रांची: शहर के निजी स्कूलों में हर साल नामांकन प्रक्रिया के साथ-साथ किताबों की खरीदारी को लेकर अभिभावकों के बीच आपाधापी का माहौल बना रहता है।
इसके साथ ही बच्चों को स्कूल भेजने के लिए परिवहन की व्यवस्था भी एक बड़ी चुनौती बन चुकी है। खासकर वे अभिभावक, जो स्कूल के पास, यानी 2-3 किलोमीटर की दूरी पर रहते हैं, वे बच्चों को बसों की बजाय आटो रिक्शा और वैन से भेजने को प्राथमिकता देते हैं। हालांकि, यह विकल्प अक्सर जानलेवा साबित हो सकता है, क्योंकि आटो रिक्शा और वैन संचालकों की ओर से अक्सर लापरवाही बरती जाती है।
इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए जिला परिवहन कार्यालय ने सभी स्कूल प्रबंधकों को निर्देश दिया है कि वे 15 दिनों के भीतर स्कूल बसों की फिटनेस रिपोर्ट के साथ-साथ बच्चों के लिए संचालित आटो रिक्शा और वैन के संचालकों की जानकारी भी उपलब्ध कराएं।
इस आदेश के बाद स्कूल प्रबंधकों के कान खड़े हो गए हैं। पिछले पंद्रह दिनों में जिला परिवहन अधिकारी अखिलेश कुमार के नेतृत्व में ऐसे वाहन चालकों से करीब डेढ़ लाख रुपये का चालान भी काटा गया है। उन्होंने बताया कि यह कार्रवाई आगामी दिनों में भी जारी रहेगी, और यदि स्कूल प्रबंधकों द्वारा आटो रिक्शा और वैन संचालकों की रिपोर्ट नहीं दी गई तो सख्त कार्रवाई की जाएगी।
अभिभावकों के लिए स्कूल बसों का किराया बहुत अधिक हो गया है, जिससे वे मजबूरी में आटो और वैन का सहारा लेते हैं। आमतौर पर स्कूल बसों का किराया 1200 से 2500 रुपये तक होता है, जबकि आटो और वैन से यह खर्चा सिर्फ 1000 से 1200 रुपये तक होता है। इस बढ़े हुए किराए के कारण अभिभावक विकल्प के रूप में आटो और वैन का चयन करते हैं, हालांकि इससे बच्चों के लिए खतरनाक स्थितियां पैदा हो रही हैं।
वहीं, स्कूलों में नामांकन और फीस की वसूली को लेकर भी शिकायतें हैं। अभिभावकों का कहना है कि स्कूल प्रबंधकों के द्वारा फीस के नाम पर मोटी राशि वसूली जाती है, लेकिन जब सुविधाओं की बात आती है तो अक्सर आनन-फानन में काम चलता है। खेल के मैदान और वाहनों की उचित व्यवस्था भी कई स्कूलों में नहीं होती।
जिला परिवहन कार्यालय की ओर से कार्रवाई के बावजूद, जब तक स्कूल प्रबंधनों की ओर से परिवहन व्यवस्था को लेकर ठोस कदम नहीं उठाए जाएंगे, तब तक बच्चों के लिए आटो और वैन के जरिए स्कूल जाने का खतरा बना रहेगा।