13 मार्च 2025 को सुबह 10.35 बजे से हो रहा है जबकि इसका समापन 14 मार्च 2025 को दोपहर 12.23 बजे होना है।