रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र जामा विधानसभा सीट पर जोरदार चुनावी हलचल देखी जा रही है। यह सीट दुमका जिले में स्थित है और दुमका लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आती है। जामा विधानसभा क्षेत्र 1967 में अस्तित्व में आया और यह आदिवासी बहुल इलाका है, जहां झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का दबदबा रहा है।
इतिहास और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य
जामा विधानसभा क्षेत्र में कुल 13 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। इनमें से JMM ने 8 बार जीत हासिल की है, कांग्रेस को 2 बार, बीजेपी और निर्दलीय उम्मीदवार को एक-एक बार जीत मिली है। JMM ने 1980 में पहली बार यहां जीत का परचम लहराया और तब से 2005 को छोड़कर, इस क्षेत्र में उनका राज रहा है।
इस सीट पर आदिवासी मतदाता लगभग 45 प्रतिशत हैं, यादव 6 प्रतिशत और अन्य पिछड़ी जातियां 22 प्रतिशत हैं। 1967 में पहले विधायक मुंशी हांसदा निर्दलीय चुने गए थे। इसके बाद, कांग्रेस ने 1969 से 1977 तक लगातार तीन बार जीत हासिल की।
1980 में JMM ने कांग्रेस से सीट छीन ली और तब से कांग्रेस इस सीट को नहीं जीत सकी। 1985 में गुरुजी शिबू सोरेन ने इस सीट से जीत हासिल की और जनता ने उन्हें बिहार विधानसभा का सदस्य चुना। 1990 में JMM ने मोहरिल मुर्मू को टिकट दिया, जिन्होंने जीत दर्ज की। 1995 में गुरुजी के बड़े पुत्र दुर्गा सोरेन ने चुनावी मैदान में उतरकर जीत दर्ज की और 2000 में भी वे जीतने में सफल रहे।
2005 के बाद का घटनाक्रम
2005 में बीजेपी के सुनील सोरेन ने दुर्गा सोरेन को हराकर जामा विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की। 2009 के विधानसभा चुनाव से पहले, दुर्गा सोरेन का निधन हो गया, और उनकी पत्नी सीता सोरेन ने राजनीति में कदम रखा। सीता सोरेन ने 2009 के चुनावी समर में JMM की ओर से उम्मीदवार बनकर बीजेपी के मनोज कुमार सिंह को हराया और पहली बार विधायक बनीं।
2014 और 2019 के चुनावों में भी सीता सोरेन ने जीत दर्ज की। 2014 में उन्होंने बीजेपी के सुरेश मुर्मू को 2306 वोट से हराया, जबकि 2019 में उन्होंने सुरेश मुर्मू को 2426 वोट से हराया।
हाल की स्थिति और भविष्य की दिशा
साल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले सीता सोरेन ने JMM का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया और दुमका से लोकसभा का चुनाव लड़ा। इस बीच, उन्होंने जामा विधानसभा क्षेत्र से इस्तीफा दे दिया है।
जामा विधानसभा सीट पर इस समय राजनीतिक गतिविधियां काफी तेज हैं और आगामी चुनावों में इस सीट पर कौन सी पार्टी विजय प्राप्त करेगी, यह देखना दिलचस्प होगा।
जामा विधानसभा सीट पर भविष्य का राजनीतिक माहौल कई महत्वपूर्ण तत्वों पर निर्भर करेगा
सीता सोरेन के बीजेपी में शामिल होने और जामा सीट से इस्तीफा देने के बाद, JMM को इस सीट पर अपने प्रभाव को बनाए रखने के लिए एक नया उम्मीदवार चुनना होगा। इसके चलते, JMM की रणनीति महत्वपूर्ण होगी, खासकर जब पार्टी की आदिवासी आधार पर राजनीति पर बल देती है। JMM को यह चुनौती स्वीकार करनी होगी कि वह अपने पारंपरिक वोट बैंक को बनाए रखे और नए मतदाताओं को भी आकर्षित करे।
दूसरी ओर, बीजेपी के पास अब एक महत्वपूर्ण अवसर है। सीता सोरेन की पार्टी परिवर्तन के बाद, बीजेपी को इस सीट पर एक मजबूत उम्मीदवार पेश करना होगा जो स्थानीय लोगों की उम्मीदों और समस्याओं को समझे। बीजेपी को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह आदिवासी मतदाताओं के साथ सकारात्मक संवाद बनाए रखे और विकास कार्यों को प्राथमिकता दे।
इसके अलावा, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल भी इस सीट पर अपनी रणनीति को पुन: व्यवस्थित कर सकते हैं। कांग्रेस, जो पहले इस सीट पर प्रभावी रही है, उसे स्थानीय समस्याओं और मतदाता आकांक्षाओं को ध्यान में रखकर अपनी वापसी की योजना बनानी होगी।
कुल मिलाकर, जामा विधानसभा क्षेत्र में आगामी चुनावों में राजनीतिक माहौल बहुपरकारी और प्रतिस्पर्धी रहने की संभावना है। विभिन्न दलों की रणनीतियाँ और उम्मीदवारों की चुनावी तैयारी इस सीट पर परिणाम को प्रभावित करेगी।