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Dhanbad: नवरात्र का पावन पर्व पूरे देश में उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है। इसी बीच धनबाद जिले के कतरास प्रखंड के रोआम गांव का मां दुर्गा मंदिर अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक परंपरा को लेकर विशेष पहचान रखता है। बताया जाता है कि इस गांव में बीते चार सौ वर्षों से मां दुर्गा की पूजा निरंतर हो रही है।
नवरात्र में उमड़ता है श्रद्धालुओं का जनसैलाब
हर साल शारदीय नवरात्र के दौरान रोआम गांव में भक्ति और उल्लास का माहौल देखने को मिलता है। मां दुर्गा की आराधना और पूजा-अर्चना के लिए न केवल स्थानीय लोग, बल्कि आसपास के दर्जनों गांवों के श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। रोशनी से सजे पंडाल, भक्ति गीतों की गूंज और पूजा अर्चना के दौरान बजते ढोल-नगाड़े पूरे वातावरण को भक्तिमय बना देते हैं।
Dhanbad: कतरास राजघराने से जुड़ा है इतिहास
इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता इसका कतरास राजघराने से गहरा संबंध है। 400 साल पहले रोआम गांव के एक ब्राह्मण परिवार ने मां दुर्गा की प्रतिमा को कतरासगढ़ स्थित राजा तालाब में विसर्जन के लिए ले जाया था। उसी दौरान कतरास की राजमाता अपने पूरे परिवार के साथ वहां माता के दर्शन करने पहुंचीं। माता के दर्शन के बाद राजपरिवार इस पूजा से प्रभावित हुआ और तभी से एक परंपरा की शुरुआत हुई।
आज भी जारी है नवपत्रिका भेजने की परंपरा
उस समय से लेकर आज तक कतरास राजघराना हर साल रोआम दुर्गा मंदिर को नवपत्रिका भेजता आ रहा है। राजघराने के इस योगदान को आज भी गांववाले बड़े गर्व और आस्था के साथ याद करते हैं। यह परंपरा चार शताब्दियों से बिना रुके निरंतर चल रही है, जो इस पूजा की विशिष्टता को और बढ़ा देती है।
लोक आस्था और सामाजिक एकता का केंद्र
रोआम की दुर्गा पूजा केवल धार्मिक आयोजन ही नहीं, बल्कि लोक आस्था और सामाजिक एकता का प्रतीक भी है। पूजा पंडाल में ग्रामीणों और श्रद्धालुओं का सामूहिक सहयोग देखने लायक होता है। यहां दूर-दराज से लोग सिर्फ पूजा करने ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक परंपरा का हिस्सा बनने भी आते हैं।
गांव के बुजुर्गों का कहना है कि यह पूजा उनकी सांस्कृतिक धरोहर है और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा भी। 400 वर्षों से चली आ रही यह परंपरा आज भी उतनी ही जीवंत है, जितनी पहले के दौर में थी।
रिपोर्टः सोमनाथ