डिजीटल डेस्क: Big Decision – Supreme Court ने नागरिकता कानून पर धारा 6ए को कहा वैध, पांच सदस्यीय पीठ में 4 जस्टिस की यही राय। सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए सिटिजनशिप एक्ट 1955 की धारा 6ए को संवैधानिक करार दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने 4:1 के बहुमत से फैसला सुनाया।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस सुंदरेश और जस्टिस मनोज मिश्रा ने 6ए की संवैधानिक मान्यता के पक्ष में फैसला सुनाया जबकि जस्टिस जेपी पारदीवाला ने इसे असंवैधानिक माना।
अवैध शरणार्थियों की समस्या का समाधान था असम अकॉर्ड
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि- ‘असम अकॉर्ड अवैध शरणार्थियों की समस्या का राजनीतिक समाधान था और इसमें धारा 6ए विधायी समाधान था। केंद्र सरकार इस अधिनियम को अन्य क्षेत्रों में भी लागू कर सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया, क्योंकि यह असम के लिए अद्वितीय था’।
कोर्ट ने माना है कि 6ए के तहत 25 मार्च, 1971 की कट ऑफ तारीख सही थी। आजादी के बाद पूर्वी पाकिस्तान से असम में भारत के बाकी क्षेत्रों की तुलना में प्रवास अधिक था। कोर्ट ने कहा कि धारा 6ए न तो कम समावेशी है और न ही अधिक।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि -‘राज्यों को बाहरी आक्रमण से बचाना सरकार का कर्तव्य है। संविधान के अनुच्छेद 355 के कर्तव्य को अधिकार के रूप में पढ़ने से नागरिकों और अदालतों के पास आपातकालीन अधिकार आ जाएंगे जो विनाशकारी होगा।
किसी राज्य में विभिन्न जातीय समूहों की उपस्थिति का मतलब अनुच्छेद 29(1) का उल्लंघन नहीं है। याचिकाकर्ता को यह साबित करना होगा कि एक जातीय समूह दूसरे जातीय समूह की उपस्थिति के कारण अपनी भाषा और संस्कृति की रक्षा करने में सक्षम नहीं है।
…रजिस्ट्रेशन भारत में नागरिकता प्रदान करने का वास्तविक मॉडल नहीं है।.. र धारा 6ए को केवल इसलिए असंवैधानिक नहीं माना जा सकता क्योंकि इसमें पंजीकरण की प्रक्रिया निर्धारित नहीं की गई है। इसलिए मैं भी इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि धारा 6ए वैध है’।
फैसला सुनाने वाले चारों जस्टिस बोले -पड़ोसी चुनने का अधिकार नहीं दे सकते…
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस एमएम सुंदरेश ने भी अपने-अपने फैसलों को पढ़ा। सीजेआई के अलावा तीनों न्यायाधीशों ने अपने फैसले में धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को भी बरकरार रखा है।
उन्होंने देरी और न्यायिक समीक्षा पर आपत्तियों को खारिज करते हुए कहा कि हम किसी को अपना पड़ोसी चुनने की अनुमति नहीं दे सकते और यह भाईचारे के सिद्धांत के खिलाफ है।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि – ‘हमने यह दलील भी खारिज कर दी है कि 6ए में स्पष्ट मनमानी है। वर्ष 1966 से पहले और 1966 के बाद और 1971 से पहले आए प्रवासियों के लिए स्पष्ट रूप से परिभाषित शर्तें हैं। इस कानून का तर्क मनमाना या अनुचित नहीं है। उन्होंने कहा कि धारा 6ए नागरिकता अधिनियम की धारा 9 का खंडन नहीं करती है’।
जस्टिस पारदीवाला ने फैसले से जताई असहमति, की टिप्पणी – ‘नागरिकता कानून की धारा 6ए में खामियां’
सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता कानून की धारा 6ए की संवैधानिकता को बरकरार रखा है और पांच जजों की संवैधानिक पीठ में इस फैसले पर असहमति जताने वाले जस्टिस जेबी पारदीवाला ने इसमें खामियां आ गई हैं।
पारित फैसले पर असहमति जताते हुए जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि- ‘अधिनियम की धारा 6ए भले ही इसे लागू करते समय वैध रही थी, लेकिन समय के साथ इसमें अस्थायी रूप से खामियां आ गई हैं। यह धारा राजनीतिक समझौते को विधायी मान्यता देने के लिए अधिनियमित की गई थी। यह धारा चुनावों से पहले असम के लोगों को खुश करने के लिए लाया हो सकता है।
कानून के तहत 1971 से पहले भारत आने वाले सभी लोगों को भारत की नागरिकता दे दी गई थी, लेकिन तथ्य यह है कि 1966 से 1972 तक एक सख्त शर्त (10 साल तक कोई मतदान अधिकार नहीं) के अधीन एक वैधानिक श्रेणी बनाई गई थी, जिसका अर्थ है कि नागरिकता प्रदान करना एकमात्र उद्देश्य नहीं था और वास्तव में यह असम के लोगों को शांत करने के लिए था ।
क्योंकि इस तरह के समावेश से राज्य में हुए चुनावों पर कोई असर नहीं पड़ा। यह अतार्किक रूप से हैरान करने वाला है कि 6अ के तहत नागरिकता का लाभ उठाने के इच्छुक व्यक्ति को पकड़े जाने का इंतजार करना पड़ता है और फिर उसे साबित करने के लिए न्यायाधिकरण में जाना पड़ता है।
मेरा मानना है कि यह इस तरह के कानून के उद्देश्य के खिलाफ है। इसमें कोई अस्थायी सीमा नहीं है, इसलिए कोई भी व्यक्ति इसके तहत विदेशी के रूप में पकड़ा जाना नहीं चाहेगा। धारा 6अ समय बीतने के साथ असंवैधानिक हो गई है। इससे राज्य पर अवैध अप्रवासियों का पता लगाने और उन्हें निर्वासित करने का सारा बोझ भी इसमें जुड़ जाता है।’
जानिए नागरिकता कानून 1955 की धारा 6ए क्या है जिसपर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने की सुनवाई
नागरिकता कानून 1955 की धारा 6ए भारतीय मूल के विदेशी शरणार्थियों, जो 1 जनवरी 1966 के बाद लेकिन 25 मार्च 1971 से पहले भारत आए उन्हें भारत की नागरिकता मांगने का अधिकार देती है।
इस प्रावधान को 1985 में असम अकॉर्ड के बाद शामिल किया गया था। भारत सरकार और असम मूवमेंट के नेताओं के बीच यह समझौता हुआ था। दरअसल असम मूवमेंट के नेता बांग्लादेश से असम में अवैध शरणार्थियों को हटाने की मांग कर रहे थे।
इसमें जोड़ी गई 25 मार्च 1971 की कट ऑफ तारीख वह दिन थी जब बांग्लादेश में आजादी का संघर्ष खत्म हुआ था।असम के कुछ स्थानीय समूहों ने इस प्रावधान को चुनौती दी थी।
याचिकाकर्ताओं का दावा था कि यह धारा बांग्लादेश से भारत में अवैध घुसपैठ करने वालों को वैधता देती है। याचिकाकर्ताओं ने मांग की थी कि कोर्ट आर्टिकल 14, 21 और 29 का उल्लंघन मानते हुए धारा 6ए को असंवैधानिक करार दें लेकिन 5 जजों की बेंच ने 4:1 के बहुमत से इस मांग को खारिज कर दिया।