रांची:झारखंड में बीते 24 घंटे से मूसलधार बारिश हो रही है, जिससे आम जनजीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो गया है। भारी वर्षा से राज्य के कई हिस्सों में जलजमाव, घरों की दीवारें गिरने और वज्रपात जैसी घटनाएं सामने आई हैं।
जामताड़ा जिले के कालीपाथर गांव में बुधवार रात एक कच्चे घर की मिट्टी की दीवार गिरने से ढाई साल का मासूम मनीष हेंब्रम और उसकी 70 वर्षीय दादी मुखोदी हेंब्रम की दर्दनाक मौत हो गई। वहीं गुरुवार दोपहर करीब एक बजे नाला प्रखंड के बड़ारामपुर गांव में वज्रपात की चपेट में आकर बाइक सवार दंपती पांडू मरांडी (45) और आरती मरांडी (40) की मौके पर ही मौत हो गई।
तेज बारिश से डूबे शहर के निचले इलाके
मौसम विभाग के अनुसार बीते 24 घंटे में रांची, जमशेदपुर, धनबाद, बोकारो, गिरिडीह, सिमडेगा, लोहरदगा सहित 16 जिलों में तेज बारिश दर्ज की गई। रांची में सर्वाधिक 94.3 मिमी, जमशेदपुर में 92.6 मिमी और धनबाद में 80 मिमी बारिश हुई। इसके कारण रांची और जमशेदपुर के कई निचले इलाकों में जलजमाव की स्थिति बन गई है, जिससे यातायात और जनजीवन पर असर पड़ा है।
अगले चार दिन झारखंड के कई जिलों में यलो अलर्ट
मौसम विभाग ने आगामी चार दिनों तक झारखंड के अलग-अलग जिलों में भारी बारिश और वज्रपात की चेतावनी जारी की है।
11-12 जुलाई: गढ़वा, पलामू, चतरा और लातेहार जिलों में भारी बारिश और 30-40 किमी/घंटा की रफ्तार से हवा चलने का पूर्वानुमान है।
13 जुलाई: गुमला, खूंटी, सिमडेगा और पश्चिम सिंहभूम में भारी बारिश की चेतावनी है।
14 जुलाई: पश्चिम सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां, बोकारो और धनबाद में भारी वर्षा का यलो अलर्ट जारी किया गया है।
बरसात ने तोड़ी औसत की सीमा, अब तक 69% ज्यादा बारिश
झारखंड में 1 जून से 10 जुलाई तक कुल 482.8 मिमी बारिश दर्ज की गई है, जबकि सामान्य औसत इस अवधि के लिए 285 मिमी होती है। यानी राज्य में औसत से 69% अधिक बारिश हुई है।
कृषि को बड़ा नुकसान, धान की नर्सरी और सब्जी फसलें प्रभावित
लगातार हो रही भारी बारिश का सीधा असर खेती पर भी दिख रहा है। धान के बिचड़े के लिए जहां खेत में मात्र 1 इंच पानी की आवश्यकता होती है, वहीं कई इलाकों में 4 से 5 इंच तक पानी जमा हो गया है। इसके कारण लगभग 30% बिचड़ा नष्ट हो चुका है। सब्जी फसलों में टमाटर, बैगन, गोभी, मूली, कद्दू, करेला, धनिया आदि बुरी तरह सड़ चुके हैं।
हालांकि जिन क्षेत्रों में ड्रिप इरिगेशन पद्धति से खेती की गई थी, वहां लगभग 50% फसलें बची हुई हैं। फिलहाल अरवी (कच्चू) की फसल ही बारिश की मार से सुरक्षित बताई जा रही है।