Dhanbad: जिले के पलानी में गुलुडीह गांव के बीचोंबीच एक रहस्य आज भी जिंदा है। यह सिर्फ एक कथा नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और श्राप की ऐसी सच्चाई है, जिसे यहां के लोग आज भी मानते हैं, पूजते हैं और महसूस करते हैं। पढ़िए इस रहस्य की पूरी कहानी…
कहते हैं, यह उस समय की बात है, जब झारखंड के जंगलों में आदिवासी समाज अपने रीति-रिवाजों के अनुसार शादियों का आयोजन किया करता था। एक ऐसी ही बारात गुलुडीह गांव से होकर गुजर रही थी। दूल्हा-दुल्हन की यह जोड़ी, हाथियों और घोड़ों के साथ गांव की गलियों में खुशी से निकल रही थी। लेकिन अचानक समाज की कुल देवी के श्राप से सभी पत्थर में बदल गए। मानों कुल देवी के श्राप ने सभी को पत्थर बना दिया हो।
पूर्वजों से मिली इस कथा के अनुसार, कुलदेवी ने चेतावनी दी थी कि “सूर्योदय से पहले बारात को घर पहुंच जाना होगा।” परंपराओं से बंधे इस आदेश को जब अनदेखा किया गया, और सुबह की पहली मुर्गे की बांग सुनाई दी, उसी क्षण बारात का पूरा कारवां पत्थर में तब्दील हो गया।
Dhanbad: दूल्हा-दुल्हन आज भी पत्थर के रूप में मौजूद
आज भी गुलुडीह गांव के बीच टापू पर दो शिलाएं खड़ी हैं। ग्रामीण मानते हैं कि यही दूल्हा और दुल्हन हैं। इनके आसपास फैली हुई कई और आकृतियां हैं। कोई बाराती, कोई घोड़ा, कोई हाथी और यहां तक कि शेषनाग की भी एक पत्थरनुमा आकृति, जिसकी आज पूजा होती है।
Dhanbad: ढोल की आवाज आज भी आती है
सबसे रहस्यमयी बात यह है कि ग्रामीणों के अनुसार, आज भी कभी-कभी इन पत्थरों से ढोल-नगाड़ों की आवाजें आती हैं। मानो बारात आज भी कहीं रुकी हो, किसी दुल्हन की विदाई अधूरी हो।
गुलुडीह के लोग इस घटना को सतयुग की सच्चाई मानते हैं। उनका विश्वास है कि यह श्रापित बारात एक चेतावनी है कि देवताओं और परंपराओं को अनदेखा करना कितना भारी पड़ सकता है। पलानी की यह कहानी आज सिर्फ एक किंवदंती नहीं, बल्कि एक सजीव धरोहर है, जो सदियों बाद भी लोगों के मन में बसती है। यह वह जगह है, जहां प्रेम, परंपरा और अभिशाप तीनों मिलकर एक अविस्मरणीय गाथा बनाते हैं।
मनोज कुमार शर्मा की रिपोर्ट
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