बिहार ब्यूरो : बिहार विधानसभा चुनाव में लगभग सभी दलों ने कड़ी मशक्कत के बाद अपने-अपने प्रत्याशी मैदान में उतार तो दिए हैं। लेकिन इसमें कई ऐसे भी प्रत्याशी हैं जिनका उस पार्टी से कभी कोई लेना देना नहीं रहा है लेकिन फिर भी वे टिकट पाकर नामांकन दाखिल कर चुके हैं। हालांकि न्यूज 22 स्कोप इसकी पूरी तरह से पुष्टि नहीं करता है। फिर भी चाहे भाजपा हो या जदयू फिर लोजपा (पासवान) की पार्टी हो या राजद से लेकर कांग्रेस और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोमो सभी दलों में कई ऐसे कार्यकर्ता हैं। जिन्होंने लंबे समय से पार्टी की सेवा की और अपने नेता के आगे पीछे घूमते रहे। उनके लिए दिन रात काम किया शायद विधानसभा चुनाव में उन्हें टिकट मिल जाए लेकिन हुआ ठीक इसके विपरित। जो काम कर रहे थे वो नाकाम घोषित कर दिए गए और जो कहीं नहीं थे वो अचानक टिकट पाकर विधायक बनने की रेस में आ गए।
चिराग की पार्टी में 3 नेता पिछले लंबे समय से पार्टी की सेवा भाव में लगे हुए थे लेकिन मिला कुछ नहीं
आपको बता दें कि सबसे पहले इस कड़ी में चर्चा करते हैं चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (रामविलास) की। जिसमें तीन नेता जो पिछले लंबे समय से पार्टी की सेवा में इस भाव से लगे हुए थे कि शायद 2025 के चुनाव में चिराग अपने हेलिकॉप्टर पर उन्हें बिठाएंगे लेकिन ठीक इसके उलट हुआ। पटना के फतुहा से लोजपा (रामविलास) की और से रुपा कुमारी तो कसबा से नितेश कुमार सिंह को टिकट दिया गया है। वहीं लोहा पांडे को भी बेटिकट कर दिया गया है। जबकी इन तीनों सीटों पर फतुहा से रंधीर यादव तो कसबा से शंकर झा लंबे समय से चुनाव की तैयारी में जुटे थे।
कांग्रेस में आदित्य पासवान को भी बेटिकट कर दिया गया
इतना ही नहीं कांग्रेस में आदित्य पासवान को भी बेटिकट कर दिया गया है। जदयू में गोपाल मंडल तो भाजपा में रामसूरत राय जैसे नेता को भी टिकट नहीं दिया गया है। सूर्त्रों की मानें तो लगभग सभी पार्टियों द्वारा सीटों की बोली लगाकर बेचा गया है। जिसे लेकर जगह-जगह नेताओं द्वारा प्रदर्शन भी किया जा रहा है। यानी लोकतंत्र में अब सेवाभाव से नहीं बल्कि मोटी रकम लेकर टिकट बांटे जा रहे हैं। जो बेचारे कार्यकर्ता हैं उनकी उम्र नेताजी जिंदाबाद के नारे ही लगाते बीत जाएंगे।
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