रांची: राज्य बनने के बाद से झारखंड विधानसभा के चार आम चुनावों में किसी एक दल को जनता ने पूर्ण बहुमत नहीं दिया है। यह स्थिति गठबंधन सरकारों के गठन की ओर ले जाती है, जो राज्य के राजनीतिक इतिहास में एक प्रमुख विषय बन चुकी है। इस कारण झारखंड में हमेशा गठबंधन की सरकारें बनी हैं, जबकि कई बार दलों के बीच मनमुटाव के कारण सरकार बनाने की स्थिति भी नहीं बन पाई। इस कारण राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के तीन मौके भी सामने आते हैं। पहली बार 19 जनवरी 2009 से 29 दिसंबर 2009, दूसरी बार 1 जनवरी 2010 से 10 सितंबर 2010, और तीसरी बार 18 जनवरी 2013 से 13 जुलाई 2013 तक राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था।
2024 के विधानसभा चुनावों के लिए स्थिति एक बार फिर चिंताजनक नजर आ रही है। इंडिया और एनडीए गठबंधन में शामिल किसी एक दल को पूर्ण बहुमत का आंकड़ा नहीं मिलता दिख रहा है। 81 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत के लिए 41 सीटों की आवश्यकता है।
भाजपा, जो 68 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, के रणनीतिकार मानते हैं कि पार्टी को अकेले 41 सीटें मिलना संभव नहीं है। वहीं, झामुमो, जो पिछले चुनाव में 41 सीटों पर लड़ा था, इस बार 40-41 सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बना रहा है, जिससे बहुमत प्राप्त करने की संभावना और भी कम होती जा रही है।
पिछले चार चुनावों के आंकड़े भी इस बात को स्पष्ट करते हैं। 2005 में भाजपा ने 30 सीटें जीती थीं, जबकि 2009 में उसकी सीटों की संख्या घटकर 18 रह गई। 2014 में भाजपा ने फिर से 37 सीटों पर जीत हासिल की, लेकिन 2019 में झामुमो ने 30 सीटें जीतीं, जिससे गठबंधन की राजनीति और अधिक जटिल हो गई।
इस प्रकार, 2024 के विधानसभा चुनावों के संदर्भ में झारखंड की राजनीति में एक बार फिर गठबंधन सरकार के गठन की संभावना नजर आ रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर कोई एक दल बहुमत नहीं हासिल करता है, तो राष्ट्रपति शासन की स्थिति फिर से उत्पन्न हो सकती है।