रांची : महालया से दुर्गा पूजा की शुरुआत हो जाती है. बंगाल के लोगों के लिए महालया का विशेष महत्व है और वे साल भर इस दिन की प्रतीक्षा करते हैं. महालया के साथ ही जहां एक तरफ श्राद्ध खत्म हो जाते हैं वहीं मान्यताओं के अनुसार इसी दिन मां दुर्गा कैलाश पर्व से धरती पर आगमन करती हैं और अगले 10 दिनों तक यहीं रहती हैं. महालया के दिन ही मूर्तिकार मां दुर्गा की आंखों को तैयार करते हैं. महालया के बाद ही मां दुर्गा की मूर्तियों को अंतिम रूप दे दिया जाता है और वह पंडालों की शोभा बढ़ाती हैं.
महालया की मान्यताएं
हर साल अश्विनि मास की अमावस्या तिथि यानी सर्व पितृ अमावस्या के दिन महालया मनाई जाती है. इस साल महालया का पर्व 6 अक्टूबर को मानया जा रहा है. वहीं पितृ पक्ष का आखिरी दिन भी हैं. इसे सर्व पितृ अमावस्या, पितृ विसर्जनी अमावस्या एवं मोक्षदायिनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है.
दरअसल महालया दुर्गा पूजा की शुरुआत और पितृपक्ष का समापन माना जाता है. वहीं इसी दिन मां दुर्गा से धरती पर आने की प्रार्थना की जाती है. ऐसा कहा जाता है कि महालया अमावस्या के ही दिन मां दुर्गा प्रकट हुई थी औऱ उन्होंने इस धरती को पापियों से मुक्ति दिलाई थी. साथ ही शास्त्रों में इस बात की जिक्र भी है की जिन पितरों की मृत्यु तिथि का लोगों को पता नहीं होता है उन पितरों को श्राद्ध कर्म हिमालय अमावस्या के दिन किया जाता है.
महालया का इतिहास
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अत्याचारी राक्षस महिषासुर के संहार के लिए मां दुर्गा का सृजन किया. महिषासुर को वरदान मिला हुआ था कि कोई देवता या मनुष्य उसका वध नहीं कर पाएगा. ऐसा वरदान पाकर महिषासुर राक्षसों का राजा बन गया और उसने देवताओं पर आक्रमण कर दिया. देवता युद्ध हार गए और देवलोकर पर महिषासुर का राज हो गया. महिषासुर से रक्षा करने के लिए सभी देवताओं ने भगवान विष्णु के साथ आदि शक्ति की आराधना की.
इस दौरान सभी देवताओं के शरीर से एक दिव्य रोशनी निकली जिसने देवी दुर्गा का रूप धारण कर लिया. शस्त्रों से सुसज्जित मां दुर्गा ने महिषासुर से नौ दिनों तक भीषण युद्ध करने के बाद 10वें दिन उसका वध कर दिया. दरसअल, महालया मां दुर्गा के धरती पर आगमन का द्योतक है. मां दुर्गा को शक्ति की देवी माना जाता है.