जनार्दन सिंह की रिपोर्ट
डिजिटल डेस्क : Congress में पांच नेताओं को पछाड़कर PM बने थे Dr. Manmohan Singh। दिवंगत पूर्व PM Dr. Manmohan Singh को लेकर यादों के झरोखे से लगातार कई यादगार सियासी पल सामने आ रहे हैं। मौजूदा सियासी पीढ़ी के सामने Dr. Manmohan Singh का किरदार एक मिसाल के रूप में है। Dr. Manmohan Singh ने सियासी रंग में रंगने से पहले कभी किसी राजनीतिक दल के नहीं रहे।
राजनीति के ककहरे तक से खुद को दूर रखने वाले Dr. Manmohan Singh की सियासत में एंट्री हुई तो ऐसी कि लोगों की जुबां पर ताला लग गया और सन्न होकर इस शख्शियत को एकबारगी देखते ही रह गए थे और अपने राजनीतिक कला-कौशल के आत्मविश्लेषण तक को मजबूर हो गए।कभी धैर्य न खोने और कभी किसी गुट विशेष से ताल्लुक न रखना मानों Dr. Manmohan Singh की अपनी एक अलग पहचान थी।
यही एक प्रमुख कारण रहा कि नई सदी में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के बाद चुनावों में जब जनता ने Congress को देश की सत्ता सौंपने का जनादेश दिया तो अपने विदेशी मूल होने के तोहमत को सियासी मुद्दा न बनने देने के लिए सोनिया गांधी ने Congress पार्टी में मौजूद तमाम कद्दावर नेताओं को दरकिनार कर Dr. Manmohan Singh को अपना पसंदीदा कंडीडेट बताते हुए नाम प्रस्तावित किया तो Congress के अंदरूनी राजनीत के तत्कालीन सभी चाणक्य और माहिर बगलें झांकते रहे और किसी के मुंह से एक शब्द भी विरोध में नहीं फूटा।
Dr. Manmohan Singh के PM बनने की गाथा स्व. रामबिलास पासवान से जानें…
भारतीय राजनीति में बाफोर्स घोटाले के बाद आए बदलाव में बिहार के जिस रामबिलास पासवान ने हर सरकार के सांचे में खुद को समयानुकूल फिट करने के फार्मूले से तैयार किया, उन्हीं रामबिलास पासवान भारत की सियासत में राजनीति से रंच मात्र का भी रिश्ता न रखने वाले Dr. Manmohan Singh के अचानक सत्ता के शीर्ष विराजित होने के किस्से को बड़े रोचक ढंग से अपनी पुस्तक में सबके सामने रखा है।
अपने बायोग्राफी ‘संघर्ष, साहस और संकल्प’ में लोकजनशक्ति पार्टी के संस्थापक और पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. रामबिलास पासवान ने इस पूरे किस्से को विस्तार से रखा है। यह पूरा वाकया वर्ष 2004 में देश में हुए आम चुनाव के बाद का है। 18 मई 2004 को Congress के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनने जा रही थी।
तब सोनिया गांधी का PM बनना तय माना जा रहा था। लेकिन तभी 10 जनपथ पहुंचे रामविलास पासवान को जानकारी मिली कि सोनिया पीएम नहीं बन रही हैं। तत्काल रामबिलास पासवान ने सूचना कन्फर्म करने के लिए सोनिया गांधी के सलाहकार अहमद पटेल को फोन लगाया तो वहां से भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला।
उसी का ब्योरा देते हुए अपनी बायोग्राफी में दिवंगत लोजपा संस्थापक स्व. रामबिलास पासवान ने लिखा है – ‘…मैं जैसे ही 10 जनपथ से बाहर निकला, यह खबर मीडिया में फ्लैश होने लगी। हम गठबंधन के लोग अचंभित थे कि अब कौन PM बनेगा, लेकिन जल्द ही Congress की तरफ से हमें इसको लेकर सूचित किया। जो नाम हमारे सामने आए, वो काफी चौंकाने वाले था। वो नाम था Manmohan Singh का’।
सत्ता के शीर्ष पद के दौड़ में शामिल न होकर भी विराजने का Dr. Manmohan का बेजोड़ सियासी किस्सा…
इसी के साथ Dr. Manmohan Singh देश की सत्ता के शीर्ष पर एकदम से नया चेहरा और नाम बनकर उभरे। उनके देश की सत्ता के शीर्ष पर विराजने का किस्सा भी अपने आप में बेजोड़ रहा है। इसे बखानते विरोधी दल वाले भी अघाते। बात फिर से वर्ष 2004 के मई माह की है जब आम चुनाव में सत्ता में आने का जनादेश Congress को मिल चुका था।
तब वर्ष 2004 में सोनिया गांधी के पीएम बनने से इनकार करने के बाद Dr. Manmohan Singh को PM की कुर्सी सौंपी गई। Dr. Manmohan Singh उस वक्त राज्यसभा में Congress की ओर नेता प्रतिपक्ष थे। तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने तो यहां तक दावा किया था कि Dr. Manmohan Singh ही PM बनेंगे। इसकी आधिकारिक सूचना राष्ट्रपति कार्यालय को आखिरी वक्त में दी गई थी।
PM बनने के लिए Dr. Manmohan Singh के पक्ष में 3 प्रमुख फैक्टर काम कर रहा था। पहला फैक्टर Dr. Manmohan Singh का किसी गुट से न होना था। कांग्रेस में उस वक्त दक्षिण और उत्तर के साथ-साथ कई गुट सक्रिय था। नरसिम्हा राव की सरकार में इसी गुटबाजी की वजह से कांग्रेस पस्त हो गई थी। सोनिया फिर से रिस्क नहीं लेना चाह रही थी।
Dr. Manmohan Singh का राजनीतिक व्यक्ति न होना भी उनके लिए फायदेमंद साबित हुआ। वर्ष 2004 में राहुल गांधी की राजनीति में एंट्री हो गई थी। कांग्रेस के लोग उनके लिए सियासी पिच तैयार कर रहे थे। ऐसे में Dr. Manmohan Singh के अलावा किसी राजनीतिक व्यक्ति को PM की कुर्सी सौंपी जाती तो राहुल के लिए भविष्य की राह आसान नहीं रहता।
तीसरा फैक्टर Dr. Manmohan Singh का कामकाज था। वित्त मंत्री रहते Dr. Manmohan Singh ने भारत को आर्थिक तंगी से बाहर निकाला था। वर्ष 2004 में भी कांग्रेस ने आर्थिक नीति और रोजगार से जुड़े से कई वादे किए थे, जिसे पूरा करने के लिए विजनरी नेता की जरूरत थी। PM के तौर पर Dr. Manmohan Singh इसमें Congress के साथ ही देश के लिए अव्वल साबित हुए।
आखिर में जानिए Congress के उन पांच महारथियों को जिन्हें दरकिनार कर Dr. Manmohan Singh बने PM…
अब यहीं पर बात आती है कि जब Congress नेत्री सोनिया गांधी ने काफी सोचविचार के बाद अपनी पार्टी की ओर से वर्ष 2004 में भारत की सत्ता की शीर्ष गद्दी की जिम्मेदारी Dr. Manmohan Singh को दी तो पार्टी के भीतर ही 5 कद्दावर और सियासत के महारथी हाथ मलते रह गए थे। वे मन मनोसने को मजबूर थे क्योंकि फैसला सोनिया गांधी का था और कोई सीधे उनके खिलाफ नहीं जाना चाह रहा था।
हालांकि इन पांचों को सोनिया गांधी वर्ष 2004 में अपनी सरकार बनने पर अलग-अलग तरीके से एडजस्ट जरूर करवाया। अब सवाल उठता है कि खुद सोनिया गांधी ने पीएम की कुर्सी क्यों नहीं ली ? इसको लेकर अलग-अलग दावे हैं। लेकिन सोनिया के इनकार के बाद कांग्रेस के सियासी गलियारों में 5 नेताओं को पीएम इन वेटिंग बताया गया।
उन नेताओं के PM बनने की चर्चा शुरू हुई। उनमें प्रणब मुखर्जी, अर्जुन सिंह, एनडी तिवारी, शिवराज पाटील और पी चिदंबरम का नाम प्रमुख था। प्रणब मुखर्जी तब Congress के सबसे सीनियर नेता थे। इंदिरा गांधी के जमाने से केंद्र में मंत्री पद पर रह चुके थे। Congress पार्टी के अधिकांश नेता उन्हें इस कुर्सी पर बैठाना चाह रहे थे, लेकिन प्रणब PM नहीं बन पाए।
PM न बनने को लेकर प्रणब ने कई बार अफसोस भी जताया। हालांकि, प्रणब मुखर्जी Dr. Manmohan Singh सरकार में वित्त और रक्षा मंत्री रहे। इसके बाद नाम आता है अर्जुन सिंह का जो गांधी परिवार के करीबी माने जाते थे। राजीव और सोनिया गांधी से बेहतरीन ताल्लुकात थे। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे अर्जुन सिंह सहयोगी पार्टियों की भी पसंदीदा नेता थे। बाद में अर्जुन सिंह Dr. Manmohan Singh की सरकार में शिक्षा मंत्री बनाए गए।
इसी क्रम में एनडी नाम से मशहूर रहे यूपी उत्तराखंड के नारायण दत्त तिवारी का नाम रहा। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद पर रह चुके एनडी तिवारी भी PM पद के प्रमुख दावेदार थे। तिवारी को भी गांधी परिवार का काफी करीबी माना जाता था लेकिन कुल मिलाकर उनको PM की कुर्सी नहीं मिल पाई। चौथा नाम महाराष्ट्र से कांग्रेस नेता शिवराज पाटिल का था।
महाराष्ट्र के कद्दावर नेता शिवराज पाटिल भी PM के प्रमुख दावेदार थे। मुंबई अर्थव्यवस्था का केंद्र माना जाता है और पाटिल की मुंबई में मजबूत पकड़ थी। बाद में पाटिल Dr. Manmohan Singh की सरकार में गृह मंत्री बनाए गए। पांचवां और आखिरी नाम इसी क्रम में दक्षिण भारत से Congress नेता पी. चिदंबरम का रहा। अर्थशास्त्री पी चिदंबरम भी PM पद के प्रमुख दावेदार थे।
उस वक्त कहा जा रहा था कि दक्षिण को साधने के लिए Congress चिदंबरम को PM बना सकती है। चिदंबरम कई सरकार में मंत्री रह चुके थे लेकिन बदले हालात में Dr. Manmohan Singh की सरकार में चिदंबरम गृह और वित्त मंत्री बनाए गए।