बिहिया (भोजपुर) : भोजपुर जिले के बिहिया के महथिन माई मंदिर का गौरवशाली इतिहास रहा है। माता महथीन के मंदिर में सालों भर भक्तों का आने जाने का सिलसिला लगा रहता है इस मंदिर का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है कहा जाता है कि हजारों वर्ष पहले इस इलाके में हरि हो वंश के राजा रणपाल का राज था। इस इलाके से गुजरने वाले विवाहित कन्याओं को एक रात राजा के महल में गुजारनी पड़ती थी। तभी रागमती जो की हल्दी सिकरिया के श्रीधर चौबे महंत की पुत्री थी उनकी शादी तुलसी हरि गांव में हुई थी। जब वह शादी के बाद अपने ससुराल जा रही थी तभी राजा के सैनिकों ने उनके डोली को रोक लिया। महल में ले जाने लगे सभी बारातियों को राजा के सैनिकों ने मार दिया। इसके बाद माता सती हो गईऔर राजा के बेटी ने उनको पानी से आग बुझाया इसके बाद माता ने उसको आशीर्वाद दिया और वह सती हो गई। तब से माता का मंदिर यही विराजमान है।
वहीं पौराणिक कथाओं के अनुसार जब अंग्रेजों के जमाने में बिहिया से होकर गुजरने वाली पटना-पंडित दीनदयाल उपाध्याय रेल लाइन यहां पर घुमावदार बिछायी गई है। इसके पीछे महथिन माई की रोचक कहानी की चर्चा समय-समय पर होती रहती है। ब्रिटिश काल में यहां रेल लाइन बिछवाने आए तो अंग्रेज अफसर दिन में लाइन बिछा कर जाते थे और रात में लाइन टेढ़ा हो जाता था। इसके बाद माता ने अंग्रेज़ अफसर को स्वप्न दिया कि रेलवे लाइन को उत्तर दिशा की तरफ से बिछाई तब जाकर रेलवे लाइन बन पाया। वहीं एक और कहानी के अनुसार अंग्रेज अफसर चार्ली मेलन के साथ भी मां महथिन के हैरतअंगेज किस्से सुनने को मिलते हैं।
स्थानीय लोग बताते हैं कि चार्ली मेलन कुष्ठ रोग से ग्रसित थे। वह इंजीनियरों के साथ महथिन मंदिर से होकर रेल लाइन बिछवा रहे थे। दिन में रेल लाइन बिछायी जाती थी, लेकिन रात में अपने आप उखड़ जाती था। इस वाकये से इंजीनियरों का दल परेशान हो उठा। इसी दौरान चार्ली मेलन के सपने में मां महथिन आईं। उन्होंने कहा-तुम रेल लाइन बगल से होकर बिछवाओ, तो तुम्हें कुष्ठ रोग से मुक्ति मिल जाएगी। चार्ली मेलन ने ऐसा ही कराया। बाद में उसे कुष्ठ रोग से मुक्ति मिल गई। मां महथिन के बगल से होकर रेल लाइन बिछाये जाने के कारण महथिन मंदिर के समीप घुमावदार है। स्थानीय लोग आज भी इस घुमावदार रेल लाइन को कालांतर में हुई उस घटना का गवाह मानते हैं। रागमति की डोली जब बिहिया से गुजरने लगी, तो राजा के सैनिकों ने डोली रोक दी। रागमति ने विरोध किया और सैनिकों व राजा के साथ युद्ध किया।
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इसी क्रम में रागमति का चेहरा क्रोध से लाल हो उठा और उन्होने रणपाल को श्राप दे दिया। इसके बाद डोली में अचानक आग लग गई और रागमति वहीं सती हो गईं। सती होने के बाद उन्हें मां महथिन के नाम से जाना जाने लगा। इस घटना के कुछ ही दिनों के बाद होरिको वंश के राजा रणपाल के पूरे वंश का नाश हो गया। उसी स्थल पर आज मां महथिन मंदिर बन गया है। मां महथिन मंदिर का धार्मिक और अध्यात्मिक रूप से काफी महत्व है। यही कारण है कि इलाके क लागों के हर शुभ कार्य की शुरुआत मां महथिन के दरबार से ही होती है। इसलिए इन्हें मनौतियों की देवी भी कहा जाता है। मां महथिन के आंगन में मनौती की अनूठी परम्परा भी विद्यमान है। महिलाओं की जब कोई मांगी हुई मनौती पूरी हो जाती है तो वह अपने आंचल पर पंवरिये को नचवाती हैं।
सोमवार और शुक्रवार को लगने वाले यहां मेला के अलावा लग्न के मौसम और हर पर्व-त्योहार पर श्रद्धालु यहां मत्था टेकने आते हैं। लिहाजा बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद की जा रही है जुल्म और अत्याचार के खिलाफ जंग लड़ने वाली वीरांगना महथिन माई का मंदिर सिद्ध शक्तिपीठों की तरह है। इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैली है। ऐसी मान्यता है कि मां महथिन दुर्गा माता की अवतार हैं और जब-जब बिहिया की धरती पर जुल्म और विपत्ति आएंगी, वे उसका नाश कर देंगी। यही कारण है कि मां महथिन के आशीर्वाद से बिहिया को शांति, सद्भाव ओर अमन चैन का क्षेत्र कहा जाता है। नवरात्र हो या सावन, दोनों अवसरों पर मां महथिन का विशेष रूप से शृंगार किया जाता है और सुबह-शाम आरती में भक्तों की भीड़ उमड़ी रहती है।
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नेहा गुप्ता की रिपोर्ट