Ranchi : राजधानी रांची के सिरमटोली फ्लाईओवर पर बन रहे रैंप को लेकर उपजा विवाद अब व्यापक आंदोलन का रूप लेता जा रहा है। आदिवासी संगठनों का कहना है कि यह रैंप केंद्रीय सरना स्थल की पवित्रता और धार्मिक भावनाओं का...
Ranchi : राजधानी रांची के सिरमटोली फ्लाईओवर पर बन रहे रैंप को लेकर उपजा विवाद अब व्यापक आंदोलन का रूप लेता जा रहा है। आदिवासी संगठनों का कहना है कि यह रैंप केंद्रीय सरना स्थल की पवित्रता और धार्मिक भावनाओं का उल्लंघन है। लगातार विरोध और बैठकों के बीच अब आंदोलन और तेज होता नजर आ रहा है।
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सांस्कृतिक अस्मिता पर सीधा हमला
24 अप्रैल को पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में जब रैंप निर्माण कार्य दोबारा शुरू किया गया, तबसे विरोध और उग्र हो गया। आदिवासी समुदाय का कहना है कि बिना जनसहमति के इस तरह के कार्य उनकी सांस्कृतिक अस्मिता पर सीधा हमला है।
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शनिवार को रांची में एक अहम बैठक हुई, जिसमें पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव, पूर्व मंत्री देव कुमार धन, प्रेमशाही मुंडा सहित राज्य के विभिन्न हिस्सों से आए आदिवासी नेताओं और संगठनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। बैठक में "आदिवासी बचाओ मोर्चा" का गठन किया गया, जो आने वाले दिनों में आदिवासी अधिकारों की रक्षा के लिए एक संगठित अभियान चलाएगा।
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Ranchi : रैंप का निर्माण आदिवासियों की आस्था पर कुठाराघात है-गीताश्री उरांव
गीताश्री उरांव ने कहा कि सिरोमटोली सरना स्थल पर रैंप का निर्माण आदिवासियों की आस्था पर कुठाराघात है और यह आंदोलन अब पूरे राज्य का मुद्दा बन चुका है। वहीं कुंद्रेसी मुंडा ने कहा कि पेसा कानून, जमीन की लूट, और धर्म कोड जैसे अहम मुद्दों को भी इस आंदोलन में शामिल किया जाएगा।
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मोर्चा की मुख्य घोषणाएं इस प्रकार हैं:
"आदिवासी बचाओ मोर्चा" का गठन कर राज्यभर के आदिवासी समाज को एक मंच पर लाया गया है।
27 मई 2025 को राज भवन के समक्ष धरना-प्रदर्शन किया जाएगा, जिसमें पूरे राज्य से आदिवासी प्रतिनिधि शामिल होंगे।
4 जून 2025 को सिरोमटोली रैंप विवाद, पेसा कानून, जमीन अधिग्रहण और धर्म कोड को लेकर झारखंड बंद बुलाया गया है।
मोर्चा ने सरकार से पेसा कानून, ट्राइबल सब प्लान, समता जजमेंट और आदिवासी सरना न्यास बोर्ड को शीघ्र लागू करने की मांग की है।
इस आंदोलन को राज्य के कई आदिवासी संगठनों का समर्थन मिल रहा है और आने वाले दिनों में यह आंदोलन झारखंड की राजनीति और सामाजिक संरचना को प्रभावित कर सकता है। प्रशासन फिलहाल स्थिति पर नजर बनाए हुए है, जबकि आदिवासी संगठनों का रुख सख्त होता जा रहा है।
अमित झा की रिपोर्ट--
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