डिजिटल डेस्क : इलाहाबाद हाईकोर्ट को सुप्रीम कोर्ट की नाबालिग के छाती पकड़ने-नाड़ा खींचने वाली टिप्पणी पर कड़ी फटकार। इलाहाबाृद हाईकोर्ट को सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उसकी उस टिप्पणी पर कड़ी फटकार लगाई जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि केवल छाती पकड़ना, पायजामा का नाड़ा खींचना दुष्कर्म के प्रयास का अपराध नहीं है।
Highlights
इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म की कोशिश से जुड़े मामले में दिए फैसले पर रोक लगा दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को असंवेदनशील बताया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि टिप्पणी पूरी तरह असंवेदनशीलता और अमानवीय दृष्टिकोण को दर्शाती है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा था – ‘नाबालिग लड़की के ब्रेस्ट पकड़ना और उसके पायजामे के नाड़े को तोड़ना रेप नहीं।’ अब सुप्रीम कोर्ट ने आज सुनवाई करते हुए उसी पर अपना फैसला सुनाया है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्वत:संज्ञान लिया था…
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के नाबालिग लड़की के निजी अंगों को पकड़ने, उसके पायजामे के नाड़े को तोड़ने को दुष्कर्म या दुष्कर्म का प्रयास नहीं मानने वाले फैसले पर स्वत:संज्ञान लिया था।
उससे एक दिन पहले जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के विवादित फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया था।
उससे पहले हाईकोर्ट ने दो आरोपियों पवन व आकाश के मामले में यह विवादित फैसला दिया था। शुरुआत में, दोनों पर दुष्कर्म और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की धाराओं के तहत आरोप लगाए गए थे।
लेकिन, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसले में कहा था, उनका कृत्य दुष्कर्म या दुष्कर्म का प्रयास माने जाने के योग्य नहीं था, बल्कि यह गंभीर यौन हमले के कम गंभीर आरोप के अंतर्गत आता है।

केंद्र, यूपी सरकार और अन्य को नोटिस जारी…
इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश में की गई विवादास्पद टिप्पणियों पर शुरू की गई स्वत: संज्ञान कार्यवाही में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, यूपी सरकार और अन्य को नोटिस जारी किया। न्यायमूर्ति बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने इसकी सुनवाई की।
इस पीठ में जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल हैं। पीठ ने कहा कि –‘…यह एक गंभीर मामला है और फैसला सुनाने वाले न्यायाधीश की ओर से पूरी तरह असंवेदनशीलता है।
…हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि यह फैसले को लिखते हुए अपनाई गई असंवेदनशीलता को दर्शाता है। …यह फैसला अचानक नहीं सुनाया गया। इसे सुरक्षित रखा गया और चार महीने बाद सुनाया गया। यानी कि इसमें दिमाग का इस्तेमाल किया गया था।
…हम आमतौर पर इस स्तर पर आकर स्थगन देने में हिचकिचाते हैं, लेकिन टिप्पणियां कानून के दायरे से बाहर हैं और अमानवीय प्रतीत हो रही हैं। इसलिए हम इन टिप्पणियों पर स्थगन लगाते हैं।’

बीते 17 मार्च को आया था इलाहाबाद हाईकोर्ट का वह फैसला…
बता दें कि बीते 17 मार्च को आए इस फैसले में हाई कोर्ट ने कहा था कि पीड़िता को खींच कर पुलिया के नीचे ले जाना, उसके ब्रेस्ट को पकड़ना और पायजामे के डोरी को तोड़ना रेप की कोशिश नहीं कहलाएगा।
11 साल की लड़की के साथ हुई इस घटना के बारे में हाई कोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा का निष्कर्ष था कि यह महिला की गरिमा पर आघात का मामला है। इसे रेप या रेप की कोशिश नहीं कह सकते।
बुधवार को आज इस मामले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट में मौजूद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि – ‘…कुछ फैसले ऐसे होते हैं कि उन पर रोक लगाना जरूरी हो जाता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले के पैराग्राफ 21, 24 और 26 में जिस तरह की बातें लिखी हैं, उनसे लोगों में बहुत गलत मैसेज गया है।

…हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को भी यह देखना चाहिए कि इस जज को संवेदनशील मामलों की सुनवाई करने न दिया जाए।’
उसी पर मामले की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि – ‘…यह फैसला तुरंत नहीं लिया गया, बल्कि सुरक्षित रखने के 4 महीने बाद सुनाया गया। यानी पूरे विचार के बाद फैसला दिया गया है।
…फैसले में कहीं गई कई बातें कानून की दृष्टि से गलत और अमानवीय लगती हैं। ऐसे में हम इस फैसले पर रोक लगा रहे हैं और सभी पक्षों को नोटिस जारी कर रहे हैं।’