गढ़वा जमीन विवाद: हाईकोर्ट ने सरकार पर ठोका 50 हजार का जुर्माना

अदालत ने एकल पीठ के आदेश को सही ठहराते हुए खारिज किया अपील

रांची : झारखंड हाईकोर्ट ने गढ़वा के जमीन विवाद मामले का ना सिर्फ निपटारा किया

बल्कि राज्य सरकार पर 50 हजार का जुर्माना भी ठोक दिया है.

चीफ जस्टिस डा. रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की अदालत में

गढ़वा के जमीन विवाद मामले में अपील खारिज कर दिया है.

अदालत ने एकल पीठ के आदेश को सही ठहराया है.

अदालत ने कहा कि एकल पीठ के आदेश में हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं है.

अगर जमीन राज्य सरकार की है, तो उन्हें टाइटल शूट के लिए उचित फोरम में जाना चाहिए.

अदालत ने इस मामले में 270 दिन की देरी से अपील

दाखिल करने पर राज्य सरकार पर उक्त जुर्माना लगाया है.

क्या है पूरा मामला

इस संबंध में शेर अली और अयूब अली ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी.

प्रार्थी के अधिवक्ता शादाब बिन हक ने बताया कि वर्ष 1950 से पहले प्रार्थियों को गढ़वा में 30 एकड़ जमीन बाबू केदारनाथ के सादा हुकूमनामा से मिली थी.

जमींदारी उन्मूलन के बाद प्रार्थियों ने जमीन की रसीद और म्यूटेशन के लिए अंचल अधिकारी के यहां आवेदन दिया था. सीओ ने इसकी जांच सीआई से कराई. सीआई ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि उक्त जमीन प्रार्थियों के कब्जे में है और उनकी रसीद काटने की अनुशंसा की गई. सीओ ने उक्त रिपोर्ट एलआरडीसी के यहां भेज दिया.

सर्वे में बताया गया था जंगल

एलआरडीसी ने उक्त जमीन गैर मजरुआ मालिक खास होने की बात कहते हुए सीओ से इस पर मंतव्य मांगा. सीओ ने कहा कि वर्ष 1953 में हुए सर्वे में इसे जंगल झाड़ बताया गया था. लेकिन हाल के सर्वे में इसे पुरानी परती जमीन बताया गया है. इसलिए म्यूटेशन किया जा सकता है.

2017 में राज्य सरकार ने जारी किया था नोटिस

वर्ष 2017 में राज्य सरकार की ओर से एक नोटिस जारी कर कहा गया कि उक्त जमीन सरकारी है और इसे खाली कर दिया जाए. इसके खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई. एकल पीठ ने कहा कि प्रार्थी 70 सालों से उक्त जमीन पर काबिज है. नया विवाद होने की वजह से सरकार को टाइटल के लिए सिविल कोर्ट में जाना चाहिए.

इस मामले में राज्य सरकार ने देरी से अपील दाखिल की. अदालत ने पचास हजार रुपये जुर्माने के साथ अपील को सुनवाई के लिए स्वीकार किया. सुनवाई के बाद अदालत ने कहा कि इस मामले में सरकार को पहले जमीन की जांच करानी चाहिए थी और उसके बाद ही नोटिस जारी करना था. ऐसे में जमीन खाली कराने का आदेश गलत है.

रिपोर्ट: प्रोजेश दास

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