डिजीटल डेस्क : Breaking – ‘सुप्रीम टिप्पणी’–आरजी कर अस्पताल मामले पर न हो सियासत, अपील है कि काम पर लौटें डाक्टर और उनपर कार्रवाई नहीं होगी, सीबीआई से फिर स्टेटस रिपोर्ट तलब। आरजीकर अस्पलात में मेडिकल छात्रा की गत 9 अगस्त के तड़के रेप और मर्डर के मामले में गुरूवार दोपहर में लंच ब्रेक के बाद सुनवाई को आगे बढ़ाते हुए सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय पीठ ने मूल मामले पर सियासत न करने की सलाह दी।
घटना से नाराज होकर 13 दिनों से कार्य बहिष्कार कर रहे डॉक्टरों को सुप्रीम कोर्ट ने काम पर लौटने को कहा और इसी क्रम में आश्वस्त किया कि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी। इसी क्रम में सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले पर सीबीआई से नए सिरे से स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। साथ ही राज्य सरकार की ताकीद किया कि डाक्टरों को समुचित सुरक्षा मुहैया कराएं।
सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी – मेडकिल छात्रा के साथ घटी घटना पर न करें सियासत
सीबीआई की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कोलकता मामले की सुनवाई के दौरान सियासी बयानबाजी को लेकर महाधिवक्ता तुषार मेहता की पश्चिम बंगाल सरकार के वकील कपिल सिब्बल से बहस हुई।
मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) ने जब हालात को सामान्य बनाने की सलाह दे रहे थे और यह टिप्पणी की कि प्रचार की चाह में दायर होने वाली जनहित याचिकाएं ही मीडिया को मसालेदार और रोचक किस्से प्रकाशित करने का मौका देती हैं।
इसी क्रम में सीबीआई की ओर पेश महाधिवक्ता तुषार मेहता ने खंडपीठ का ध्यान आकृष्ट किया कि पश्चिम बंगाल के एक मंत्री ( उत्तर बंग विकास परिषद मामलों के मंत्री उदयन गुहा) ने खुलआम धमकिया दी हैं कि इस मामले में उनकी नेत्री को अगर किसी ने उंगली दिखाई तो वह उंगलियां तोड़ दी जाएंगी।
इस पर तुरंत कपिल सिब्बल ने ऐतराज जाहिर करते हुए कहा कि नेता प्रतिपक्ष (शुभेंदु अधिकारी) के आपत्तिजनक बयान पर भी गौर किया जाए जिसमें उन्होंने गोलियां चलवाने की बातें की थीं। इस पर सीजेआई ने सख्त लहजे में इस पूरे केस की जो मूल घटना है उसे लेकर किसी भी तरह की सियासत न हो और उससे सभी बचें।
आरोपी के पॉलीग्राफ टेस्ट पर कल फैसला ले सियालदह कोर्ट, ‘सुप्रीम सवाल’ – 14 घंटे बाद क्यों दर्ज हुआ एफआईआर
आरजी कर अस्पताल की घटना में गिरफ्तार और रिमांड पर लिए गए आरोपी संजय रॉय के पॉलीग्राफ टेस्ट कराने का आवेदन सीबीआई ने कोलकता के सियालदह एसीजेएम के पास किया है।
गुरूवार को सीबीआई की ओर इस बाबत ध्यान आकृष्ट किए जाने पर सीजेआई ने कहा कि शुक्रवार सायं 5 बजे तक सियालदह एसीजेएम इस संबंध में फैसला लें ताकि स्थिति साफ और जांच में विलंब ना हो।
इससे पहले लंच ब्रेक के बाद सुनवाई के दौरान सीजेआई ने पूछा क्या कारण है कि मूल घटना के संबंध में एफआईआर 14 घंटे की देरी से दर्ज हुई? आरजी कर मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल को सीधे कॉलेज आकर एफआईआर दर्ज करानी चाहिए थी लेकिन नहीं किया तो वे किसे बचा रहे थे?
कपिल सिब्बल ने कहा कि हमने दिशानिर्देशों का पालन किया है तो उन्हें तुरंत टोकते हुए सीजेआई ने कहा- घटना के संबंध में एफआईआर रात 11:30 बजे दर्ज करना शुरू हुआ और रात के 11.45 बजे दर्ज हुआ जबकि उससे 14 घंटे पहले उसी सुबह करीब 9 से 9.30 बजे के दरम्यान ही मृत मेडिकल छात्रा की लाश मिल गई थी। ऐसे में 14 घंटे देर से एफआईआर दर्ज किए जाने की कोई ठोस वजह?
सीजेआई बोले – नेशनल टास्क फोर्स में रेजीडेंट डाक्टर भी होंगे शामिल
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज केस के विरोध में प्रदर्शन कर रहे डॉक्टरों के वकील ने गुरूवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि उन्हें अनुपस्थित मार्क किया जा रहा है और परीक्षाओं में बैठने से रोक दिया जा रहा है।
उन्होंने अदालत से नरमी बरतने का अनुरोध किया। मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अदालत प्रशासन को झूठी उपस्थिति दर्ज करने का निर्देश नहीं दे सकती है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि एक बार सभी डॉक्टर काम पर लौट आते हैं, तो अदालत एक सामान्य आदेश जारी करेगी।
उन्होंने कहा, ‘आश्वस्त रहें कि एक बार डॉक्टर ड्यूटी फिर से शुरू कर देते हैं, तो हम अधिकारियों से उनके खिलाफ कोई प्रतिकूल कार्रवाई नहीं करने का आग्रह करेंगे। अगर वे काम पर वापस नहीं आते हैं तो सार्वजनिक प्रशासनिक ढांचा कैसे चलेगा?’ सीजेआई चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि नेशनल टास्क फोर्स में रेजिडेंट डॉक्टरों को शामिल किया जाएगा, ताकि उनकी आवाज सुनी जा सके।
इस बीच, डॉक्टरों के वकील ने कोर्ट से गुजारिश की कि वह रेजिडेंट डॉक्टरों को भी एसटीएफ के विचार-विमर्श में शामिल करे। इस पर सीजेआई ने कहा, ‘अगर हम एनटीएफ में प्रतिनिधियों को शामिल करने के लिए कहते हैं,तो काम करना असंभव हो जाएगा।
एनटीएफ में बहुत वरिष्ठ महिला डॉक्टर हैं, जिन्होंने स्वास्थ्य सेवा में बहुत लंबे समय तक काम किया है… समिति यह सुनिश्चित करेगी कि वह सभी प्रतिनिधियों की बात सुने, हम अपने आदेश में इसे दोहराएंगे।’ सुप्रीम कोर्ट ने 20 अगस्त को 9 सदस्यीय नैशनल टास्क फोर्स का गठन किया था, जिसमें जाने-माने डॉक्टर और स्वास्थ्य सेवा प्रशासक शामिल हैं। यह चास्क फोर्स चिकित्सा पेशेवरों की सुरक्षा संबंधी चिंताओं का समाधान करेगा।
कपिल सिब्बल की अगुवाई वाली वकीलों की टीम नहीं दे पाई सुप्रीम सवालों का संतोषजनक जवाब
सुप्रीम कोर्ट के तल्ख तेवरों और तीखे सवालों पर बंगाल सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की अगुवाई वाली 21 अधिवक्ताओं की टीम को कोई संतोषजनक जवाब नहीं सूझा एवं जैसे-तैसे पूरे मामले पर अपनी सफाई देना जारी रखा।
इससे पहले मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने अप्राकृतिक मौत को लेकर विस्तृत ब्योरा तलब किया। कोर्ट ने पूछा कि रात 11.30 बजे एफआईआर क्यों लिखे जाने की प्रक्रिया शुरू हुई? उसी समय अप्राकृतिक मौत का मामला दर्ज किया गया था।
कोर्ट ने कहा लगता है कि कि केस नंबर बाद में डाला गया है, क्यों सही है ना? अप्राकृतिक मौत की एंट्री सुबह 10.10 बजे की गई थी ना? इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने बंगाल सरकार और कोलकाता पुलिस से केस डायरी की हार्ड कॉपी मांगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा – कोलकाता पुलिस के काम का तरीका ठीक नहीं, संबंधित एएसपी की भूमिका संदिग्ध
इसी क्रम में सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि पूरे मामले में आरंभिक चरण में ही कोलकाता पुलिस के संबंधित एएसपी का आचरण बेहद संदिग्ध है। रात 11.30 बजे से 11.45 बजे के बीच अप्राकृतिक मौत केस का केस दर्ज किया गया जबकि केस डायरी में घटना की एंट्री दिन के 10.10 बजे की है।
मृत मेडिकल छात्रा के शव के पास आपत्तिजनक चीजें मिलीं थीं, उस पर क्या कहना चाहेगी राज्य सरकार और कोलकाता पुलिस? सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि पंचनामा कब किया गया? इस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि शाम 4.20 के बाद हुआ।
फिर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने तल्ख लहजे में कहा कि इस मामले में कोलकाता पुलिस के काम का तरीका सही नहीं है, पुलिस ने कानून के तहत काम नहीं किया और उसकी हरकत संदेह के घेरे में हैं। इस बंगाल सरकार के वकीलों की टीम की अगुवाई कर रहे कपिलसिब्बल ने कहा कि आपका संदेह उचित है, कृपया मजिस्ट्रेट रिपोर्ट को देखा जाए।
जस्टिस पादरीवाला बोले – 30 साल में ऐसा केस नहीं देखा, ये केस चौंकाने वाला है
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ में शामिल जस्टिस पारदीवाला ने सीबीआई की महिला अधिकारी संयुक्त निदेशक से पूछा कि आपके दस्तावेजों और कोलकाता पुलिस के दस्तावेजों में फर्क क्यों है?
सीबीआई की तरफ से पेश सॉलीशिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कोलकाता में मौके पर साक्ष्यों और घटनास्थल से छेड़छाड़ हुई एवं पूरे केस की लीपापोती करने की कोशिश की गई। अंतिम संस्कार के बाद एफआईआर दर्ज हुई। पूरे मामले में अस्पताल प्रशासन उदासीन रहा एवं वारदात पर पर्दा डालने की कोशिश की गई।
घटनास्थल को संरक्षित या सील नहीं किया गया। घटना की सूचना परिजनों को देर से दी गई एवं परिवार को हत्या की नहीं सुसाइड की बात कही गई। इसी पर सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को फटकार लगाई। पूछा कि घटनास्थल को संरक्षित या सील क्यों नहीं किया गया? एफआईआर देर से दर्ज क्यों की गई?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जांच के नियमों की अनदेखी की गई है और पूरे मामले में अस्पताल प्रशासन ने कोई अपेक्षित एक्शन नहीं लिया। इसी क्रम में कोलकाता पुलिस और बंगाल सरकार से सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि सीबीआई और राज्य के रिकॉर्डों में अंतर क्यों है?